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क्‍या जेटली को मुद्दा बनाकर अपने आदमी को बचा रहे हैं केजरीवाल?

राजेंद्र को सचिव बनाने से पहले ही केजरीवाल को उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों के बारे में पता था.

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दिल्ली सरकार ने गुरुवार को केंद्र के खिलाफ चल रही ‘लड़ाई’ जीतने के लिए अपना ब्रह्मास्त्र निकाल लिया. ये लड़ाई तीन दिन पहले तब शुरू हुई, जब सीबीआई ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सचिव राजेंद्र कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया.

जवाब में आम आदमी पार्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर केंद्र सरकार के वित्तमंत्री अरुण जेटली और डीडीसीए घोटाले में उनकी भूमिका पर सवाल उठाए. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आम आदमी पार्टी के नेताओं ने दस्तावेज दिखाते हुए आरोप लगाया कि जब जेटली डीडीसीए के अध्यक्ष थे, तब वहां बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था.

दिल्ली भ्रष्टाचार निरोधी विभाग के पूर्व सदस्य व आम आदमी पार्टी के शिकायत प्रकोष्ठ के पूर्व अध्यक्ष विनय मित्तल ने इस बारे में कहा, “डीडीसीए के दस्तावेज जनवरी, 2014 से ही अरविंद केजरीवाल और उनके विश्वस्त लोगों के कब्जे में थे. सवाल यह है कि घोटाले को पहले क्यों सामने नहीं लाया गया?”

वह केजरीवाल ही थे, जिन्होंने कीर्ति आजाद और बिशन सिंह बेदी से डीडीसीए के दस्तावेज लिए थे. उन्हें पढ़ने के बाद मैंने मामले के बारे में केजरीवाल से बात की थी. उस वक्त इस पर कार्रवाई करने की बजाए केजरीवाल ने कहा था कि इन दस्तावेजों को सुरक्षित रख लिया जाए. उन्हें बीजेपी पर भरोसा नहीं है. जब बीजेपी उनके खिलाफ जाएगी, तब वे इन दस्तावेजों का इस्तेमाल करेंगे.
विनय कुमार मित्तल, पूर्व सदस्य, भ्रष्टाचार निरोधी विभाग, दिल्ली
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तो क्या डीडीसीए मामले पर इस समय प्रेस कॉन्फ्रेंस करना केजरीवाल की एक सियासी चाल थी. वे अब तक इन दस्तावेजों को रखकर क्यों बैठे हुए थे. सीबीआई के सूत्रों ने ‘द क्विंट’ को बताया कि अक्टूबर में जांच एजेंसी ने इस मामले में अनजान व्यक्ति के खिलाफ संसदीय जांच शुरू की थी.

केंद्रीय वित्त मंत्री पर निशाना साधकर क्या वे अपने सचिव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप के मुद्दे को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं? और ऐसा भी नहीं है कि केजरीवाल को राजेंद्र कुमार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जानकारी नहीं थी. वे 2013 से ही इस बारे में जानते थे.

आम आदमी पार्टी के शिकायत प्रकोष्ठ को राजेन्द्र के खिलाफ भ्रष्टाचार की कई स्पष्ट पर गुमनाम शिकायतें मिली थीं.

दिसंबर 2013 में जब दिल्ली सरकार मुख्यमंत्री का सचिव चुनने की प्रक्रिया में थी, तब अरविंद केजरीवाल के साथ मैंने 1 घंटे से ज्यादा समय तक बैठक की थी. मैंने उन्हें राजेंद्र के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की शिकायतों की प्रतियां दिखाई थीं. पर केजरीवाल ने उन शिकायतों को कोई महत्व नहीं दिया था.
विनय कुमार मित्तल, पूर्व सदस्य, भ्रष्टाचार निरोधी विभाग, दिल्ली

मित्तल ने बताया कि आम आदमी पार्टी के कई प्रमुख नेता भी राजेंद्र को मुख्यमंत्री का सचिव बनाए जाने के खिलाफ थे. पर तानाशाह माने जाने वाले अरविंद के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा सका था.

‘आप’ के एक और पूर्व नेता प्रशांत भूषण ने भी अपने ट्वीट में राजेंद्र कुमार के खिलाफ एक कार्यकर्ता की शिकायत का जिक्र किया.

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अरविंद केजरीवाल और राजेंद्र कुमार, दोनों ही आईआईटी खड़गपुर के पूर्व छात्र हैं. हालांकि दोनों एक बैच से नहीं हैं. भूषण के मुताबिक, पार्टी के प्रमुख नेताओं में राजेंद्र के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर बातें हो रही थीं, पर केजरीवाल झुकने को तैयार नहीं थे.

भूषण ने यह भी बताया कि अरविंद केजरीवाल को जितेंद्र सिंह तोमर की ‘नकली डिग्री’ के बारे में भी पता था. पर उन्होंने उस पर कार्रवाई करने की बजाय उसे कानून मंत्री बना दिया.

केंद्र और दिल्ली सरकार की लड़ाई से इतना तो साफ है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 67 सीटेें जीतकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी के लिए अपने ही लोगों को भ्रष्टाचार से बचाना मुश्किल हो रहा है.

दूसरी तरफ अरुण जेटली ने उनके खिलाफ सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि केजरीवाल अपने अधिकारी को बचाने के लिए ढाल की तरह काम कर रहे हैं.

यहां एक और सवाल यह उठता है कि क्या जांच एजेंसी डीडीसीए मामले की निष्पक्ष जांच कर पाएगी, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण और ताकतवर लोगों के शामिल होने के कथित आरोप हैं.

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