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सरहद के 'जाल' में मछुआरे: भारत-पाकिस्तान संघर्ष में फंसे मछुआरों की कहानी

जलवायु परिवर्तन और भारत-पाक सीमा विवाद से गुजरात और सिंध के मछुआरों की जिंदगी कैसे मुश्किल हो गई है?

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भारत
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वो एक शांत और सुहाना दिन था, लेकिन उनका भविष्य इतनी मुश्किलों में फंसने वाला है, इसका जरा भी अंदाजा हीरा और उसके पति दीपक चावड़ा को नहीं था.

जब पाकिस्तानी समुद्री सुरक्षा एजेंसियों ने उन्हें गिरफ्तार किया तो उस दिन को याद करते हुए 30 साल के दीपक बताते हैं कि उन्हें साफ तौर पर याद नहीं कि कौन सी तारीख थी, लेकिन ये अप्रैल 2018 का वाक्या है, जब पाकिस्तानी की समुद्री पेट्रोलिंग करने वाली एजेंसी ने उनको पकड़ा था.

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उनका अपराध? गुजरात के मछियार (मछली पकड़ने वाले) समुदाय के एक सदस्य, दीपक, छह दूसरे नाविकों के साथ, मछली पकड़ने के लिए अरब सागर में गए थे. इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते कि उनकी नाव समंदर में भारतीय सीमा को पार कर चुकी थी, दीपक सहित सभी छह नाविकों को गिरफ्तार कर लिया गया था. उन्हें पाकिस्तान के कराची में एक जेल ले जाया गया जहां उन्होंने पांच साल बिताए.

16 मई को, दीपक गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के अपने शहर कोडिनार लौट आए.

दीपक और हीरा के दिमाग में अप्रैल 2018 की उस दोपहरी की यादें अभी भी ताजा हैं. हीरा ने कहा कि कोडिनार में वो समय काफी गर्म था. मैंने उनसे कहा कि वो लोग कुछ दिनों के लिए समंदर जाने का ख्याल रोक दें. तापमान बहुत अधिक था, और मुझे डर था कि बारिश हो सकती है... लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं मानी. हीरा ने फिर बताया कि, "उन्होंने कहा कि वो 20 दिनों में मछली की एक बड़ी खेप लेकर वापस आ जाएंगे."
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30 वर्षीय दीपक ने कबूला कि उसे अपनी पत्नी की बात सुननी चाहिए थी और उसके दिल से निकली बात पर भरोसा करना चाहिए था, लेकिन समुद्र उसकी पसंदीदा जगह थी और अब भी है.

उन्होंने कहा, "मेरे पिता, दादा, परदादा और उनसे पहले मेरे पूर्वज सभी मछुआरे थे. समुद्र से ही हमारी रोजी-रोटी चलती है. इसलिए, स्वाभाविक रूप से मैं नाव पर होने के लिए बहुत उत्साहित था." उसे पता ही नहीं था कि आगे क्या होने वाला है.

दीपक ने कहा, "मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि मैं घर वापस आ गया हूं... मैंने हीरा से कम से कम 50 बार मुझे चिकोटी काटने के लिए कहा है कि कहीं यह सब सिर्फ एक सपना तो नहीं है?"

भले ही दीपक और अन्य अपने देश वापस लौट आए हैं, भारत के विदेश मंत्रालय और पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान में 456 भारतीय मछुआरे पाकिस्तानी हिरासत में हैं. इसी तरह 95 पाकिस्तानी मछुआरे भारतीय जेलों में बंद हैं.

यह उन लोगों की कहानी है जो गायब हो जाते हैं, जो लौट आते हैं और जो नहीं लौटते हैं.

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वतन वापसी

सोमवार, 15 मई को, दीपक उन 198 भारतीय मछुआरों में शामिल थे, जो कराची की मालिर जेल में आधा दशक गुजारने के बाद रिहा होकर गुजरात के वडोदरा रेलवे स्टेशन पर पहुंचे. वडोदरा से फिर दीपक समेत ये मछुआरे गिर सोमनाथ के वेरावल कस्बे आए.

जलवायु परिवर्तन और भारत-पाक सीमा विवाद से गुजरात और सिंध के मछुआरों की जिंदगी कैसे मुश्किल हो गई है?

15 मई को भारतीय राज्य पंजाब में रिहा होने से पहले 198 भारतीय मछुआरों के एक जत्थे को और पाकिस्तान के बीच वाघा सीमा पर ले जाया गया था.

वहां से वे गुजरात के वडोदरा रेलवे स्टेशन पहुंचे.

(इलसट्रेशन: विभूशिता सिंह/क्विंट हिंदी)

दीपक के लापता होने के बाद से, दीपक के गृहनगर कोडिनार से 50 किमी दूर स्थित शहर, वेरावल, उनकी पत्नी हीरा चावड़ा के लिए किसी "तीर्थयात्रा" जैसा बन गया था.

हीरा ने द क्विंट को बताया, "शुरुआत में जब वो गायब हुए तो हमें पता नहीं था कि वो कहां है. यथाकाल (एक स्थानीय समाचार पत्र) में एक समाचार रिपोर्ट के माध्यम से हमें पता चला कि पाकिस्तानियों ने एक भारतीय नाव पर कब्जा कर लिया था. फिर गांव के कुछ लोग वेरावल स्थित एक फोरम नेशनल फिशरवर्कर्स फोरम, जो इस तरह के मछुआरों के लापता होने पर नजर रखता है वहां पहुंचे. वहीं से मुझे पता चला कि मेरे पति वास्तव में उस नाव पर थे जिसे पकड़ा गया था. जब भी हम उनके बारे में कोई अपडेट चाहते थे, तो हमें वेरावल जाना पड़ता था. मैं हर 15 से 20 दिन में एक बार वहां जरूर जाती थी."

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हालांकि, इस तरह से वहां जाना बहुत महंगा था, खासकर हीरा के लिए, जो दीपक के नहीं होने से परिवार में रोजी-रोटी कमाने वाली इकलौती शख्स थीं.

"मैंने अपने परिवार को पालने के लिए घरेलू नौकर के रूप में काम किया. किराये की कार लेकर जाने की हैसियत नहीं थी, सो मैं हमेशा एक बस से जाती थी, अक्सर अपने बच्चे को अपनी बाहों में लपेटे हुए."
हीरा चावड़ा

16 मई को वेरावल से दीपक बस में घर के लिए रवाना हुए.

दीपक ने बताया कि वडोदरा से कोडीनार तक की यात्रा 16 घंटे से अधिक लंबी थी, लेकिन दीपक को "ये 16 घंटे पाकिस्तान में बिताए पांच वर्षों से अधिक लंबे लगे."

उन्होंने द क्विंट को बताया, "यह सिर्फ एक उम्मीद कि एक दिन मैं अपनी पत्नी, अपनी मां और अपने बच्चे के पास घर लौट पाऊंगा, जो कि गिरफ्तार किए जाने के समय सिर्फ आठ महीने का था, ने मुझे इतने सालों तक जिंदा रखा. मेरे लौटने के बाद से मेरी पत्नी का रोना बंद नहीं हुआ है और मैं अपने बेटे को मुश्किल से पहचानता हूं, जो अब लगभग छह साल का हो गया है."

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एक लंबा इंतजार

जब दमन और दीव के वनकबारा गांव में रामिला बेन ने पहली बार सुना कि पाकिस्तान अपनी जेलों में बंद 198 भारतीय मछुआरों के एक जत्थे को रिहा करने के लिए तैयार है, तो उन्हें उम्मीद थी कि उनके पति जीतू सोमा उनमें से एक होंगे. दीपक की तरह, 40 वर्षीय सोमा को तब गिरफ्तार किया गया था जब वह 2019 में मछली पकड़ने समुद्र में गए थे और उनकी नाव भारत और पाकिस्तान के बीच जल सीमा पार कर गई थी.

रमिला ने कहा, "जब मैंने सुना कि कुछ मछुआरे घर लौट रहे हैं, तो मुझे उम्मीद थी कि मेरे पति उनमें से एक होंगे, लेकिन उनका नाम सूची में नहीं था. मुझे बताया गया कि पाकिस्तान सरकार आने वाले दिनों में और लोगों को रिहा करेगी. हम दिल्ली में किसी जयशंकर नाम के शख्स से मिले. वो एक महत्वपूर्ण व्यक्ति की तरह लग रहे थे. उन्होंने पाकिस्तान के साथ इस मुद्दे को उठाया होगा."

रमिला भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के बारे में बात कर रही थीं. अगस्त 2022 में, रामिला केंद्र शासित प्रदेश के मछुआरा समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले एक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थीं, जिसने पड़ोसी देश की जेलों में बंद मछुआरों की रिहाई पर चर्चा करने के लिए विदेश मंत्री जयशंकर से मुलाकात की थी.

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रमिला हमसे पूछते हुए कहती हैं, "हमारे तीन बच्चे हैं, एक बेटी और दो बेटे. तीनों पढ़ रहे हैं. जया (बेटी) 15 साल की है. कुछ सालों में हमें उसकी शादी करनी होगी. मेरे पति के बिना मैं इसे कैसे संभालूंगी? मैं कंस्ट्रक्शन साइट्स पर दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करती हूं. किसी दिन मुझे काम मिल जाता है, किसी दिन नहीं. मेरा परिवार कब तक इस तरह से गुजर-बसर करके जीवित रहेगा?"

उनका पति जीतू सोमा अभी भी जेल में है. अब 4 साल बीत गए.

जलवायु परिवर्तन और भारत-पाक सीमा विवाद से गुजरात और सिंध के मछुआरों की जिंदगी कैसे मुश्किल हो गई है?

रामिला, दमन और दीव के मछुआरों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थीं, जिन्होंने पाकिस्तान में जेलों में बंद मछुआरों पर चर्चा करने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की थी.

(इलसट्रेशन: चेतन बुखानी/क्विंट हिंदी)

द क्विंट से बात करते हुए, एक पूर्व राजनयिक और 2013-2015 के बीच पाकिस्तान में भारत के हाईकमिश्नर, टीसीए राघवन ने कहा कि समस्या का स्थायी, दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए हैं. समय-समय पर रिहाई इन मछुआरों को भारत और पाकिस्तान, दोनों ही सरकारों की तरफ से 'भरोसा बहाली' के कदम के तौर पर देखा जाता है.

"पाकिस्तानी जेलों में भारतीय कैदियों और भारतीय जेलों में पाकिस्तानी कैदियों में मछुआरों के अलावा दूसरी भी कैटेगरी है. और उन श्रेणियों में से कुछ ऐसे लोग हैं जो उच्च सुरक्षा जोखिम पैदा करते हैं. इन मछुआरों की रिहाई को आमतौर पर भरोसा बहाली और मानवीयता के रूप में देखा जाता है. इसका अर्थ है कि मछुआरों को सद्भावना संकेत के रूप में रिहा किया जाता है."
टीसीए राघवन

रामिला ने बताया कि उसका बेटा अभिषेक, जो इस साल 14 साल का हो गया है, व्यापार की मूल बातें सीखने के लिए पड़ोस के अन्य मछुआरों के साथ मछली पकड़ने जाने लगा है.

"कोई और विकल्प नहीं है. वह क्या करेगा? हमारा परिवार कम से कम चार पीढ़ियों से आजीविका के लिए मछली पकड़ने पर निर्भर है. हम इसे अचानक नहीं छोड़ सकते. लेकिन जब भी वह मछली पकड़ने जाता है तो मुझे डर लगता है. मैं उसके सुरक्षित लौटने के लिए प्रार्थना करती रहती हूं."
रामिला
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जेल में जिंदगी

गिरफ्तार किए जाने के कुछ दिनों बाद ही दीपक को यह समझ में आ गया था कि उसे किसके खिलाफ पकड़ा गया है.

उन्होंने द क्विंट को बताया, "शुरुआत में मैं थोड़ा डर गया था. मैंने पाकिस्तान में भारतीय कैदियों के साथ क्या होता है, इसकी कहानियां सुनी थीं. आश्चर्यजनक रूप से, उन्होंने हमें जेल में यातना नहीं दी... शायद इसलिए कि मैं अकेला नहीं था. उसमें कई भारतीय मछुआरे थे. जेल और जेल अधिकारियों ने ऐसा बर्ताव किया जैसे वे हमारे वहां होने के आदी हो गए हों."

हर गुजरते दिन के साथ दीपक को अपने घरवालों की चिंता सताती थी.

उन्होंने कहा, "सच तो यह है कि यह मुश्किल बात नहीं थी कि मैं जेल में हूं, घर के बारे में सोचकर, वहां जो कुछ हीरा और परिवार के दूसरे सदस्यों पर बीत रही होगी, यह सोचकर ज्यादा परेशान था. हीरा को मेरी बूढ़ी और बीमार मां और हमारे बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी अकेले करनी पड़ रही होगी, आठ महीने का मेरा बेटा था, उसे संभालना कितना मुश्किल हो रहा होगा.. देशों के बीच शत्रुता को देखते हुए मैं कभी घर वापस नहीं जा पाऊंगा, इस सोच ने मेरी रूह को झकझोर कर रख दिया."

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भले ही जेल की स्थिति अनुकूल थी, लेकिन दीपक को घर पर अपने परिवार की चिंता थी.

उन्होंने कहा, "मुश्किल हिस्सा मेरा जेल में होना नहीं था. यह कल्पना करना था कि मेरे परिवार के साथ घर पर क्या हो रहा है."

(इलसट्रेशन: विभूशिता सिंह/क्विंट हिंदी)

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मछुआरे आखिर सीमा लांघते क्यों हैं?

परिष्कृत नौवहन उपकरणों की कमी, दोनों देशों के बीच एक भौतिक सीमा की अनुपस्थिति, तटीय विकास और जलवायु परिवर्तन सहित कई और चीजें इसके लिए जिम्मेदार हैं.

भारत में राज्य स्तर के छोटे और पारंपरिक मछली श्रमिकों के एक संघ - नेशनल फिश वर्कर्स फोरम (एनएफएफ) के अध्यक्ष उस्मान गनी ने कहा कि 90 के दशक के उत्तरार्ध में समुद्री अतिक्रमण में काफी वृद्धि हुई है.

गनी ने द क्विंट को बताया, "यह वह समय था जब बड़े ट्रॉलर समुद्र में अपना रास्ता बनाते थे और बंदरगाह का विकास जोरों पर था. इससे तट के पास मछली उत्पादन में कमी आई और छोटे और पारंपरिक मछुआरे - जो पहले तट के पास मछली पकड़ते थे - मजबूर हो गए बड़ी नावों में जाकर और गहरे समुद्र में मछली पकड़ें."

3 मई को, फोरम ने एक पत्र लिखकर पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से आग्रह किया कि वे दोनों देशों की जेलों में कैद और जिनकी सजा पूरी हो गई है, उन मछुआरों की रिहाई पर कार्रवाई करें.

3 मई को लिखी गई चिट्ठी में कहा गया है कि, "करीब 750 मछुआरे कैदी भारत और पाकिस्तान की जेलों में अपने मूल देश के क्षेत्रीय जल के बाहर गिरफ्तारी के बाद से सड़ रहे हैं. आज तक, 654 भारतीय मछुआरे पाकिस्तान के कराची में मालिर जेल में हैं. 631 गिरफ्तार मछुआरे अपनी सजा पूरी कर चुके हैं और उनकी राष्ट्रीयता भी सत्यापित है. 83 पाकिस्तानी मछुआरे भारतीय जेलों में हैं. इसी तरह, उनमें से कई ने अपनी सजा पूरी कर ली है और उनकी राष्ट्रीयता सत्यापित की गई है."

जलवायु परिवर्तन और भारत-पाक सीमा विवाद से गुजरात और सिंध के मछुआरों की जिंदगी कैसे मुश्किल हो गई है?

नेशनल फिशरवर्कर्स फोरम द्वारा लिखा गया एक पत्र, जिसमें संगठन ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से दोनों देशों की जेलों में सजा की अवधि पार कर चुके मछुआरों की रिहाई पर कार्रवाई करने का आग्रह किया.

(इलसट्रेशन: चेतन बुखानी/क्विंट हिंदी)

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अहमदाबाद के पर्यावरणविद् महेश पंड्या ने गनी के दावों को दोहराया. उन्होंने कहा, "वर्षों से, तटीय विकास के नाम पर तट के पास के मैंग्रोव को नष्ट कर दिया गया. इसने, औद्योगिक प्रदूषण के साथ मिलकर, तट के पास समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिससे छोटे और पारंपरिक मछुआरों को तट से दूर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इन्हें मजबूरी में गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए जाना पड़ता है."

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के 2020 के ऑडिट में गुजरात तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (GCZMA) के पुनर्गठन में देरी का पता चला. परिणामस्वरूप, सरकार द्वारा तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना/पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के 32 उल्लंघनों की सूचना मिली.

इनमें तटीय नियामक क्षेत्रों (CRZs) में मैंग्रोव का बड़े पैमाने पर विनाश, तटरेखा के सर्वेक्षण के लिए कोई तंत्र नहीं, और CRZ क्षेत्रों में जल निकायों में अपशिष्ट पानी को बहाया जाना शामिल है.

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पाकिस्तान में भी वही कहानी

65 वर्षीय मोहम्मद जुमान भारत में तीन बार जेल की सजा काट चुके हैं. पहली बार 1993 में, फिर 1996 में और हाल ही में 2016 में. पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थट्टा शहर के एक मछुआरे जुमान ने कहा कि गिरफ्तारी के जोखिम के बावजूद समुद्र में वापस नहीं जाना कोई विकल्प ही नहीं था.

"मैंने भारत में तीन बार जेल की सजा काट ली है. 1993 में, जब मुझे पहली बार गिरफ्तार किया गया था, गुलाब सिंह नाम का एक जेलर XX जेल में सभी कैदियों की देखरेख कर रहा था. वह एक अच्छा इंसान था और सभी के साथ अच्छा व्यवहार करता था. 2016 में, मैं पलारा में था भुज की जेल में. वहां भी सब कुछ ठीक था. लेकिन मैं यहां पाकिस्तान में अपने परिवार को लेकर लगातार चिंतित था."
मोहम्मद जुमान

2016 में, जुमन को उसके परिवार के सात अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था, जिसमें उसके छोटे भाई, बेटे और भतीजे शामिल थे.

जुमन ने कहा, "स्थिति खराब थी. हमारी अनुपस्थिति में, मेरी पत्नी और घर की अन्य महिलाओं को गुजारा करने के लिए सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा."

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आखिर संघर्ष क्या है?

अप्रैल 2021 में, गुजरात के जूनागढ़ के नानावंदा गांव के एक मछुआरे रमेश तबा सोसा की कराची की मालिर जेल के अस्पताल में मौत हो गई. सोसा को मई 2019 में तब गिरफ्तार किया गया था, जब उसकी नाव पाकिस्तानी जल सीमा में घुस गई थी.

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तानी जेल में उनकी सजा 3 जुलाई 2019 को समाप्त हो गई, लेकिन उन्हें घर वापस नहीं भेजा गया या उनकी मृत्यु तक कांसुलर एक्सेस नहीं दिया गया.

सोसा का मामला कोई इकलौता केस नहीं था. भारत सरकार ने बार-बार पाकिस्तान में भारतीय कैदियों को कांसुलर एक्सेस देने से इनकार किए जाने का मुद्दा उठाया है.
जलवायु परिवर्तन और भारत-पाक सीमा विवाद से गुजरात और सिंध के मछुआरों की जिंदगी कैसे मुश्किल हो गई है?

गुजरात राज्य मुख्य रूप से कच्छ के रण के माध्यम से पाकिस्तान के साथ 508 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है.

भारत द्वारा गिरफ्तार किए गए अधिकांश मछुआरे कराची की जेलों में बंद हैं और पाकिस्तान के मछुआरे गुजरात की जेलों में बंद हैं.

(इलसट्रेशन: विभूशिता सिंह/क्विंट हिंदी)

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आपको बता दें कि कांसुलर एक्सेस यानी वकीलों की सुविधा विदेशी नागरिकों का अधिकार है कि वे देश में अपने स्वयं के देशों के दूतावासों तक अनुरोध कर सकते हैं.

2008 में, भारत और पाकिस्तान ने कांसुलर एक्सेस पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. समझौते की धारा चार के अनुसार, दोनों देशों की सरकारें दूसरे देश के नागरिकों को उनके देश में गिरफ्तारी, हिरासत या कारावास के तहत तीन महीने के भीतर कांसुलर एक्सेस देगी.

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सरकारों की नजरअंदाजी

मलीर जेल के जेल अधीक्षक नजीर टुनियो के अनुसार, जहां से दीपक चावड़ा और 197 अन्य मछुआरों को 15 मई को रिहा किया गया था, जून और जुलाई में मछुआरों के दो और जत्थों को रिहा किया जाएगा.

इस बीच, टीसीए राघवन ने जोर देकर कहा कि कूटनीतिक स्तर पर, इस मुद्दे को केवल मानवीय संकट के रूप में देखा गया है और अब तक किसी भी निवारक या स्थायी समाधान पर चर्चा नहीं की गई है.

"यहां दो मुद्दे हैं. पहला, जटिल राजनीतिक कारणों से समुद्री सीमा का सीमांकन नहीं किया गया है. दूसरा यह है कि समुद्री सीमा की परवाह किए बिना, मछुआरे मछली के झुंड का पीछा कर रहे हैं, जो कोई सीमा नहीं जानते हैं. पिछले कुछ दशकों में अरब सागर के पाकिस्तान की तरफ ज्यादा गुणवत्ता बढ़ गई है. इसलिए, दलील ये भी दी जा सकती है कि अगर सीमांकन कर भी दिया गया था मछुआरे इसे मानेंगे नहीं... या मछली पकड़ने के लिए सीमा तक वो रुकेंगे नहीं."
टीसीए राघवन

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे के समाधान के लिए विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्रों में रिसर्च की आवश्यकता होगी.

"अगर हम एडहॉक सुधारों से परे इस मुद्दे के समाधान को देखना चाहते हैं, तो हमें विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को मिलाजुलाकर कुछ करना होगा. समस्या कोई नई नहीं है. भारत और पाकिस्तान के लिए भी ऐसी समस्या नहीं है कि इसे समझा नहीं जा जा सके. हमें इस पर गौर करना चाहिए कि आखिर सीमा विवाद में शामिल दूसरे देशों ने कैसे समस्या को हल करने में कामयाबी हासिल की है."
टीसीए राघवन
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उम्मीद की किरण

जब और मछुआरों के पाकिस्तान से लौटने की खबर वनकबारा की रमिला बेन तक पहुंची, तो वो नई उम्मीद से भर गई. उन्होंने कहा, "मैं आने वाले महीनों में अपने पति के लौटने के लिए दिन-रात प्रार्थना करती हूं. मैं चाहती हूं कि वह हमारे बच्चों की शादी के लिए यहां रहें."

वो पूछती है कि आखिर मछुआरे आतंकवादी नहीं है. उनका अपराध क्या है? पानी में होने पर कोई सीमा कैसे तय करता है?

इस बीच, कोडिनार में, दीपक ने अपनी पत्नी और छह साल के बच्चे के साथ कुछ महीने बिताने और वापस लौटने के लिए मानसिक रूप से तैयार होने तक समुद्र से दूर रहने की योजना बनाई. उन्होंने कहा, "एक मछियार समुद्र से दूर नहीं रह सकता. मैं कुछ महीनों के लिए छोटे-मोटे काम करूंगा और जब मैं तैयार हो जाऊंगा, तो पानी में जाऊंगा. मुझे अपने बच्चे की जिंदगी के छह साल पूरे करने हैं."

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जोखिम शामिल होने के बावजूद, गुजरात के मछुआरों का कहना है कि उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं.

जब उनसे पूछा गया कि क्या वे कभी मछली पकड़ना छोड़ेंगे, तो उन्होंने कहा, "एक मछियार समुद्र से दूर जीवित नहीं रह सकता है."

(इलसट्रेशन: चेतन बुखानी/क्विंट हिंदी)

पाकिस्तान में मोहम्मद जुमान की बात करें, तो वह और उसका परिवार अभी भी सिंध के दो मछुआरे समीर शाह और मुस्तफा की तलाश कर रहे हैं. जब से वो आखिरी बार समुद्र में गए हैं, तब से उनके बारे में कुछ जानकारी नहीं है.

जुमन ने निवेदन किया, "कृपया समीर और मुस्तफा को खोजने में हमारी मदद करें. हमें नहीं पता कि वे किस जेल में बंद हैं या वे जीवित भी हैं."

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