48 वर्षीय रमेश सोलंकी ऊपर से नीचे तक सफेद कपड़े पहने हैं और अपना सिर मुंडवा रखा रखा है. वो जून की एक शुष्क शाम दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में आयोजित एक एकजुटता बैठक में शिरकत कर रहे हैं और चाय की चुस्की ले रहे हैं.
बीच-बीच में चाय की चुस्की लेना ही आंसुओं से लड़ने का उनका एकमात्र तरीका था. उन्होंने कहा, “जो स्टूडेंट मेरे बेटे दर्शन के लिए लड़ रहे हैं, वे मुझे मजबूत बनने में मदद करते हैं. मैं उनमें से हर एक में अपने बेटे को देखता हूं.”
रमेश सोलंकी गुजरात के अहमदाबाद में एक प्लम्बर हैं. उन्हें 12 फरवरी को एक ऐसी खबर मिली जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी और अकल्पनीय दुःख में डूबा दिया. उनके 18 वर्षीय बेटे, दर्शन सोलंकी की IIT, बॉम्बे में कथित तौर पर आत्महत्या से मृत्यु हो गई.
दर्शन बी.टेक (केमिकल इंजीनियरिंग) के फर्स्ट ईयर का स्टूडेंट था और दलित समुदाय से ताल्लुक रखता था. इस नामी शिक्षण संस्थान में ज्वाइन करने के करीब चार महीने बाद हॉस्टल-16 के परिसर के पास दर्शन मृत पाया गया.
उसी दिन, स्टूडेंट बॉडी अंबेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्कल (APPSC) ने आरोप लगाया था कि दर्शन को जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उसने यह घातक कदम उठाया. APPSC ने इसे "संस्थागत हत्या" करार दिया. हालांकि, IIT-बॉम्बे ने इन आरोपों का खंडन किया था और कहा था कि "कोई भी कदम 100 प्रतिशत प्रभावी नहीं हो सकता", और छात्रों द्वारा भेदभाव, यदि ऐसा होता है, तो "एक अपवाद है."
द क्विंट को दिए एक इंटरव्यू में- रमेश ने अपने बेटे की यादों, दुख से अपनी जंग और वह क्यों न्याय के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे- के बारे में बात की.
'IIT-बॉम्बे में एडमिशन मिलने पर दर्शन बहुत उत्साहित था'
रमेश सोलंकी जेएनयू में छात्र और शिक्षक एकजुटता बैठक में शामिल हुए और भारत भर के कुलीन शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव पर चर्चा की. उन्होंने कहा, "मैं नहीं चाहता कि जो दर्शन के साथ हुआ वह किसी और के साथ हो. इसलिए, मुझे लड़ना होगा.”
दर्शन के निधन के लगभग एक महीने बाद, 2 मार्च को, IIT बॉम्बे ने 12-सदस्यीय आंतरिक समिति की एक अंतरिम रिपोर्ट जारी की थी. इसमें दावा किया गया था: " दर्शन के बिगड़ते अकादमिक प्रदर्शन ने उसे गंभीरता से प्रभावित किया होगा.. दर्शन ने सीधे जाति-आधारित भेदभाव का सामना किया, इसका कोई खास सबूत नहीं है.”
“ऐसा बच्चा जो एक बार नहीं, बल्कि दो बार संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) की परीक्षा पास कर चुका हो, वह कमजोर छात्र कैसे हो सकता है और खराब मार्क्स कैसे प्राप्त कर सकता है? मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि यह आत्महत्या थी," पिता रमेश ने दुखी होकर कहा.
रमेश ने याद किया कि कैसे दर्शन ने पहली बार जेईई क्लियर किया था और उसे सिविल इंजीनियरिंग कोर्स मिला था.
"लेकिन वह आश्वस्त नहीं था. उस समय, मैंने उनसे IIT-गांधीनगर से बीटेक करने के लिए भी कहा था. लेकिन वह डटा रहा और दूसरी बार जेईई की परीक्षा दी - दोनों बार बिना किसी बाहरी कोचिंग के. जब उसे IIT-बॉम्बे में एडमिशन मिला तो वह बहुत खुश था और मुझे उस पर गर्व था." रमेश ने कहा और उस दरम्यान उनके चेहरे पर मुस्कान लगभग तैर गई थी.
'मरने से 30 मिनट पहले दर्शन से बात की थी'
दर्शन की 21 वर्षीय बहन जाह्नवी अहमदाबाद स्थित एक विश्वविद्यालय से कंप्यूटर एप्लीकेशन (एमसीए) में मास्टर डिग्री कर रही है. उन्होंने IIT-बॉम्बे की आंतरिक समिति द्वारा जारी अंतरिम रिपोर्ट को खारिज कर दिया और इसे "पूरी तरह झूठ" करार दिया.
उन्होंने पहले द क्विंट को जानकारी दी थी कि दर्शन कैंपस में जातिगत भेदभाव का सामना करने के बारे में अक्सर उन्हें बताता था.
जाह्नवी ने दावा किया था, "जब वह लैपटॉप यूज करते हुए फंस जाता था, तो उसके दोस्त उसका मजाक उड़ाते थे कि तुम इतना भी नहीं जानते. जब भी वह ग्रुप स्टडी या डिनर के लिए जाता था, तो उनके क्लासमेट कहते थे, 'देखो दलित आ गया."
ये पहली बार था जब दर्शन अपने परिवार से दूर गया था.
रमेश ने कहा कि 12 फरवरी को उसकी मृत्यु से लगभग 30 मिनट पहले उन्होंने अपने बेटे के साथ आखिरी कॉल पर बात की थी.
“उसने अभी-अभी अपने एग्जाम खत्म किये थे और हमसे और अपने पूरे परिवार से मिलने के लिए वो बहुत उत्साहित था. उस दिन वह अपने दोस्तों के साथ बाहर जा रहा था तो मैंने उसे कुछ पैसे ट्रांसफर कर दिए थे." रमेश सोलंकी ने याद करते हुए बताया.
'कथित सुसाइड नोट में दर्शन की हैंडराइटिंग नहीं है'
1 जून को, भले ही NCSC ने मामले का संज्ञान लिया, रमेश ने कहा कि जिस तरह से अब तक जांच की गई है, उससे वह सहमत नहीं हैं. रमेश ने द क्विंट को बताया, "NCSC की सुनवाई में, एसआईटी ने कहा कि इस मामले में आरोप पत्र दायर किया गया है और जातिगत भेदभाव को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है."
उन्होंने कहा कि मुंबई पुलिस ने दर्शन के बैचमेट अरमान इकबाल खत्री के खिलाफ सबूतों के साथ-साथ उनके कमरे से बरामद हस्तलिखित 'नोट' की ओर इशारा किया. गौरतलब है कि प्रारंभिक जांच के दौरान पवई पुलिस को ऐसा कोई नोट नहीं मिला था.
एक तरफ तो पुलिस का दावा है कि नोट में लिखा है, "अरमान ने मुझे मार डाला." लेकिन पिता रमेश ने कहा कि वह विश्वास नहीं करता कि यह दर्शन की हैंडराइटिंग है.
एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की विभिन्न धाराओं के तहत 30 मार्च को मुंबई पुलिस द्वारा मामले में एक FIR दर्ज की गई थी. अरमान को 9 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया था और धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 506 (आपराधिक धमकी) सहित IPC की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे. लगभग एक महीने जेल में बिताने के बाद, अरमान को 6 मई को मुंबई की एक सत्र अदालत ने जमानत दे दी थी.
रमेश ने कहा कि IIT-बॉम्बे के कई फैकल्टी सदस्य, जिनमें संस्थान के एससी/एसटी सेल के सदस्य भी शामिल हैं, सुनवाई के दौरान उपस्थित थे.
"उन्होंने अंतरिम रिपोर्ट के निष्कर्षों को ही तोते की तरह पेश किया. उन्होंने कहा कि दर्शन को खराब अंक मिले हैं और सुनवाई के दौरान उसकी मार्कशीट दिखाई.' रमेश सोलंकी ने यह भी दावा किया कि सुनवाई के दौरान उन्हें अपने वकील को ले जाने की अनुमति नहीं थी.
'दर्शन इस साल मार्च में 19 साल का हो जाता'
दर्शन, पिता रमेश और मां तरलिकाबेन के दो बच्चों में सबसे छोटा था. उसके अपने सपने, आकांक्षाएं, डर, पसंद और नापसंद थे.
रमेश ने याद करते हुए बताया, "वह एक हंसमुख बच्चा था. उसे पढ़ाई करना बहुत पसंद था. एक बार उसने कक्षा पांच में सेकंड पोजीशन आया और वह काफी निराश हो गया. मैंने उसे तब अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित किया.”
पिता ने बताया कि दर्शन को क्रिकेट खेलने का शौक था और वह खुले में या नदी के किनारे बैठना पसंद करता था.
"दर्शन बहुत फूडी था. उसकी पसंदीदा डिश मखाने की सब्जी और पनीर से बनी कोई भी चीज थी. उसे मीठा खाने का बहुत शौक था, उसे गुलाब जामुन और मोतीचूर के लड्डू बहुत पसंद थे."पिता रमेश सोलंकी
21 मार्च को दर्शन 19 साल के हो जाता. पिता रमेश ने आह भरते हुए कहा, "उसकी याद में हमने अपने पड़ोस के छोटे बच्चों को लड्डू बांटे."
जेएनयू में एक ढाबे पर एक कप चाय के साथ रमेश सोलंकी ने याद किया कि कैसे दर्शन ने 12 वीं कक्षा में प्रवेश करते समय टीवी केबल कनेक्शन काट दिया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी में कोई ध्यान भंग न हो.
पिता ने कहा, "दो साल से हमारे घर में कोई केबल कनेक्शन नहीं था क्योंकि वह जेईई की तैयारी कर रहा था... मैं उसे हर दिन याद करता हूं."
सोलंकी के घर में मातम छाया हुआ है और दर्शन की मां तरलिकाबेन ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया है. रमेश ने कहा, "कभी-कभी मैं उसे दर्शन की तस्वीरों को एकटक देखते हुए या उसके फोन पर उसके वीडियो को देखते हुए पता हूं."
'कैंपस में जातिगत भेदभाव की जांच के लिए निगरानी समिति की आवश्यकता': जेएनयूटीए अध्यक्ष
रमेश एनसीएससी की सुनवाई के लिए दिल्ली में थे और वो छात्रों के एक समूह, कलेक्टिव द्वारा आयोजित एकजुटता बैठक के लिए जेएनयू परिसर में आए थे.
बैठक में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) के अध्यक्ष प्रोफेसर डीके लोबियाल भी मौजूद थे. उन्होंने कहा, “संभ्रांत/एलिट परिसरों में प्रणालीगत जातिगत भेदभाव एक वास्तविकता है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है. यह प्रकट और गुप्त तरीकों से होता है. जब भेदभाव गुप्त रूप से हुआ हो तो सबूत जुटाना बहुत मुश्किल होता है.”
उन्होंने कहा कि पिछड़े समुदायों से संबंधित छात्रों को अक्सर अपने परिवार की खस्ताहाल वित्तीय स्थिति के अतिरिक्त दबाव से निपटना पड़ता है और अक्सर संस्थान और प्रशासन से कोई सहायता नहीं मिलती है.
APPSC ने आरोप लगाया था कि अधिकांश IIT में SC / ST सेल कार्यात्मक नहीं थे. केवल दो IIT इन इकाइयों को धन आवंटित करते थे, और केवल तीन IIT ने एक कमरा आवंटित किया है. इस स्टूडेंट बॉडी ने एक आरटीआई के आधार पर यह निष्कर्ष निकाले हैं.
यह पूछे जाने पर कि एलिट परिसरों में छात्रों, विशेष रूप से हाशिए के समुदायों से आने वाले छात्रों के लिए अनुकूल वातावरण कैसे सुनिश्चित किया जाए, प्रोफेसर लोबियाल ने टिप्पणी की, "IIT के फैकल्टी को छात्रों से भी अधिक इस मुद्दे पर संवेदनशील होने की आवश्यकता है. इसके अलावा, एंटी-रैगिंग समितियों की तर्ज पर जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए एक निगरानी समिति की आवश्यकता है.”
उन्होंने कहा कि फैकल्टी के पदों के लिए आरक्षण देकर हाशिये पर रहने वाले समुदायों से संबंधित छात्रों को परिसर में कुछ समर्थन दिया जा सकता है.
दूसरी तरफ, रमेश सोलंकी लड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित है और वो दुःख को अपने ऊपर हावी नहीं होने दे रहे हैं. उनका उद्देश्य है कि- "ऐसा अन्य छात्रों के साथ नहीं होना चाहिए, और भगवान न करे अगर ऐसा होता है, तो मेरी लड़ाई अन्य माता-पिता को बोलने के लिए प्रेरित करेगी और कानून बनाने वालों को परिसर में जातिगत भेदभाव की जांच करने के लिए प्रेरित करेगी."
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