'हेलो, मैम?'
रविवार की सुबह एक कॉल ने मुझे झकझोर कर रख दिया, मैंने पूछा- 'हां सरिता, क्या तुम्हे अपना भाई मिला? चार दिन हो गए हैं.'
सरिता की आवाज और भारी हो गई, उसने कहा- 'हां हमें उनकी लाश GTB अस्पताल के मुर्दाघर में मिली है.'
'वो बच्चों के लिए दूध लेने गए थे'
मैं 28 फरवरी को दिल्ली के बृजपुरी क्षेत्र की एक गली में सरिता और उसकी भाभी सुनीता से मिली थी. सुनीता गर्भवती थीं. मैं राहुल सोलंकी के परिवार से मिलने गई थी जिसकी दिल्ली हिंसा में मौत हो गई थी, और राहुल सोलंकी के पिता ने मुझे सुनीता से मिलाया.
सुनीता और उनके तीनों 10 साल से कम उम्र के बच्चे गली में इधर-उधर बेहताशा घूम रहे थे.
“मंगलवार 25 फरवरी को मेरे पति (प्रेम सिंह) बच्चों के लिए दूध और खाना खरीदने के लिए घर से निकले थे. आसपास की सभी दुकानें बंद थीं. मुझे नहीं पता था कि वो कहां गायब हो गए.”सुनीता
क्या तुम पुलिस स्टेशन गईं? मैंने पूछा.
"जी मैडम. मैं गोकलपुरी और दयालपुर पुलिस थानों में गई थी. उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी और मुझे भगा दिया."
मैं उसे अपने साथ एक सीनियर पुलिसकर्मी से मिलने ले गई, जो इलाके में पेट्रोलिंग कर रहे थे. उन्होंने मुझे सुनीता की ओर से एक शिकायत लिखने के लिए कहा.
एसएचओ गोकुलपुरी को संबोधित शिकायत में, मैंने लिखा:
27 साल के प्रेम सिंह बच्चों के लिए दूध खरीदने निकले थे. वो सुबह 8 बजे घर से निकले थे लेकिन उस दिन के बाद से वापस नहीं आए.
ऑटो रिक्शा चालक प्रेम सिंह परिवार में अकेले कमाने वाले सदस्य थे.
बहुत मुश्किल से सरिता ने सुनीता को दिलासा दिया, जो टूटने और कठोर दिखने के बीच अपनी छोटी बेटी को गोद में लिए हुए थी.
मैंने शिकायत लिखी तो सुनीता ने नीली स्याही में अपना दाहिना अंगूठा डुबो दिया और शिकायत पर मुहर लगा दी. सीनियर ऑफिसर ने परिवार के साथ हेड कांस्टेबल को थाने भेजते हुए कहा, "FIR दर्ज होने के बाद, उन्हें ढूंढने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.”
रोते हुए सरिता ने कहा, “सर, प्लीज हमारी मदद करें. कोई भी गरीब लोगों की नहीं सुनता है.” अधिकारी ने उसे हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. जीप में सवार परिवार को गोकुलपुरी पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां FIR दर्ज की गई.
हिरासत में लिए गए लोगों के बीच उसकी तलाश करेंगे: पुलिस
एक दिन बाद 29 फरवरी को सरिता ने मुझे शाम को बुलाया. “पुलिस ने हमें प्रेम की फोटो लेकर पुलिस स्टेशन जाने के लिए कहा है. आसपास की सभी दुकानें बंद हैं. मैं कहां जाऊं, मैडम?"
किसी तरह वो पुलिस स्टेशन पहुंची. “मैडम, उन्होंने जांच शुरू कर दी है. अगर हिंसा के दौरान हिरासत में लिए गए सैकड़ो में से कोई एक है, तो वो पहले जांच करेंगे. अगर वो वहां नहीं है, तो हमें अस्पताल जाकर पता करना होगा.”
परिवार ने जीटीबी हॉस्पिटल जाने की हिम्मत नहीं जुटाई थी. सरिता ने कहा, "मैं डरी हुई हूं. अगर कोई गलत खबर हुई तो क्या होगा?"
सरिता की आखिरी कॉल
सरिता ने मुझे रविवार की सुबह फोन किया.
“पुलिस ने मेरे भाई को हिरासत में लिए गए लोगों में नहीं पाया. इसलिए उन्होंने हमें अस्पताल के वार्डों की जांच के लिए एक लेटर दिया. हमने घायलों के बीच उन्हें खोजा लेकिन वो नहीं मिले. फिर हमें शवगृह ले जाया गया, जहां हमें उनका शव मिला. हमें सिर्फ उनका चेहरा दिखाया गया.”
परिवार पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रहा है ताकि पता चल सके कि प्रेम की मौत कैसे हुई. सरिता ने कहा, "अस्पताल ने कहा इससे पहले कि वो मेरे भाई के शव को हमारे हवाले कर सकें, कुछ समय और लगेगा.”
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