देश- विदेश के 190 मशहूर अर्थशास्त्रियों और समाज विज्ञानियों ने एनपीआर और 2021 की जनगणना को साथ जोड़ने पर चिंता जताई है और एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर सरकार से इसे अलग-अलग करने की मांग की है. दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वालों में लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के मैत्रैश घटक और जवाहर लाल नेहरू यूनवर्सिटी के एस इरफान हबीब और जयति घोष शामिल हैं.
इन अर्थशास्त्रियों और समाज विज्ञानियों ने कहा कि जनगणना एक अहम काम है जो केंद्र और राज्य सरकारों को कल्याणकारी योजनाएं बनाने और उन्हें लागू कराने में मदद करती है.लेकिन इसके साथ नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर का नाम जनगणना के साथ जोड़ने की वजह से इसके प्रति आशंका और अविश्वास पैदा होने लगा है.
‘इस वक्त NPR की कोई जरूरत नहीं’
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक खबर के मुताबिक इस डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि लोगों में इस बात को लेकर डर है कि एनपीआर उनकी नागरिकता तय कर सकता है. उन्हें लग रहा है कि सही जवाब न मिलने पर उन्हें संदिग्ध नागरिक की कैटेगरी में रख दिया जाएगा. इस वजह से एनपीआर के प्रति लोगों में अविश्वास और शक बढ़ रहा है. यह भी साफ नहीं कि इस वक्त एनपीआर की एक्सरसाइज से कोई फायदा होगा कि नहीं.
जनगणना के साथ एनपीआर के लिए गणना नहीं कराई जा सकती है. यह जनगणना कानून, 1948 के क्लॉज 15 का उल्लंघन है.
इस डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि जनगणना, 2021 की विश्वसनीयता बचाने के लिए इससे एनपीआर के लिए की जाने वाली गणना को पूरी तरह अलग कर दिया जाए. इस वक्त एनपीआर के लिए डेटा कलेक्शन की किसी भी कोशिश को रोक दिया जाना चाहिए.
क्या है NPR ?
एनपीआर यानी नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर भारत में रहने वाले स्वाभाविक निवासियों का एक रजिस्टर है. इसे ग्राम पंचायत, तहसील, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है. नागरिकता कानून, 1955 और सिटिजनशिप रूल्स, 2003 के प्रावधानों के तहत यह रजिस्टर तैयार होता है
देश के हर निवासी की पूरी पहचान और अन्य जानकारियों के अधार पर उनका डेटाबेस तैयार करना इसका मकसद है.
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