ज्ञानवापी मामले में अगली सुनवाई 30 मई को होगी. ज्ञानवापी मस्जिद सर्वेक्षण मामले में हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने बताया कि मुस्लिम पक्ष ने आज अपनी दलीलें शुरू कीं. बहस आज पूरी नहीं हो सकी. इसलिए, सोमवार, 30 मई को अगली सुनवाई होगी.
वाराणसी जिला अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर विवाद पर दीवानी मुकदमे की सुनवाई के एक दिन पहले बुधवार को हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि उपासना स्थल अधिनियम 1991, प्रार्थना स्थल की प्रकृति का पता लगाने पर रोक नहीं लगाता है,
निचली अदालत में पांच हिंदू महिला वादी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील सुभाष नंदन ने कहा था कि स्थान की धार्मिक प्रकृति को निर्धारित करना महत्वपूर्ण है और पिछले सप्ताह, सुप्रीम कोर्ट ने भी एक कहा था कि उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाना पूजा स्थल अधिनियम, 1991 द्वारा वर्जित नहीं है.
हिंदू पक्ष ने तर्क दिया था कि तत्कालीन मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1669 में काशी और मथुरा सहित कई मंदिरों को नष्ट करने के लिए 'फरमान' जारी किए थे, जिनकी हिंदुओं द्वारा प्रमुखता से पूजा की जाती थी. हिंदू दलों ने दावा किया कि तत्कालीन प्रशासन ने आदेश का पालन किया और वाराणसी में आदि विशेश्वर के मंदिर के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया और बाद में एक निर्माण किया गया, जिसके बारे में उन्होंने आरोप लगाया कि वह 'ज्ञानवापी मस्जिद' है.
क्या है हिंदू पक्षों का दावा?
दावा किया गया है कि इसके बावजूद वे हिंदू मंदिर के धार्मिक चार्टर को नहीं बदल सके, क्योंकि देवी श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश और अन्य संबंधित देवताओं की मूर्ति एक ही इमारत परिसर में बनी हुई है. हिंदू पक्षों ने यह भी दावा किया है कि विचाराधीन संपत्ति के भीतर मूर्तियां और पूजा की वस्तुएं हैं और मंदिर ने किसी भी समय अपना धार्मिक चरित्र नहीं खोया है.
नंदन ने कहा कि हिंदू कानून के तहत, जो भारत में लागू होता है, यह अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है कि एक बार संपत्ति देवता में निहित हो जाती है, वही उनकी संपत्ति बनी रहेगी और देवता को संपत्ति से कभी भी विभाजित नहीं किया जा सकता है.
20 मई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वाराणसी कोर्ट ने सोमवार को मामले की सुनवाई शुरू की थी. 20 मई को, सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा के अधिकार की मांग करने वाले हिंदू पक्षों द्वारा मुकदमे की कार्यवाही जिला न्यायाधीश को हस्तांतरित कर दी थी, इसके अलावा अदालत ने 17 मई के अंतरिम आदेश में 'शिवलिंग' की सुरक्षा करने को कहा गया था, जिसे सर्वेक्षण के दौरान कथित तौर पर खोजा गया था.
इसके अलावा अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि 'शिवलिंग' की सुरक्षा के साथ ही वुजुखाना (नमाज अदा करने से पहले हाथ-मुंह धोने की जगह) को सील कर दिया जाना चाहिए, लेकिन इस दौरान नवाज में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए.
अदालत ने वुजू के लिए अन्य विकल्प भी तलाशने को कहा था. अदालत ने वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करने के लिए पार्टियों से परामर्श करने के लिए भी कहा कि 'वुजू' के लिए उचित व्यवस्था हो.
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