पिराना की 'जहरीली' जिंदगी

अहमदाबाद में कूड़े के पहाड़ और लोग

हिमांशी दहिया
की गुजरात से ग्राउंड रिपोर्ट

"इस इलाके के हर घर में कोई न कोई हमेशा बीमार रहता है. पेट दर्द, चर्म रोग और कमजोर हड्डियां आम समस्याएं हैं" अहमदाबाद के पिराना में लैंडफिल साइट के पास कॉलोनी में रहने वाले हजारों लोगों में से एक जरीना बीवी ने क्विंट से कहा. ''हम यहां बीस साल से रह रहे हैं और हम बोरवेल का प्रदूषित पानी पी रहे हैं क्योंकि म्यूनिसपैलिटी मदद नहीं करती है.''

अहमदाबाद के बीचो बीच स्थित 80 एकड़ में फैले माउंट पिराना में 80 के दशक से कूड़ा फेंका जा रहा है. यहां 75 मीटर ऊंचे तीन कूड़े के ढेर हैं, जहां हर साल करीब डेढ़ मिट्रिक टन कूड़ा फेंका जाता है.

उनकी कॉलोनी में आसपास के कई इलाकों की तरह अहमदाबाद नगर निगम के नल से पानी की आपूर्ति नहीं होती है.

बाकी महिलाएं आसपास के इलाकों से पानी लाती हैं, लेकिन 61 साल की जरीना कहती हैं कि उनके घुटनों में दर्द है इसलिए वो दूर तक नहीं जा सकतीं और न ही भारी सामान उठा सकती हैं. वो कहती हैं- ''शहर से पानी लाना तो दूर, मैं तो टैंकर आने पर भी पानी नहीं भर पाती हूं, और मैं घर में अकेली हूं"

इसलिए जब पानी का टैंकर आता है तो जरीना की पोती नजमा को स्कूल नागा करना पड़ता है ताकि वो अपने घर के बाहर रखे पानी की टंकी को भर पाए.

अहमदाबाद के आस-पास रह रहे हजारों लोगों के लिए ये दुखद हो सकता है, लेकिन अब सामान्य चीज है

जरीना के घर से महज दो गलियां दूर कूड़े के पहाड़ के बगल में बांग्लादेशी चॉल है. यहां मुख्य तौर पर बांग्लादेशी प्रवासी और अहमदाबाद के दूसरे हिस्सों से विस्थापित आकर रहते हैं. यहां के लोग निगम के लगाए दो नलों पर पानी के लिए निर्भर हैं.

लैंडफिल के पास रहने वाली शाहीन बानो बताती हैं कि यहां के 25 परिवार सिर्फ इन दो नलों से ही पीने, नहाने, कपड़े धोने और बाकी कामों के लिए पानी लेने को मजबूर हैं.

शाहीन एक गृहिणी हैं. वो बताती हैं कि उनका ज्यादातर समय इसी फिकर में चला जाता है कि अपने परिवार के लिए पानी कहां से जुटाएं. वो कहती हैं- ''हमारे पास दस लीटर वाली तीन पानी की टंकी है लेकिन जब तक हमारी बारी आती है, नल में पानी आना बंद हो जाता है.''

गुस्से और हताशा से भरी भारती कहती हैं-''पूरा दिन कचरे में जाता है और शाम को पानी का टेंशन. म्यूनिसपैलिटी ने नल लगाया है लेकिन पानी नहीं आता''

चार बच्चों की मां और घर में अकेली कमाने वाली भारती अहमदाबाद के विशालकाय कूड़े के पहाड़ माउंट पिराना पर तब से काम कर रही हैं जब से होश संभाला.

प्याले में चाय डालते हुए 28 साल की भारती कहती हैं- ''छोटी थी तब से इधर ही हूं.''

भारती का असली संघर्ष तब शुरू होता है जब वो घर पहुंचती हैं, जो यहां से तीन किलोमीटर दूर गोपालपुर में है-  पानी के लिए संघर्ष

जरीना, भारती और शाहवाड़ी, सिटिजन नगर, पिपलज और एकता नगर में रहने वाले सैकड़ों परिवार के सामने दो में से एक को चुनने की मजबूरी है-या तो वो बोरवेल का प्रदूषित पानी पीएं या फिर टैंकरों से पानी लेने के लिए पैसे चुकाएं.

योजना, योजना और योजना...

गुजरात सरकार ने पिछले सालों में कई योजनाएं लागू की हैं ताकि राज्य के हर हिस्से में नल से जल मिल सके. मार्च में सुजलाम सुफलाम जल अभियान (SSJA) लॉन्च करते हुए सूबे के सीएम भूपेंद्र पटेल ने कहा था कि उनका टारगेट है कि 2022 के अंत तक राज्य के कोने-कोने तक नल से जल मिलने लगे.

''इस साल के अंत तक हम राज्य के हर कोने में नल से जल पहुंचाना चाहते हैं. भगवान महावीर ने हमें सिखाया है कि पानी को घी की तरह इस्तेमाल करना चाहिए. आज की जरूरत है कि हम पानी को सोच समझ कर इस्तेमाल करें.''

- गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, 20 मार्च 2022


नगरीय जल आपूर्ति और सीवर के लिए परफॉर्मेंस असेसमेंट सिस्टम (PAS Project) के तहत आने वाले सेंटर फॉर एनवायरनमेंट प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी (CEPT) यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के मुताबिक नवंबर 2022 तक अहमदाबाद की झुग्गियों में से सिर्फ 75% तक ही नल से जल पहुंच पाया था. गुजरात में अहमदाबाद सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शहरों में से एक हैं.

अक्टूबर 2022 में गुजरात के गृहमंत्री हर्ष सांघवी, भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबिता पात्रा और पार्टी के कई अन्य नेताओं ने दावा किया कि राज्य के सभी 18,187 गांवों के 92 लाख घरों में नल से जल दिया जा रहा है और इस तरह से गुजरात सौ फीसदी 'हर घर जल' वाला राज्य बन गया है.

लेकिन ये योजना सिर्फ ग्रामीण घरों को कवर करती है. इसमें शहरी क्षेत्रों का कोई जिक्र नहीं है.

गुजरात सरकार सरदार सरोवर प्रोजेक्ट के तहत 89 शहरों और 5,206 गांवों में भी पेयजल आपूर्ति करती है. इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है 9,633 गांवों और 131 शहरों को कवर करना.

सिजिटन नगर में रहने वाली 43 साल की रेश्मा मयूद्दीन पूछती हैं कि उन्हें ताज्जुब होता कि करोड़ों की इन योजनाओं के बावजूद उन्हें दो वक्त पानी क्यों नहीं मिलता?

क्विंट से रेश्मा ने कहा- ''हम लगातार सुनते रहते हैं कि सरकार योजना पर योजना लागू कर रही है लेकिन आप मॉनसून के समय हमारी कॉलोनी में आइए और आपको इन योजनाओं की हकीकत पता चल जाएगी. हमारे गले तक सीवर का पानी आ जाता है.

कई दिन तक पानी के टैंकर नहीं आते. ऐसे में हम आसपास के इलाकों से सिर पर पानी ढोकर लाते हैं. आपको लग सकता है कि किसी सुदूर गांव की कहानी होगी, लेकिन नहीं, ये अहमदाबाद में हो रहा है''

दूषित जल के साथ जीने को मजबूर

शाहीन कहती हैं-''हमने अपनी कॉलोनी में बोरवेल खुदवाए हैं क्योंकि टैंकर का पानी हम खरीद नहीं सकते. बोरवेल के पानी का स्वाद और गुणवत्ता खराब है लेकिन हमारे पास और क्या चारा है? कुछ परिवारों ने पीने के पानी के लिए RO लगाए हैं, लेकिन कपड़े धोने और नहाने के लिए हम डायरेक्ट बोरवेल का पानी ही इस्तेमाल करते हैं.''

क्विंट से बात करते हुए पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता रोहन ठक्कर कहते हैं कि भूजल के प्रदूषित होने का एकमात्र कारण लैंडफिल नहीं है.

रोहन ने राजस्थान और गुजरात में विलुप्त नदियों पर रिसर्च पेपर लिखे हैं. उन्होंने वन्यजीव संरक्षण और जलवायु परिवर्तन पर दुनिया की प्रतिक्रिया पर रिसर्च किया है..  

ठक्कर कहते हैं- ''राज्य सरकार और निगम लैंडफिल को हटाता नहीं और इसकी आड़ में केमिकल की कई फैक्ट्रियां इसके आसपास चल रही हैं. ये फैक्ट्रियां अपना गाद सीधे साबरमती नदीं में छोड़ती हैं. इन फैक्ट्रियों से निकला प्रदूषण भूजल में भी मिल रहा है. जब इनसे सवाल होता है तो ये कहते हैं कि लैंडफिल से प्रदूषण हो रहा है.''

गोपालपुर और सिटिजन नगर के लोग शिकायत करते हैं कि इन इलाकों में अस्थमा, कैंसर, हॉर्ट और किडनी से जुड़ी बीमारियां बढ़ गई हैं.

क्विंट ने इन इलाकों के आसपास निजी क्लीनिक चलाने वाले कई डॉक्टरों से बात की, ताकि इसकी पुष्टि की जा सके.

नरोल के बॉम्बे होटल एरिया में क्लीनिक चलाने वाले एमपी शाह बताते हैं कि बच्चों में पेट से जुड़ी बीमारियां जैसे कि डायरिया और डिसेंटरी की शिकायतें बढ़ गई हैं. एमपी शाह आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं और उनके पास BAMS (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) की डिग्री है.

शाह कहते हैं-''बच्चे अब पेट से जुड़ी शिकायतों को लेकर ज्यादा आ रहे हैं. मानसून में स्थिति और खराब हो जाती है. पानी की गुणवत्ता वाकई खराब है. कई अवैध बोरवेल हैं और लोग फिर भी इन बोरवेल से पानी के लिए दलालों को पैसे देने को मजबूर हैं.''

नेता आते हैं, नेता जाते हैं,

कूड़ा यहीं रहता है

पिछले कई सालों में पिराना लैंडफिल का मुद्दा राष्ट्रीय और राज्य के प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने कई बार उठाया है. भारती पूछती हैं-''मैंने कई बार सुना कि निगम को इस कूड़े के पहाड़ को हटाने का आदेश दिया गया है. लेकिन क्या ये हुआ?''

भारती का इशारा 20 अगस्त, 2019 को NGT (राष्ट्रीय ग्रीन ट्राइब्यूनल) के उस आदेश की तरफ था, जिसमें उसने अहमदाबाद नगर निगम को एक साल के अंदर यहां से कूड़ा हटाने का आदेश दिया था.

अप्रैल 2022 में निगम ने कूड़े के निपटारे के लिए 10 साल का टेंडर  निकाला. साफ था कि निगम को इस कूड़े को हटाने में 10 साल और लगेंगे. 

अपने 2 कमरों के घर के बाहर बैठी जरीना कहती हैं-''नेता सिर्फ चुनाव के वक्त आते हैं. मुझे नहीं लगता कि यहां से कूड़ा हटेगा लेकिन नेता कम से कम इतना तो कर सकते हैं कि हमें पानी और इलाज जैसी बुनियादी सुविधाएं मिलें.''

2002 के गुजरात दंगों में जरीना का घर तोड़ दिया गया. उसी के बाद ये सिटिजन नगर में आकर बस गईं.

पांच साल बाद पिराना के पास गलियों में बीजेपी, AAP और AIMIM के पोस्टर लगे हैं. शाहीन को चुनावों पर अब भरोसा नहीं रहा. कहती हैं-''नेता लोग तो आते-जाते रहते हैं. कचरा इधर ही रहता है''

उसने कहा कि नेता आते हैं, नेता जाते हैं, कूड़ा यहीं रहता है

और अब आपको कोई सबूत चाहिए तो देखिए पिराना लैंडफिल सालों तक कैसे बढ़ता रहा

यहां अब तक सिर्फ खोखले वादे हैं, लेकिन जैसे-जैसे 2022 के विधानसभा चुनाव करीब आ रहे हैं, उम्मीदवार अपने साथ पिराना के लोगों के लिए नए वादे और नई उम्मीदें लेकर आए हैं.

(क्विंट ने अहमदाबाद नगर निगम से इस मामले में प्रतिक्रिया जानने के लिए संपर्क किया है. प्रतिक्रिया आने पर स्टोरी अपडेट की जाएगी.)

क्रेडिट्स

रिपोर्टर
हिमांशी दहिया

मल्टीमीडिया प्रोड्यूसर
नमन शाह

ग्राफिक्स डिजाइनर
कामरान अख्तर

सीनियर एडिटर
सौम्या लखानी

क्रिएटिव डायरेक्टर
मेघनाद बोस

गुजरात चुनाव से जुड़ी ऐसी ही रोचक और जमीनी खबरों के लिए क्विंट का पूरा चुनावी कवरेज देखें

और अगर आप हमारी पत्रकारिता को सपोर्ट करना चाहते हैं तो लिंक पर क्लिक करें.