Indian Airforce: भारतीय वायुसेना की स्थापना के 90 साल पूरे हो चुके हैं. 1932 में "रॉयल इंडियन एयरफोर्स" के तौर पर ब्रिटिश भारत में वायुसेना की स्थापना की गई थी. आजादी के बाद चाहे बात 1971 की हो या कारगिल जंग की, वायुसेना ने देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने में अहम योगदान दिया है. यहां हम भारतीय वायुसेना के पराक्रम की ऐसी ही कुछ कहानियों की चर्चा करने वाले हैं.
बता दें भारतीय वायुसेना का सबसे पहले इस्तेमाल अंग्रेजों के दौर में उत्तरी वजीरिस्तान (अब पाकिस्तान में) में स्थानीय जनजातियों के विद्रोह से निपटने में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने किया था. दूसरे विश्वयुद्ध में भारतीय वायुसेना ने म्यांमार में जापान के खिलाफ अभियान भी चलाया था.
लेकिन असली कहानी शुरू होती है, 1947 में भारत के आजाद होने के बाद. दरअसल यही वह समय था, जब वायुसेना की भूमिका को बढ़ाया गया, इसके पहले तक वायुसेना का प्रमुख काम जमीन पर थलसेना को मदद करना और सैनिकों को एक जगह से दूसरी जगह था. लेकिन इसके बाद बदलती दुनिया में हमारी वायुसेना को भी एक स्ट्राइकिंग फोर्स के तौर पर विकसित किया गया.
आजादी के बाद, तत्कालीन रॉयल इंडियन एयरफोर्स के दस स्कवाड्रॉन में से 3 पाकिस्तान रॉयल एयरफोर्स को दे दिए गए थे. 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद ही इस "रॉयल" शब्द को हटाया गया था.
आजाद होने के बाद ही कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान में युद्ध छिड़ गया, जिसे कबीलाई युद्ध कहा जाता है. इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने बढ़ते कबीलाई हमले के बीच तेजी से श्रीनगर में भारतीय सैनिकों को पहुंचाने में मदद की. हालांकि इस दौरान भारतीय विमानों का पाकिस्तानी जंगी विमानों से सीधा टकराव नहीं हुआ.
1962 में चीन के खिलाफ युद्ध में भी भारत ने वायुसेना का पूरा इस्तेमाल नहीं किया. कहा जाता है कि शुरुआत में टकराव को ज्यादा ना बढ़ने देने के लिए वायुसेना के इस्तेमाल से बचा गया, फिर जब वायुसेना के इस्तेमाल की बारी आई, तो चीन संघर्ष विराम की घोषणा कर चुका था. ध्यान रहे जवाहर लाल नेहरू ने अमेरिकी राष्ट्रपति को लिखे खत में अतिरिक्त जंगी विमानों की मांग भी की थी. इस युद्ध में सिर्फ इंटेलीजेंस इकट्ठा करने के लिए ही कुछ जंगी विमानों ने उड़ानें भरीं.
1965 की जंग- भारतीय वायुसेना ने दिखाया जबरदस्त संघर्ष का माद्दा
भारत, 1962 की जंग से ठीक से उबरा भी नहीं था, तत्कालीन राजनीति के शीर्ष पुरुष जवाहर लाल दुनिया में नहीं थे, अपनी बड़ी आबादी को दो वक्त की रोटी उपलब्ध कराने के लिए भी भारत को संघर्ष करना पड़ रहा था, ऐसी स्थिति में पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए ऑपरेशन जिब्राल्टर चलाया. बता दें पाकिस्तानी वायुसेना के पास इस दौरान टेक्नोलॉजिकल सुपीरियोरिटी थी, उन्हें बीते सालों में अमेरिका समेत दूसरे देशों से पुख्ता मदद मिली थी.
ऊपर से भारत को दो मोर्चों पर अपनी वायुसेना को तैनात करना था. पूर्वी मोर्चे पर चीन के हस्तक्षेप का खतरा था. इसलिए पश्चिमी मोर्चे पर सीमित संख्या में ही भारतीय जंगी विमानों की तैनाती की जा सकती थी. लेकिन इसके बावजूद भारत ने पहली बार किसी युद्ध में वायुसेना के पूरे इस्तेमाल का फैसला किया. पाकिस्तानी सीमा के काफी भीतर स्थित सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया. ऐसे में बड़ी संख्या में भारतीय विमान, एंटी एयरक्रॉफ्ट हथियारों की जद में भी आए.
लेकिन तब टेक्नोलॉजिकल सुपीरियरिटी रखने वाली पाकिस्तानी एयरफोर्स को भारतीय वायुसेना ने एयर सुपीरियरिटी नहीं बनाने दी. भारत के छोटे फोलैंड जिनाट्स जंगी विमानों ने तब के जाने-माने F-86 सैबर्स विमानों को जमकर छकाया. फोलैंड को "सैबर्स स्लेयर्स (सैबर्स नाशक)" तक कहा जाने लगा. युद्ध में भारत को करीब 70 से ज्यादा विमानों का नुकसान हुआ, जिनमें से आधे से ज्यादा जमीनी हमले का शिकार बने.
1971 की जंग- पूर्वी पाकिस्तान में एयर स्पेस पर किया कब्जा
1965 के युद्ध के बाद भारतीय वायुसेना में बड़े पैमाने पर बदलाव किए गए. नतीजतन वायुसेना काफी मजबूत हुई. ट्रांसपोर्ट के लिए स्वदेशी एयरक्रॉफ्ट का इस्तेमाल किया जाने लगा.
1971, दिसंबर में दोनों देशों की बीच पूर्ण युद्ध छिड़ने से दस दिन पहले चार पाकिस्तानी फाइटर जेट्स ने पूर्वी सीमा पर स्थित गरीबपुर में भारतीय और मुक्तिवाहिनी को निशाना बनाते हुए हमला करने की कोशिश की. जवाब में भारतीय फोलैंड जेनाट्स ने दो को मार गिराया.
पाकिस्तान ने प्री एम्पटिव स्ट्राइक के तौर पर जोधपुर, अंबाला समेत दूसरे मिलिट्री एयरपोर्ट्स पर हमले करने की कोशिश की. लेकिन यहां भारतीय वायुसेना ने उन्हें जबरदस्त जवाब दिया, इसके बाद पाकिस्तानी एयरफोर्स ज्यादातर डिफेंसिव मोड पर ही रही. जबकि भारतीय वायुसेना ने पूर्वी पाकिस्तान में थलसेना को जबरदस्त मदद की और 12,000 से ज्यादा उड़ानें भरीं.
पूर्वी मोर्चे (आज का बांग्लादेश) पर भारतीय वायुसेना पूरी तरह एयर स्पेस पर कब्जा करने में कामयाब रही. इसके अलावा कराची समेत दूसरे पाकिस्तानी शहरों के सैन्य, ऊर्जा और रसद ठिकानों पर रणनीतिक बमबारी की. इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने 90 से ज्यादा पाकिस्तानी जंगी विमानों को मार गिराया.
ऑपरेशन सफेद सागर- कारगिल युद्ध
1999 में घुसपैठियों की आड़ में भारतीय चौकियों पर कब्जा जमाने वाले पाकिस्तानी फौजियों को पीछे हटाने के लिए भारत ने ऑपरेशन विजय चलाया. इस दौरान वायुसेना ने अपने मिशन को "ऑपरेशन सफेद सागर" का नाम दिया.
शुरुआत में भारत ने मिग-27 और हेलिकॉप्टर के जरिए घुसपैठियों की पोजिशन पर हमले किए. इस दौरान मिग-21 और मिग-29 ने इन्हें एयर कवर उपलब्ध करवाया. इस दौरान पाकिस्तानी एयरफोर्स की किसी भी कार्रवाई से निपटने के लिए बड़ी संख्या में मिग-29 की सीमा के पास वाले हवाईअड्डों पर तैनाती की गई.
लेकिन 27 मई को एक मिग-27 और एक मिग-21 को गिराने में घुसपैठिए कामयाब रहे. फिर एक हेलिकॉप्टप को भी मैनपैड मिसाइल से निशाना बना लिया गया. ऐसे में भारतीय वायुसेना ने मिराज-2000 को उतारा, जो हाई अल्टीट्यूड वारफेयर में बेहद असरदार था. मिराज ने मुंथो ढालो और टाइगर हिल पर हमले किए, जिसकी वजह से इन इलाकों पर भारत दोबारा और जल्दी कब्जा जमा सका.
स्पेशल ऑपरेशन- मालदीव में किया तख्तापलट को नाकाम, श्रीलंका में पहुंचाई मदद
वैसे तो भारतीय वायुसेना कई विशेष ऑपरेशन में शामिल रही है, लेकिन इनमें से दो का उल्लेख करना जरूरी है. पहला है ऑपरेशन कैक्टस और दूसरा है ऑपरेशन पूमलाई.
ऑपरेशन पूमलाई- श्रीलंका में लिट्टे के साथ सरकार का गृहयुद्ध चरम पर था. लिट्टे, श्रीलंकाई तमिलों के समर्थन से बना समूह था, जिसकी लोकप्रियता तमिलनाडु में भी काफी थी. भारत सरकार ने श्रीलंका के साथ बात कर युद्ध को खत्म करवाने की कोशिश की, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली. श्रीलंकाई फौज, उत्तरी श्रीलंका के अहम शहर जाफना को घेरे डाले हुई थी. ऐसे में भारत ने प्रतीकात्मक तौर पर वहां के लोगों को समर्थन पहुंचाने के लिए रसद के साथ कुछ बोट्स भेजीं, जिन्हें श्रीलंकाई नेवी ने रोक लिया और चार घंटे के स्टैंडऑफ के बाद वापस भेज दिया.
इसके बाद भारत ने ऑपरेशन पूमलाई चलाने का फैसला किया, जिसके तहत भारतीय विमानों से जाफना में कई टन रसद आपूर्ति गिराई. इसके लिए 5 एएन-32 मालवाहकों का इस्तेमाल किया गया, जिन्हें 4 मिराज 2000 एस्कॉर्ट कर रहे थे. बता दें श्रीलंका में ही 1987 में इंडियन पीस कीपिंग फोर्स को मदद देने के लिए आईएएफ ने ऑपरेशन पवन चलाया था.
ऑपरेशन कैक्टस- 3 नवंबर 1988 को आगरा हवाई अड्डे से भारतीय पैराट्रूपर्स ने मालदीव के लिए उड़ान भरी. दरअसल मालदीव में अब्दुल गयूम की सरकार के सामने अचानक तख्तापलट का खतरा मंडरा रहा था. यहां तक कि गयूम को भी अपनी जान-बचाने के लिए राजधानी माले में अलग-अलग जगहें बदलनी पड़ रही थीं. ऐसे में गयूम ने भारत से मदद की अपील की.
भारतीय पैराट्रूपर्स ने हुलहुले में पहुंचने के बाद एयरफील्ड पर कब्जा किया और कुछ घंटों में ही माले में सरकार की सत्ता की फिर से बहाली करवा दी.
ऑपरेशन मेघदूत- 1984 में भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत को चलाने का फैसला किया. इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना के एमआई-8 चेतक और चीता हेलिकॉप्टर्स ने सैकड़ों भारतीय सैनिकों को सियाचिन पहुंचाया. इस ऑपरेशन के
सफल होने के बाद भारत को 3000 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्रफल का इलाका मिला.
बालाकोट एयरस्ट्राइक
2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था. यह हमला जैश-ए-मोहम्मद ने किया था, जिसमें सीआरपीएफ के 44 जवान शहीद हुए थे.
ऐसे में भारत ने पाकिस्तान के भीतर आतंकी ठिकानों को निशाना बनाते हुए एयरस्ट्राइक करने का फैसला किया. भारतीय वायुसेना के 12 मिराज-2000 फाइटर प्लेन के एक समूह ने मुजफ्फराबाद और चकोथी इलाकों में आंतकी ठिकानों को निशाना बनाया. यह दोनों जगहें पीओके में स्थित हैं. लेकिन इतना ही नहीं, भारतीय वायुसेना ने खैबर-पख्तूनख्वा में स्थित बालाकोट जैसी दूर-दराज की जगह पर मौजूद जैश-ए-मोहम्मद के ट्रेनिंग सेंटर को भी निशाना बनाया.
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