सोशल मीडिया पर इन दिनों दिल्ली में 'मौलवियों की तनख्वाह' के मुद्दे ने तूल पकड़ा हुआ है. दावा किया जा रहा है कि दिल्ली सरकार मौलवियों को हर महीने 42000 रुपए वेतन देती है. इंटरनेट पर उन मंदिरों की तस्वीरें भी शेयर हो रही हैं जहां कथित तौर पर मंदिर के पुजारियों ने इसके विरोध में बोर्ड लगाए हैं.
किसने किया ये दावा ? : पश्चिमी दिल्ली से विधायक और बीजेपी नेता परवेश वर्मा ने 21 नवंबर को किए अपने ट्वीट में ये दावा किया.
परवेश वर्मा के ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने ये दावा करना शुरू कर दिया. अर्काइव यहां, यहां और यहां देखे जा सकते हैं. दिल्ली के मंदिर की बताई जा रही एक फोटो भी वायरल है, जिसके बाहर लगे पोस्टर पर मौलवियों को 42000 रुपए वेतन मिलने का जिक्र है.
क्या ये सच है ? : मौलवी कोई पद नहीं बल्कि इस्लामिक शिक्षा की एक डिग्री है. दिल्ली में सभी मौलवियों को 42000 सैलरी मिलने के दावे में कोई सच्चाई नहीं है. इसकी पुष्टि वक्फ बोर्ड के सेक्शन अधिकार माशूक मोहम्मद ने क्विंट से की. क्विंट ने जब इस मामले की पड़ताल की तो ये जरूरी तथ्य सामने आए
दिल्ली वक्फ बोर्ड या फिर दिल्ली सरकार की तरफ से सभी मौलवियों को कोई तनख्वाह नहीं दी जाती. हां, वक्फ बोर्ड की तरफ से मस्जिद के इमाम और मुअज्जिन को मानदेय मिलता है.
दिल्ली वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आने वाली मस्जिदों के इमाम को 18,000 और मुअज्जिन को 16,000 रुपए प्रतिमाह मानदेय मिलता है. वहीं जो मस्जिदें वक्फ बोर्ड के दायरे में नहीं हैं, वहां इमाम को 14,000 रुपए और मुअज्जिन को 12,000 रुपए मानदेय मिलता है.
2019 तक उन्हीं मस्जिदों के इमाम - मुअज्जिन को मानदेय मिलता था जो वक्फ बोर्ड के दायरे में आती थीं. 2019 के बाद उन मस्जिदों के इमाम- मुअज्जिन को भी मानदेय मिलने लगा, जो वक्फ बोर्ड के सीधे कंट्रोल में नहीं हैं.
हमने ये सच कैसे पता लगाया ? : 2019 की कुछ न्यूज रिपोर्ट्स हमें मिलीं, जिनसे पता चलता है कि इस साल में दिल्ली की मस्जिदों के इमाम और मुअज्जिनों का मानदेय बढ़ाकर 18,000 रुपए और 16,000 रुपए कर दिया गया था.
इस दौरान बीजेपी ने आरोप भी लगाया था कि आचार संहिता लागू होने के बाद ये मानदेय बढ़ाया गया. निर्वाचन आयोग ने इस आरोप की जांच करने के आदेश दिए थे.
इन रिपोर्ट्स में कहीं भी 42,000 रुपए हर महीने सैलरी का जिक्र नहीं था, जैसा कि वायरल मैसेज में दावा किया गया है. हमने इस दावे का सच जानने के लिए दिल्ली वक्फ बोर्ड में सेक्शन ऑफिसर महफूज मोहम्मद से संपर्क किया.
महफूज मोहम्मद ने क्विंट को बताया कि दिल्ली में 42,000 रुपए का मानदेय/वेतन किसी इमाम या मोअज्जिन को नहीं मिलता है. उन्होंने आगे बताया
दिल्ली में जिन मस्जिदों का नियंत्रण वक्फ बोर्ड करता है, वहां इमाम को 18 हजार और मुअज्जिन को 16 हजार रुपए मानदेय प्रतिमाह मिलता है. 2019 के बाद से कुछ ऐसी मस्जिदों के इमाम और मुअज्जिन को भी क्रमश: 14,000 रुपए और 12,000 रुपए वेतिन दिया जा रहा है जो वक्फ के सीधे कंट्रोल में नहीं हैं.महफूज मोहम्मद, सेक्शन ऑफिसर वक्फ बोर्ड
दिल्ली में कुल कितने इमामों को मानदेय मिलता है ? : लगभग 1250 मस्जिदों के इमाम और मुअज्जिन को मानदेय मिलता है.
महफूज मोहम्मद के मुताबिक, ''दिल्ली वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आने वाली तकरीबन 200 मस्जिदों के इमाम को 2019 के पहले से ही मानदेय मिल रहा है. 2019 के बाद से अन्य 1050 मस्जिदों को भी मानदेय दिया जाने लगा. ये वो मस्जिदें हैं जिन्हें वक्फ बोर्ड ने तय प्रक्रिया के तहत वेरिफिकेशन के बाद यहां नियुक्त इमाम को मानदेय देना शुरू किया. ऐसी कुल मस्जिदें लगभग 2000 हैं, पर जिनका वेरिफिकेशन पास हो रहा है वहीं के इमाम-मुअज्जिन को वक्फ बोर्ड मानदेय देता है''
2019 में अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी में दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अमानतउल्लाह खान ने इमामों का मानदेय बढ़ाने का ऐलान किया था. इसी दौरान दिल्ली सरकार ने ये भी ऐलान किया था कि अब वक्फ बोर्ड दिल्ली की उन मस्जिदों के इमाम को भी मानदेय देगा जो वक्फ के दायरे में नहीं आते.
सिर्फ AAP सरकार में दी जा रही इमाम को सैलरी ? : नहीं, 2013 की कुछ रिपोर्ट्स भी हमें मिलीं, जिनसे पता चलता है कि शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इमाम और मुअज्जिन का मानदेय 6,220 और 5,022 रुपए प्रति माह से बढ़ाकर 10,000 और 9,000 किए जाने को मंजूरी दी थी.
कब से शुरू हुआ इमाम को मानदेय मिलने का सिलसिला ? : 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश दिए थे कि वक्फ बोर्ड को ऐसी स्कीम बनानी चाहिए जिससे मस्जिदों के इमामों की आजीविका का प्रबंध हो सके. साथ ही ये भी कहा था कि सेंट्रल वक्फ बोर्ड इस मामले में जो स्कीम बनाता है, राज्यों के वक्फ बोर्ड उसी का पालन करेंगे. सुप्रीम कोर्ट का 1993 का आदेश आप यहां पढ़ सकते हैं. रकार
दिल्ली वक्फ बोर्ड के महफूज़ मोहम्मद बताते हैं ''2010 में ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन ने दिल्ली सरकार से मानदेय बढ़ाने की मांग की थी, इसके बाद सरकार की तरफ से बोर्ड को 20 लाख रुपए ग्रांट देने का आश्वासन मिला.'' तब से अब तक बोर्ड को दिल्ली सरकार की तरफ से ग्रांट जारी है.
साल 2019 में जब इमामों का मानदेय बढ़ाया गया, तब दिल्ली सरकार ने वक्फ बोर्ड को दी जाने वाली ग्रांट 37 करोड़ रुपए फिक्स कर दी. इसके बाद ये बढ़कर 62 करोड़ रुपए हो गई. इस ग्रांट से उपयोग वक्फ बोर्ड विधवा महिलाओं की पेंशन, बोर्ड के स्टाफ की तनख्वाह और इमाम, मुअज्जिम को मानदेय देता है.महफूज मोहम्मद, सेक्शन ऑफिसर दिल्ली वक्फ बोर्ड
क्या इमाम के मानदेय के लिए वक्फ को ग्रांट देने के लिए बाध्य है सरकार ? : वक्फ मामलों के जानकार और मध्यप्रदेश वक्फ बोर्ड के पूर्व सीईओ एसएचएम जैदी से हमने संपर्क किया. उन्होंने क्विंट को बताया कि ''सरकार 1993 के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के आधार पर इमाम को मानदेय देने के लिए बाध्य नहीं है, क्योंकि ये आदेश वक्फ बोर्ड को दिया गया था न की सरकार को''.
एसएचएम जैदी आगे बताते हैं ''वक्फ की प्रॉपर्टी आदि से जो बोर्ड की आय होती है, उससे वो अपने स्टाफ और इमाम, मुअज्जिन को मानदेय दे सकते हैं. लेकिन, आमतौर पर वक्फ की आय बोर्ड के खर्च से कम होती है, इसलिए राज्य सरकारों की तरफ से उन्हें ग्रांट मिलती है.''
इमाम को मिलने वाला मानदेय अभी चर्चा में क्यों ? : हाल में दिल्ली सरकार से एक RTI में जवाब मांगा गया था कि इमाम को सरकार की तरफ से कितना वेतन मिलता है ? इस मामले में RTI का साफ जवाब ना देने पर मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) ने दिल्ली सरकार की आलोचना की थी. साथ ही ये जानकारी सार्वजनिक की थी कि सरकार की तरफ से बोर्ड को सालाना 62 करोड़ रुपए की ग्रांट मिलती है.
पड़ताल का निष्कर्श : मतलब साफ है, ये दावा सच नहीं है कि दिल्ली की मस्जिदों में नियुक्त इमामों को 42 हजार वेतन मिलता है. असल में वक्फ बोर्ड के नियंत्रण वाली मस्जिदों के इमाम को 18,000 रुपए और मुअज्जिन को 16,000 रुपए मानदेय मिलता है.
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