कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हाथरस के कथित गैंगरेप और हत्या मामले में पीड़िता के परिवार ने आरोप लगाए हैं कि पुलिस ने उन्हें पीड़िता की बॉडी घर लाने या अंतिम संस्कार से पहले सही तरीके से प्रक्रियाओं को करने की अनुमति नहीं दी.
इसके बजाए, उत्तर प्रदेश पुलिस ने 30 सितंबर को 2:30 am के आसपास पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में यूपी के गृह मंत्रालय ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि ''लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने के लिए'' रात में अंतिम संस्कार किया गया.
क्विंट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व DGP जावीद अहमद से यह समझने के लिए बात की, कि पुलिस कानून व्यवस्था के नाम पर पीड़िता के परिवार को उनके अधिकारों से वंचित कैसे कर सकती है? क्या इसके लिए जिम्मेदार यूपी पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए?
क्या आपको लगता है कि यूपी पुलिस ने पीड़िता के परिवार की गैरमौजूदगी में उसका अंतिम संस्कार करके सही किया?
देर रात एक बॉडी का अंतिम संस्कार पहले भी यूपी में हुआ है, लेकिन ऐसा परिवार की सहमति से किया गया है. ऐसा कभी भी परिवार को घर में बंद करके नहीं किया गया है, जैसा कि मीडिया ने बताया है. लॉ एंड ऑर्डर दो शब्द हैं.
ऑर्डर को बनाए रखने के लिए, कोई भी लॉ को नहीं तोड़ सकता. पुलिस को लॉ के प्रावधान इस्तेमाल करते हुए ही ऑर्डर को बनाए रखना होता है. पुलिस को उसके पास उपलब्ध कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल करना चाहिए. यहां दुर्भाग्य से, ऑर्डर लॉ के मुताबिक नहीं, बल्कि सत्ता में बैठे लोगों के निर्देशों के अनुसार लागू किया गया.
क्या आपको लगता है कि यूपी पुलिस राजनीतिक दबाव में आ गई?
पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो कुछ भी किया जाए, वो कानूनी प्रावधानों के तहत हो. इसके अलावा, जरूरत पड़ने पर पुलिस को अपने पॉलिटिकल मास्टर्स को समझाना चाहिए कि इतना हो सकता है और बाकी नहीं हो सकता. और ऐसा नहीं है कि पॉलिटिकल मास्टर्स पुलिस की बात नहीं सुनेंगे, मैं ऐसा मानने से इनकार करूंगा.
क्या आपको लगता है कि यूपी पुलिस ने जल्दबाजी में यह फैसला लिया?
डर यह हो सकता है कि अंतिम संस्कार के दौरान बहुत सारे लोग इकट्ठे होंगे. जिसके चलते दलितों और ठाकुरों के बीच किसी तरह का टकराव हो सकता है. बात यह है कि एक वास्तविक आशंका हो सकती है कि कहीं हिंसा न भड़क जाए, लेकिन एक घटना को रोकने के लिए, पुलिस कानून को नहीं तोड़ सकती है, नहीं तो ये तो मनमानी वाली बात हो जाएगी.
ऐसी स्थिति में यूपी पुलिस को क्या करना चाहिए था?
पुलिस को परिवार को विश्वास में लेना चाहिए था. अगर परिवार आधी रात के बाद बॉडी का अंतिम संस्कार करने के लिए तैयार नहीं होता, तो वे परिवार को सुबह जल्दी अंतिम संस्कार करने के लिए मना सकते थे. अंतिम संस्कार उचित तरीके से होना चाहिए और वो भी इतने संवेदनशील मामले में. यह एक इंसानी शरीर है, किसी जानवर का शरीर नहीं है.
क्या संबंधित पुलिस अधिकारियों को निलंबित करना पर्याप्त होगा?
निलंबन को किसी भी नियम के तहत सजा के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है, यह एक प्रशासनिक व्यवस्था है. अफसोस की अभिव्यक्ति भी होनी चाहिए. अभी पुलिस को लगता है कि उन्होंने जो भी किया वो सही था. यूपी पुलिस को अपनी गलती माननी चाहिए.
यूपी पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई होनी चाहिए?
इसमें शामिल सभी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच होनी चाहिए, अगर वे दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें सजा दी जानी चाहिए.
हम विभागीय जांच से क्या उम्मीद कर सकते हैं?
अगर विभागीय जांच शुरू की जाती है, तो पीड़िता के परिवार के सदस्यों से भी पूछताछ की जाएगी कि क्या पुलिस ने अंतिम संस्कार करने से पहले उनकी अनुमति ली थी, क्या परिवार को घर में बंद कर दिया गया था, जैसा कि मीडिया ने बताया है. परिवार को अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है.
विभागीय जांच समिति के प्रमुख पुलिस के पक्ष पर आंख बंद करके विश्वास नहीं कर सकते. अंतिम संस्कार में शामिल पुलिस अधिकारियों को अपना पक्ष साबित करने के लिए सबूत देने होंगे.
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