उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कुनबे में वर्चस्व की लड़ाई का अंत होता दिख रहा है और अगर फिलहाल इसका वर्णन करना हो तो एक हिट बॉलीवुड फिल्म का नाम याद आता है, ‘हम साथ साथ हैं’. दो दिन पहले यादव खानदान में उठे अहम् का टकराव अब धीरे धीरे खत्म होता दिख रहा है.
शायद कल तक अहंकार की लड़ाई लड़ने वाले मंद मंद स्वर में बुदबुदा रहे हैं कि ‘जान बची तो लाखों पाए लौट के बुद्धू घर को आए’.
नेताजी ने नैय्या पार लगा दी
पार्टी और परिवार के लोगों का कहना है कि तूफान अब थम चुका है. और पार्टी की नैय्या भी मझदार से निकल चुकी है. और खेवनहार हमेशा की तरह नेता जी यानी मुलायम सिंह यादव हैं.
जब जब परिवार में कलह होती है और विरोध के स्वर मुखर होते हैं तो एक ही बात निकल कर आती है - जो नेता जी कहेंगे हम वही मानेंगे.
यानी सारा मामला ‘नेताजी शरणम् गच्छामि’ हो जाता है. इस बार यही होता दिख रहा है. नेताजी ने अपने पुत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के तेवर शांत कर दिए और रूठे सगे भाई शिवपाल को भी मना लिया.
अब बात पार्टी की बहुचर्चित संसदीय बोर्ड बैठक की
सूत्रों की मानें तो इस बैठक की कोई आवश्यकता ही नहीं है. ये बैठक तभी बुलाई जाती है जब टिकट बंटवारा हो, राज्यसभा या विधानपरिषद में किसी का नामांकन करना हो या किसी को पार्टी से निष्कासित करने पर फैसला लेना हो. या कोई और बहुत बड़ा मुद्दा सामने हो, जिसपर चर्चा करनी हो.
पार्टी और सरकार में क्या होना है, इसका फैसला नेता जी ले चुके हैं. क्षत्रपों का गुस्सा अब शांत हो चुका है. दिलों में टीस भले ही बाकी रह गई हो, लेकिन प्रदेश में चुनाव सर पर हैं इसलिए मजबूरी में साथ-साथ रहने के आलावा कोई चारा नहीं है.
हो चुकें हैं सारे मुद्दों पर फैसले
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल यादव से छीने गए सभी मंत्रालय वापस कर देंगे.शिवपाल का प्रदेश की राजनीति में वही कद हो जायेगा जो चंद रोज़ पहले हुआ करता था.
एक ही बात जिसपर अभी पेंच फंसा हुआ है वो ये है की उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष कौन रहेगा.
चंद दिन पहले ये पद मुख्यमंत्री अखिएश यादव के पास था. फिर मुलायम सिंह ने ये पद शिवपाल को सौंप दिया था. प्रदेश में विधानसभा चुनाव सर पर हैं और जो भी नेता उस पद पर आसीन होगा टिकटों के बंटवारे में उसी की चलेगी.
मुख्यमंत्री अखिलेश हों या उनके चाचा शिवपाल, दोनों इस पद की दावेदारी आसानी से नहीं छोड़ना चाहेंगे. इसके लिए भी पार्टी में एक फॉर्मूला बताया जा रहा है.
अगर शिवपाल से ये पद वापस लेना ज्यादा टेढ़ी खीर साबित होता है तो उसी प्रभाव का एक और पद बना दिया जायेगा, जिससे अखिलेश यादव की भी टिकट बंटवारे में बराबर की चले.
लेकिन समाजवादी के सूत्र कहते हैं कि ये मसला कोई बड़ा नहीं है क्योंकि सौ बीमारी का एक इलाज हैं नेता जी, समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव के लिए मशहूर है कि - न खाता न बही, जो नेता जी कहें वही सही.
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