ADVERTISEMENTREMOVE AD

UK में Pfizer कोरोना वैक्सीन को मंजूरी, कैसे मिलेगी ये वैक्सीन?

यूनाइटेड किंगडम (UK) कोरोना वायरस डिजीज की वैक्सीन को मंजूरी देने वाला पहला देश बन गया है

Updated
फिट
2 min read
छोटा
मध्यम
बड़ा

यूनाइटेड किंगडम (UK) कोरोना वायरस डिजीज की वैक्सीन को मंजूरी देने वाला पहला देश बन गया है.बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यूके ने फाइजर-बायोएनटेक की कोरोना वैक्सीन को अगले हफ्ते से इस्तेमाल की इजाजत दे दी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
क्या Pfizer/BioNTech की इस वैक्सीन से भारत के लिए कोई उम्मीद है? क्या कोई यूके जाकर ये वैक्सीन लगवा सकता है? भारत की कोवैक्सीन फाइजर की वैक्सीन से कितनी अलग है? जानिए इन सवालों के जवाब.

भारत के लिए Pfizer की वैक्सीन के क्या मायने हैं?

अफसोस कि भारत को इससे कोई खास फायदा नहीं होने वाला है.

फिट ने पहले इस सिलसिले में वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील से बात की थी, जो अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर भी हैं.

ज्यादा खुश नहीं हुआ जा सकता है कि निकट भविष्य में ये वैक्सीन भारत में हम तक पहुंचेगी क्योंकि ऐसा नहीं होगा.
डॉ शाहिद जमील

इस वैक्सीन को अल्ट्रा-कोल्ड तापमान में स्टोर करना है. बहुत ठंडे कंटेनर में -70 डिग्री या इससे भी कम तापमान पर. वैक्सीन का वितरण और कोल्ड चेन बहुत बड़ी चुनौती है.

इसलिए निश्चित रूप से ये वो वैक्सीन नहीं है, जिसे आप भारत में ज्यादा लोगों को देने के बारे में सोच सकते हों क्योंकि भारत में इस तरह की कोल्ड चेन के लिए बुनियादी ढांचा नहीं है. शायद, कुछ बहुत अमीर लोग जो बहुत सारे पैसे दे सकते हैं वे इसे ले सकने में सक्षम हो सकते हैं, वह भी अगर वैक्सीन भारत में उपलब्ध हो जाए.
डॉ शाहिद जमील, वायरोलॉजिस्ट
0

क्या कोई यूके जाकर ये वैक्सीन लगवा सकता है?

यूके को यह तय करना होगा कि उनकी प्राथमिकता के मुताबिक पहले किसे वैक्सीन दी जाए. इस लिस्ट में सबसे पहले हेल्थकेयर वर्कर्स, 80 से ज्यादा की उम्र वाले लोग और दूसरे स्वास्थ्य व सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं. वैक्सीन की और डोज उपलब्ध होने के बाद 50 से अधिक उम्र वाले लोग, पहले से किसी बीमारी से जूझ रहे युवा लोगों के वैक्सीनेशन की व्यवस्था होगी.

क्या भारत के लिए कोई उम्मीद नहीं है?

Credit Suisse के रिसर्च के मुताबिक भारत के लिए ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन, 'कोविशील्ड', भारत बायोटेक और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की 'कोवैक्सीन', नोवावैक्स, जाइडस कैडिला, जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन खास हैं.

डॉ जमील के मुताबिक फाइजर की वैक्सीन का डेवलपमेंट इस लिहाज से अच्छा है कि इससे mRNA वैक्सीन का कॉन्सेप्ट साबित हुआ है.

भारत अच्छी स्थिति में है कि आने वाले महीनों में, हमारे पास कम से कम 3 या 4 कैंडिडेट वैक्सीन होने की संभावना है जो मूल रूप से इसी वैक्सीन के सिद्धांत पर काम कर रहे हैं- mRNA नहीं, लेकिन वायरस के उसी हिस्से पर और उम्मीद है, वे भी प्रभावी होंगे.
डॉ शाहिद जमील, वायरोलॉजिस्ट
ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारत की कोवैक्सीन फाइजर की वैक्सीन से कितनी अलग है?

डॉ शाहिद जमील बताते हैं कि दोनों बहुत अलग हैं. COVAXIN पूरा वायरस है. इस तरह की इनएक्टिवेटेड पैथोजन वाली वैक्सीन की प्रक्रिया ये है कि आप बहुत से वायरस ग्रो करते हैं, उसे प्यूरिफाय करते हैं और फिर केमिकल से वायरस को इनएक्टिव कर देते हैं और पूरा इनएक्टिवेटेड वायरस इन्जेक्ट किया जाता है, जबकि mRNA वैक्सीन और यहां तक कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन वायरस के एक कंपोनेंट पर आधारित हैं, जो कि स्पाइक प्रोटीन है. कोवैक्सीन में वायरस के सभी प्रोटीन हैं. इसलिए दोनों बहुत अलग वैक्सीन हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×