गुजरात आर्थिक तौर पर पिछड़े सामान्य वर्ग को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देने वाला पहला राज्य बनने जा रहा है. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने रविवार को बताया कि उनका राज्य सोमवार से इस आरक्षण व्यवस्था को लागू करने जा रहा है.
हाल ही में केंद्र सरकार इस आरक्षण व्यवस्था के लिए संविधान संशोधन बिल लेकर आई थी. इस बिल के संसद से पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी भी मिल चुकी है.
लोकसभा में यह बिल मंगलवार को पेश हुआ था. जहां इसके समर्थन में 323 वोट, जबकि इसके खिलाफ 3 वोट पड़े. इसके बाद बुधवार को यह बिल राज्यसभा में पेश किया गया. वहां इसके पक्ष में 165 वोट जबकि, विपक्ष में 7 वोट पड़े.
इस आरक्षण व्यवस्था को यूथ फॉर इक्वेलिटी नाम के NGO ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. अपनी याचिका में उसने इस व्यवस्था को संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन बताया है.
गुजरात में आनंदीबेन पटेल सरकार लाई थी सवर्णों के लिए आरक्षण
गुजरात में इससे पहले साल 2016 में आनंदीबेन पटेल सरकार ने आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा की थी. हालांकि उसी साल गुजरात हाई कोर्ट ने यह कहकर राज्य सरकार का ऑर्डिनेंस रद्द कर दिया था कि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं है.
साल 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण देने का आधार सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन होगा.
नए कानून पर उठ रहे हैं सवाल
नए कानून के कई प्रावधानों में एक प्रावधान यह भी है कि 8 लाख रुपये से कम सालाना आय वाले सामान्य वर्ग के लोग 10 फीसदी आरक्षण के हकदार होंगे. राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने इसे मजाक बताता है. क्विंट से खास बातचीत में उन्होंने कहा
8 लाख की लिमिट का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तकरीबन देश के 98 फीसदी लोग इसमें शामिल हो जाएंगे. जो 51% में से कम से कम 20 से 30% नौकरियां उन लोगों को जा रही है, जो जनरल कैटेगरी के हैं या उनकी इनकम 8 लाख से नीचे है. जिसे पहले से ही 20% मिल रहा है, उसे 10% आरक्षण से क्या फायदा होगा?योगेंद्र यादव
सवर्ण आरक्षण या मजाक? रिजर्वेशन की मूलभावना से खिलवाड़: योगेंद्र यादव
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