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कोरोना पर विदेशी मीडिया और गोदी मीडिया की कवरेज में कितना फर्क?

कोरोना संकट के बीच, वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी और सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की बाढ़ है.

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“मेरे को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. कोई सुनता नहीं है, मेरी बेचैनी बढ़ती ही जा रही है. मैं बोलती हूं कोई सुनता नहीं यहां पर. यहां पर इलाज ढंग से कर नहीं पा रहे हैं.”

4 दिन से मेरठ के सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की भीख मांगती 32 वर्षीय कविता की यह लाचारी CNN की रिपोर्ट में देखने को मिली.

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भारत में कोरोना संकट पर ग्रांउड रिपोर्टिंग करता अंतरराष्ट्रीय मीडिया

55 वर्षीय राजबाला मेरठ के सरकारी अस्पताल के ICU बेड पर मरने के करीब हैं. उनके दो बेटे खुद उनका तलवा और हाथ रगड़ रहे हैं और तीसरा अपने हाथों से खुद CPR दे रहा है, इस उम्मीद में कि उनकी मां बच जाए. बीच-बीच में वे चीखते हैं, “कोई डॉक्टर को बुला दो.”

“हम यहां 6 दिनों से हैं, लेकिन आज जाकर मेरी मां को वेंटिलेटर मिला है. ऑक्सीजन की व्यवस्था भी खुद की हमने. हम इतना परेशान हो रहे हैं. डॉक्टर को बुलाते हैं, डॉक्टर आता नहीं.”

राजबाला के बेटे विशाल कश्यप ने CNN की चीफ इंटरनेशनल कॉरस्पॉडेंट क्लेरिस्सा वार्ड से रोते हुए बताया.

क्लेरिस्सा वार्ड जब तक वहां बिना PPE किट्स के काम करते सफाई कर्मचारियों से बातचीत करती तब तक ICU से चीखने की आवाज आती है. डॉक्टर राजबाला की नस टटोलते हैं, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है. बेटों का खुद इतनी कोशिश करने का कोई फायदा नहीं हुआ. छोटा बेटा मरने के बाद भी मां की हथेली रगड़ रहा है... इस उम्मीद में कि मां फिर से जिंदा हो जाएगी.

इस रिपोर्ट को कवर करते हुए CNN रिपोर्टर वार्ड मेरठ (दक्षिण) से BJP विधायक डॉ सोमेंद्र तोमर से जब 55 बेड वाले अस्पताल में 100 से ज्यादा मरीजों के इलाज और स्वास्थ्य प्रबंधन से जुड़े सवाल करने की कोशिश करती हैं, तो अस्पताल प्रशासन विधायक जी को यह सिखाता है कि क्या बोलना चाहिए. ये सब ऑन कैमरा हो रहा है. सोमेंद्र तोमर जवाब देते हैं, “हम कोशिश कर रहे हैं. अब हालात बेहतर हैं.”

इससे पहले क्लेरिस्सा वार्ड ने ही CNN के लिए दिल्ली के सीमापुरी के शमसान से रिपोर्टिंग की थी, जिसमे वहां हर दिन 100 -120 कोरोना से मरे लोगों की चिता जलने की खबर सामने आई थी. इसके बाद तमाम भारतीय मीडिया के रिपोर्टर वहां कवर करने पहुंचने लगे.

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भारत के स्वास्थ्य आपातकाल पर दूसरे कार्यक्रम में CNN की पत्रकार Robyn Curnow से बातचीत के क्रम में न्यूयॉर्क टाइम्स के रिपोर्टर करण दीप सिंह ने बताया कि डॉक्टर अजय कोहली ने ट्वीट किया कि “उन्होंने कल अपने पिता को खो दिया और अब मां का ऑक्सीजन लेवल 80 से 85 है. उन्हें साउथ वेस्ट दिल्ली में ऑक्सीजन सिलेंडर की सख्त जरूरत है. वह अपने मां को नहीं खोना चाहते.”

इस ट्वीट के वायरल हो जाने के बावजूद उनसे ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए 45,000 तक मांगे गए. अब डॉक्टर अजय कोहली खुद कोरोना संक्रमित हो चुके हैं.

रॉयटर्स के पत्रकार दानिश सिद्दीकी ने 22 अप्रैल को दिल्ली के एक श्मशान से जलती चिताओं की तस्वीर ट्विटर पर शेयर की थी.

यह ट्वीट जल्द ही वायरल हो गया और दक्षिणपंथी सोशल मीडिया यूजर्स ने इसे विदेशी पत्रकारों और मीडिया की भारत की छवि खराब करने की साजिश बताया. उन्होंने इसकी निंदा करते हुए यह भी आरोप लगाया कि वह ‘गिद्ध’ हैं और वे पश्चिमी देशों में कोरोना से मरते लोगों की तस्वीर तो प्रकाशित नहीं करते परंतु भारत की छवि खराब करने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं.

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इधर भारतीय मीडिया.....!!!!!

दूसरी तरफ जब हमने देश के चार प्रमुख हिंदी न्यूज चैनलों द्वारा पिछले 24 घंटे (12:30 pm, 4 मई से 12:30 pm 5 मई) में यूट्यूब पर अपलोड किए गए 217 वीडियोज का विश्लेषण किया, तो पाया की उनमे से सिर्फ 16 वीडियो ऐसी थी जिनमें स्पष्ट रूप से अस्पतालों या वैक्सीन सेंटर से ग्राउंड रिपोर्टिंग थी.यानी यह आंकड़ा मात्र 7.3% रहता है. इसी ग्राउंड रिपोर्टिंग की अनुपस्थिति में मेरठ के विधायक जैसे प्रतिनिधियों और प्रशासन को लगता है कि “अब हालात बेहतर हैं”, और शायद देश की बहुत बड़ी आबादी को भी.

इसके उलट, वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी और सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की बाढ़ है. सरकार की आलोचना को गलत बताने और उसे रोकने कि लिए पूरी दीवार है. एकतरफा सूचनाओं के बल मासूम जनता को समझाना भी आसान होता है- सब चंगा सी.

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