हेमंत सोरेन सरकार (Hemant Soren Government) के तीन साल पूरे हो चुके हैं. साल 2020 में 29 दिसंबर को हेमंत सोरेन ने झारखंड (Jharkhand) की सत्ता संभाली थी. कांग्रेस और आरजेडी के सहयोग से बनी इस सरकार ने क्या खोया, क्या पाया और आनेवाले दो सालों में क्या करेगी, इसपर बुधवार को हेमंत सोरेन ने एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया.
सीएम ने कहा कि विपक्ष मुद्दा और नेताविहीन है. आज इनके पास सरकार को कहीं से भी कोई भी सवाल करने का मौका नहीं हैं. इनके कुशासन का मंजर 20 सालों तक लोगों ने देखा है. मैं नहीं कहता कि सरकार की आलोचना नहीं होनी चाहिए. होनी चाहिए, लेकिन पॉजिटिव तरीके से होनी चाहिए. न कि लेग पुलिंग होना चाहिए.
क्या आपको अपने नाम पर माइनिंग लीज लेने का कोई रिग्रेट है?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हमारे पास माइनिंग लीज तब से है, जब मैं राजनीति में नहीं था. इस दौरान मैं सांसद रहा, डिप्टी सीएम रहा, सीएम रहा, विधायक रहा, लीडर ऑफ अपोजिशन रहा, लेकिन हमारे दोस्तों को कभी नहीं दिखा, मैं कभी रिग्रेट नहीं करता हूं. अब चूंकि इनको पता है कि सरकार इतनी मजबूती से बैठी है, इसको हिला पाना संभव नहीं है. खासकर विपक्षियों के द्वारा हिलाना तो संभव ही नहीं है. लेकिन आज के दिन में जो राजनीति की नई परिभाषा उभरी है खरीद-फरोख्त, केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करना, उससे पार पाना चुनौती है.
क्या आप ये मानते हैं कि आप बेहतर नेता बनकर उभरे हैं?
इस पर हेमंत सोरेन ने कहा कि मैं व्यापारी नहीं हूं, न ही उद्योगपतियों का बनाया हुआ हूं. मैं आदिवासी, दलित, पिछड़ा, किसान, नंगा-भूखों का प्रतिनिधित्व करता हूं. आज ईमानदारी से कोई काम करना चाहे, उसके लिए बहुत चुनौतियां हैं. हम उसी में इसको देखते हैं. जिसके मुंह में जबान नहीं है, हम उनकी राजनीति करते हैं. जो बौद्धिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तौर पर कमजोर हैं. इनका नेता इनके बीच का हो सकता है, कोई व्यापारी नहीं.
जिनकी राजनीति करने की बात आप करते हैं, उनकी मुंह में जबान शिक्षा से आएगी. जबकि हालात ये हैं कि राज्य के 70 प्रतिशत ऐसे स्कूल जो दलितों-आदिवासियों के इलाके में हैं, वो मात्र एक पारा टीचर के बदौलत चल रहे हैं. उनकी शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया, पूरे तीन साल में, फिर ये राजनीति कैसी?
देखिये बीस साल का जो घाव है वो एक दिन या तीन साल में भरेगा, ऐसा संभव नहीं है. आप देखियेगा इस क्षेत्र में भी हम बड़े बदलाव के साथ आ रहे हैं, बस थोड़ा इंतजार कीजिए. पेड़ लग चुके हैं, फल आएगा.
सरकार अगले साल चुनावी मोड में चली जाएगी, क्या फिर जनता अगले दो साल इंतजार करती रहेगी?
इस सवाल पर उन्होंने कहा कि हम कोई बीजेपी नहीं हैं जो कई सालों तक मोड में रहें. हम काम करने वाले लोग हैं, जल्द परिणाम दिखेगा. गाड़ी स्टार्ट है, फर्स्ट और सेकेंड गीयर लग चुका है, अब टॉप गियर में लाने की देरी है. जो चीजें हो रही हैं, उसको मोमेंटम में लाने की जरूरत है.
हेमंत सोरेन ने अपने सरकार के व्यवहार पर कहा
पहले की सरकारों में जब लोग अपना अधिकार मांगने सड़क पर उतरते थे, तो हक-अधिकार तो नहीं, लाठी-डंडे जरूर मिलते थे. लोग मंत्रियों के घर घेरते थे. हमारी सरकार में ऐसा नहीं होता है. लोगों को सड़कों पर उतरने की आवश्यकता नहीं होती है. अब मंत्रियों के घर रंग-गुलाल और फूल माला पहनाने के लिए घेरते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि अगर कोविड की नई लहर आती है तो हम इस आपदा को अवसर में बदलने का काम करेंगे. पहले भी राज्य में जब एक सिलेंडर तक नहीं था, अस्पताल-डॉक्टर नहीं थे, तब भी हमने सरलता से इस बाधा को पार किया था. जीवन और जीविका को सुरक्षित करने का काम किया था.
अपनी गिरफ्तारी होने पर क्या करेंगे, अगर आपकी गिरफ्तारी होती है तो क्या विकल्प हैं आपके पास?
हेमंत सोरेन ने कहा कि इसमें किसी को चौंकना नहीं चाहिए कि केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी हो जाती है. जब शीबू सोरेन को गिरफ्तार किया जा सकता है, तो मैं किस खेत का मूली हूं. शीबू सोरेन जब सीएम थे, कोयला मंत्री रहे तब भी कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगवाए गए. हम अगर सत्ता में नहीं रहेंगे तो कोई गिरफ्तारी नहीं होगी.
ये तीन साल कांटों का ताज रहा या फूलों का...इस पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि हमारी सरकार में आंदोलन की उपज वाले लोग हैं. हम घबराते नहीं हैं. जितना करीब से यहां के लोगों को हम जानते हैं, विपक्ष के लोग नहीं जानते हैं. हमने हर चुनौती को अवसर में बदलने का काम किया है. बीते 20 साल में पूर्व की सरकारें यहां के पोटेंशियल को नहीं देख पाई. मैं अगर 10 साल भी सत्ता में रहा तो पिछड़े राज्य के धब्बे को मिटा दूंगा.
नई फॉरेस्ट नीति पर सोरेन ने क्या कहा?
हेमंत सोरेन ने नई फॉरेस्ट नीति पर कहा कि कि झारखंड लगभग 50 प्रतिशत जंगलों वाला राज्य है. योजनाएं बनाते हैं, तो फॉरेस्ट एरिया आने पर अब भारत सरकार के अनुमित लेनी होगी. पहले पांच हेक्टेयर तक के जंगलों वाले इलाके में अनुमति लेने की आवश्यकता राज्य सरकार को नहीं होती थी. इस कानून के समाप्त होने के बाद इन क्षेत्रों में कई काम प्रभावित होने वाले हैं.
"राज्यपाल को राजनीति समझने की क्या जरूरत"
सीएम हेमंत सोरेन ने राज्यपाल के साथ संबंधों पर भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि राज्यपाल एक संवैधानिक पद है लेकिन वर्तमान राज्यपाल ये कहते हैं कि हम यहां की राजनीति समझ रहे हैं अभी, थोड़ा वक्त लगेगा. ऐसे में लगता है कि वह डबल डायरेक्शन में काम कर रहे हैं. भला राज्यपाल को राजनीति समझने की क्या जरूरत है.
लिफाफा के सवाल पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि हम तो कई बार मिले, लेकिन उन्होंने दिखाया नहीं. आप लोग ही पूछिये कि क्या है उसमें, और जो बम था उसका क्या हुआ.
आप दलितों-आदिवासियों का नाम ले रहे हैं, अल्पसंख्यकों का क्यों नहीं.
हेमंत सोरेन इस सवाल को टालते नजर आए. उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों से जुड़े कई बोर्ड (वक्फ बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग आदि) का गठन नहीं हुआ है, ये सही बात है. हम गठबंधन में हैं. कई चीजें इस वजह से भी नही हो पाई हैं. सूचना आयुक्त नहीं हैं, क्योंकि विपक्ष के नेता तय नहीं हैं.
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