देश में EVM यानी Electronic Voting Machine को लेकर चर्चा तेज है. 5 राज्यों के चुनाव के बाद फिर EVM को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. यूपी (Uttar Pradesh) में विपक्षी पार्टियां EVM से छेड़छाड़ का आरोप लगा रही हैं. यूपी के वाराणसी में एसपी कार्यकर्ताओं ने गाड़ियों में लदी EVM मशीनें पकड़ी, जिसके बाद से बवाल मचा है. सोशल मीडिया पर इससे जुड़े कई वीडियो वायरल हो रहे हैं. 10 मार्च को काउंटिंग से पहले EVM से छेड़छाड़ के आरोप लग रहे हैं.
ऐसे में आपके मन में भी EVM को लेकर कई तरह के सवाल चल रहे होंगे. तो चलिए फिर आपको बताते हैं कि, कितनी सुरक्षित है EVM मशीन?
क्या EVM को हैक किया जा सकता है?
चुनाव आयोग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) के पूरी तरह सुरक्षित होने का दावा करता है. लेकिन देश में पिछले कुछ सालों से चुनाव के बाद EVM की सुरक्षा पर सवाल उठे हैं. कई बार तो EVM को हैक करने के भी आरोप लगे हैं.
11 साल पहले अमेरिका की Michigan University से जुड़े वैज्ञानिकों ने एक डिवाइस को मशीन से जोड़कर दिखाया था कि मोबाइल से संदेश भेजकर मशीन के नतीजों को बदला जा सकता है.
हालांकि, भारत की कई संस्थाओं ने इस दावे को खारिज कर दिया था. कहा गया था कि, मशीन से छेड़छाड़ करना तो दूर, ऐसा करने के लिए मशीन हासिल करना ही मुश्किल है. 2017 में चुनाव आयोग ने EVM की विश्वसनीयता को लेकर कहा था कि, "भारत निर्वाचन आयोग साफ-साफ शब्दों में दोहराता है कि कारगर तकनीक एवं प्रशासनिक रक्षोपायों को देखते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें हेर-फेर किए जाने लायक नहीं हैं."
वहीं, इस मामले में कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पड़े पैमाने पर वोटिंग मशीनों को हैक करने के लिए काफी पैसे की जरूरत होगी.
EVM से कैसे होती है वोटों की गिनती ?
काउंटिंग कई चरणों में होती है. सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती की जाती है. डाक मतों की गिनती शुरू होने के आधे घंटे बाद ही EVM से गिनती शुरू होती है. काउंटिंग करने वाले अधिकारी सबसे पहले EVM पर लगी सील की जांच करते हैं और देखते हैं कि कहीं मशीन से छेड़छाड़ तो नहीं हुई है. हर राउंड में 14 EVM खोली जाती हैं.
EVM मशीन में मौजूद रिजल्ट बटन को दबाने से पता चलता है कि किस कैंडिडेट को कितने वोट मिले हैं. इस प्रक्रिया में 2-3 मिनट का समय लगता है. इसे डिस्प्ले बोर्ड पर फ्लैश किया जाता है.
हर राउंड की मतगणना के नतीजे राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी को बताए जाते हैं. ऐसा तब तक चलता है जब तक आखिरी नतीजे नहीं आ जाते हैं.
भारत में कब शुरू हुई EVM से वोटिंग?
साल 1998 में पहली बार EVM से चुनाव करवाने पर सहमति बनी. इसके बाद प्रायोगिक तौर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों पर EVM से चुनाव करवाए गए थे.
साल 1999 में 45 लोकसभा सीटों पर और फिर फरवरी 2000 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में 45 विधानसभा सीटों पर EVM से चुनाव हुए.
2001 में पहली बार तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल में सभी विधानसभा सीटों पर EVM से चुनाव कराए गए. इसके बाद से सभी चुनाव के लिए EVM का प्रयोग हो रहा है.
2004 के लोकसभा चुनाव में देश की सभी 543 सीटों पर EVM से चुनाव हुए थे. मतदान के लिए 10 लाख से अधिक EVM का इस्तेमाल हुआ था.
अन्य देशों में कैसे होते हैं चुनाव ?
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग राय है. एक तरफ कई देश चुनाव के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं. तो दूसरी तरफ यूरोप के कुछ देश ऐसे भी हैं जो EVM सिस्टम के इस्तेमाल से दूर जा रहे हैं.
दुनिया की 20 से ज्यादा देशों में चुनाव किसी न किसी तरह की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से होती है. साल 1998 में इस सूची में भारत का नाम भी जुड़ा गया.
भारत ने जॉर्डन, मालदीव, नामीबिया, मिस्र, भूटान और नेपाल को EVM संबंधित तकनीकी सहायता दी है. जिनमें भूटान, नेपाल और नामीबिया भारत में बनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड सहित दुनिया के कई देशों ने EVM के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है. अमेरिका भी ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करता है.
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