ADVERTISEMENTREMOVE AD

देश की पहली महिला डॉक्टर रुखमाबाई राउत को गूगल का सलाम

रुखमाबाई राउत का 153वां जन्मदिवस है. इस मौके पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको समर्पित किया है.

Published
भारत
2 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

क्या आज के गूगल डूडल पर आपने गौर किया? ब्रिटिश राज में भारत में प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला डॉक्टरों में शुमार रुखमाबाई राउत को गूगल ने डूडल बनाकर सम्मान जताया है. इसके अलावा रुखमाबाई ही वो महिला थीं, जिनकी केस स्टडी की वजह से ही भारत के कानून में ऐतिहासिक 'एज ऑफ कॉन्सेंट एक्ट 1891' को शामिल किया गया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कौन थीं रुखमाबाई?

रुखमाबाई का जन्म  22 नवंबर 1864 में मुबंई में हुआ था. 8 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद उनकी मां ने डॉक्टर सखाराम अर्जुन से शादी कर ली थी. उस दौर में बाल विवाह एक आम प्रथा थी. महज 11 साल की उम्र में रुखमाबाई की शादी दादा जी भिकाजी से करवा दी गयी. रुखमाबाई शादी के बाद अपने पति के साथ नहीं रहती थीं, और अपने माता-पिता के घर में ही रहकर अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसके बाद पति ने उन्हें अपने साथ रहने के लिए दबाव डाला, लेकिन रुखमाबाई ने अपने पति के साथ रहने से साफ इंकार कर दिया. बाद में 1884 में उनके पति ने वैवाहिक अधिकारों का हवाला देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी, ताकि वो उसके साथ आकर रहें. कोर्ट ने रुखमाबाई से कहा कि वह या तो अपने पति के साथ रहें या जेल जाएं. रुखमाबाई ने दो-टूक जवाब दिया कि उन्हें जेल जाना ज्यादा पसंद होगा.

रुखमाबाई राउत का 153वां जन्मदिवस है. इस मौके पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको समर्पित किया है.
रुखमाबाई ने अपने बाल विवाह को मानने से साफ इंकार कर दिया था.
( फोटो : ट्विटर ) 
0
केस की सुनवाई में रुखमाबाई ने अदालत को तर्क दिया कि जिस समय उनकी शादी हुई थी, उस समय वो अपनी शादी के लिए अपनी सहमति नहीं दे पाई थीं, क्यूंकि जिंदगी के फैसले लेने के लिहाज से वो उस वक्त बहुत छोटी थीं और बिना उनकी रजामंदी से ही शादी करवा दी गयी. इसलिए वो इस शादी को नहीं मानती. जिस दौर में महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बोलने की आजादी नहीं थी, उस दौर में इस तरह के तर्क को किसी भी अदालत में इससे पहले कभी नहीं सुना गया था. उस समय रुखमाबाई की उम्र 25 साल थी.   
ADVERTISEMENTREMOVE AD

संघर्ष से मिली सफलता

रुखमाबाई के सौतेले पिता ने उनका केस लड़ने में उनकी मदद की, जिसके बाद उनके पति ने शादी को तोड़ने के लिए मुआवजा लेकर कोर्ट में समझौता कर लिया. इस तरह रुखमाबाई को जेल नहीं जाना पड़ा. इसके बाद एक सफल डॉक्टर के रूप में रुखमाबाई ने 35 साल तक अपना बेशकीमती योगदान दिया. इसके अलावा वह बाल विवाह के खिलाफ लिखकर और जागरुकता फैलाकर एक सक्रिय समाज सुधारक का काम भी करती रहीं. 25 सिंतबर 1991 को 91 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×