गुजरात में चुनाव की धूम शुरू हो चुकी है. लेकिन शहरों में नजर आने वाली ये हलचल क्या दूर-दराज गांव-देहात के इलाकों तक भी पहुंची है? ये जानने के लिए द क्विंट की टीम पहुंची अमरेली से 40 किलोमीटर दूर रामपुर गांव.
इसी गांव में वालजीभाई घेवरिया नाम के किसान ने पिछले साल आत्महत्या कर ली थी. उन्होंने खेती के लिए बैंक से लोन लिया था.
तीन बीघा जमीन के मालिक वालजीभाई की कपास की खेती बरबाद हो गई थी. और उन्हें डर था कि वो अपना कर्ज नहीं चुका पाएंगे. इसी डर ने वालजीभाई को मरने पर मजबूर कर दिया.
किसानों में नाराजगी, सरकार से नहीं मिली मदद
वालजीभाई के बेटे मुथुर अपने पिता के मौत पर बताते हैं कि इस साल उनकी फसल बर्बाद हो गई थी. जिस वजह से उनके पिता काफी परेशान थे.
मेरे पिता ने सुसाइड किया था क्योंकि हमारी फसल बर्बाद हो गई थी. कर्ज बहुत ज्यादा था जो हम चुका नहीं सकते थे. सरकार ने कोई मदद नहीं की. हमने सरकारी बीमा और गांव का सामूहिक बीमा करवाया था.
मूंगफली की खेती करने वाले किसान का दर्द
इस गांव में ज्यादातर किसान मूंगफली की खेती पर निर्भर है. 2016 में केंद्र सरकार ने 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' लागू की थी, लेकिन सौराष्ट्र के किसानों की शिकायत है कि उन्हें इसका फायदा नहीं मिलता है.
बीमा से हमें कुछ नहीं मिला. सरकार कोई जवाब नहीं देती. हम 12 रुपये वाला और 330 रुपये वाला बीमा भरते हैं, लेकिन जब पूछते हैं तो सरकार कहती है कि नामंजूर हुआ है.मुथुर, आत्महत्या करने वाले किसान का बेटा
वहीं रामपुर गांव के सरपंच प्रताप भाई रमकु भाई की भी यही शिकायत है कि किसान मुश्किल हालत में हैं. उनका कहना है कि एक तो फसल ही ठीक से नहीं होती अगर होती भी है, तो दाम ठीक से नहीं मिलता. किसान बीमा करवाता है, लेकिन मुआवजा नहीं मिलता.
सरकार पर अन्याय का लगा आरोप
सौराष्ट्र में ज्यादातर मूंगफली और कपास की खेती होती है. इसी को देखते हुए राज्य सरकार ने मूंगफली के लिए 4500 रुपये प्रति क्विंटल का रेट तय किया था. लेकिन किसान इसे छलावा बता रहे हैं. मूंगफली की खेती करने वाले लालभाई बोदर बताते हैं कि
सरकार ने कहा था कि कम से कम 900 रुपये (प्रति 20 किलो) के दाम से खरीदेंगे. लेकिन अगर बोरी में 35 किलो से कम मूंगफली हो तो 900 रुपये नहीं मिलते. ये सरकार किसानों से सरासर अन्याय कर रही है.
उनका ये भी कहना है कि जिनसे सरकार नहीं खरीदती उनसे यहां के व्यापारी 700-750 रुपये तक में ही खरीदते हैं.
"वादों से नहीं भरता है पेट"
राजनीतिक दल और सरकार से नाराज सौराष्ट्र के किसान पुरुषोत्तम भाई कहते हैं कि उन्हें अब किस पर भी भरोसा नहीं है.
इस चुनाव में हमें किसी पर विश्वास नहीं है. लेकिन हमें वोट तो किसी को देना ही है, लेकिन बूथ पर जाने के बाद ही जो हमारा दिल-दिमाग कहेगा उसे ही वोट डालेंगे. वादे तो बहुत बड़े-बड़े किए थे. लेकिन उस पर अमल नहीं किया. वादों से हमारा पेट भर चुका है. लेकिन व्यापार से हमारा पेट नहीं भरता. चाहे कोई भी सरकार हो.
सौराष्ट्र में किसान बीजेपी की सरकार से नाराज तो हैं, लेकिन वोट किसे करेंगे इसपर बोलने से बच रहे हैं.
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