झारखंड से मध्य प्रदेश के ग्वालियर का सफर - स्कूटी पर 1200 किलोमीटर
6 महीने की गर्भवती को ग्वालियर में D.EL.ED की परीक्षा देनी थी
ऊपर से ये कहानी लगती है एक महिला की हिम्मत की, उसके पति के दु:साहस की. लेकिन इसके पीछे छिपी हैं कई कहानियां..
ये कहानी है -
- एक पति और पत्नी के प्रेम की,
- अपनी माली हालत सुधारने की जद्दोजहद करते एक परिवार की
- लॉकडाउन में गरीबों की दुर्दशा की
- प्रवासी मजदूरों के स्ट्रगल की
- सरकारों की वादाखिलाफी की
- बाढ़ के कारण मची तबाही की
- हमारे तकलीफदेह राजमार्गों की
- और इतनी निगेटिविटी के बीच बची इंसानियत की
- ये कहानी है इस कपल के आगे आने वाले संघर्ष की
ऊपर-ऊपर दिखने वाली कहानी
झारखंड के गोड्डा के धनंजय कुमार हांसदा अपनी गर्भवती पत्नी सोनी हेम्ब्रम को स्कूटी पर बिठाकर करीब 1200 किलोमीटर दूर ग्वालियर लेकर गए ताकि वो DeLED की परीक्षा दे पाएं.
दरअसल, धनंजय झारखंड के गोड्डा जिले के गांव गन्टा टोला के रहने वाले हैं. उनकी पत्नी सोनी हेम्ब्रम 6 महीने की गर्भवती हैं. लेकिन इसी बीच सोनी के डिलेड के पार्ट 2 एग्जाम की तारीख आ गई. एग्जाम मध्य प्रदेश के ग्वालियर में थी और कोरोना की वजह से ट्रेन और बस नहीं चल रही है, ऐसे में प्राइवेट गाड़ी का हजारों रुपए खर्च उठाकर जाना दोनों के बजट से बाहर की बात थी. इसलिए दोनों ने 1200 से ज्यादा का सफर अपनी स्कूटी से ही तय करने का फैसला किया. दोनों इस एग्जाम के लिए 3 राज्य झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश की सड़कें, पहाड़ियों, नदी-नाले को पार करते हुए मध्य प्रदेश तक का सफर किया. दोनों सही सलामत ग्वालियर पहुंच भी गए और फिलहाल सोनी परीक्षा दे रही हैं.
क्विंट से बात करेत हुए धनंजय ने बताया कि 28 अगस्त को दोनों अपने गांव से निकले और 30 अगस्त को ग्वालियर पहुंच गए.
कोरोना की वजह से ट्रेन या बस नहीं चल रही थी. प्राइवेट गाड़ी वाले 30 हजार मांग रहे थे. इतना पैसा कहां से लाते. तो हमने फैसला किया कि स्कूटी से ही चलते हैं. लेकिन स्कूटी से जाने का भी पैसा नहीं था. स्कूटी में पेट्रोल भरवाने के लिए अपनी पत्नी के जेवर 10 हजार रुपये में गिरवी रखने पड़े.क्विंट से धनंजय हांसदा
रास्ते में बारिश हुई तो पेड़ के नीचे रुके, भीगे भी. बिहार के भागलपुर और मुजफ्फरपुर में बाढ़ है, जिस वजह से सड़क के दोनों किनारे पानी था. सोनी गर्भवती है, इसलिए हमने उसे आंख बंद कर लेने को कहा, क्योंकि पानी देखकर उसे चक्कर जैसा लगता. सड़क भी बहुत जगह टूटी हुई थी, जिस वजह से काफी परेशानी हुई. हम लोग दो जगह रात में रुके. एक तो मुजफ्फरपुर में एक लॉज में और लखनऊ में एक टोल टैक्स बैरियर पर.
दु:साहस के पीछे की दर्द भरी दास्तां
पत्नी से किया एक वादा
धनंजय खुद 10वीं पास भी नहीं है, लेकिन पत्नी को टीचर बनाना चाहते हैं. दोनों की शादी साल 2019 में हुई थी. शादी से पहले ही सोनी ने कह दिया था कि वो पढ़ाई करना चाहती हैं और टीचर बनना है. धनंजय ने भी उनकी बात सुनी और उन्हें टीचर बनाने में लग गए. धनंजय ने क्विंट को बताया कि जब ग्वालियर पहुंचे तो इतने लंबे सफर के कारण पत्नी की तबीयत खराब हो गई थी. फिर वो लगातार पत्नी को गर्म पानी पिलाते रहे. गर्भ के कारण दवा देने का डर,बाहर कोरोना का प्रकोप और माली हालत खराब... उन्होंने खुद ही घरेलू उपचार करना ठीक समझा. आखिर सोनी ठीक हो गईं.
इंसानियत
जब दोनों ग्वालियर पहुंचे तो कहीं किराए पर रहने के पैसे तक नहीं थे. ग्वालियर से झारखंड लौटे एक प्रवासी मजदूर दोस्त से मदद मांगी. उसने उनका नंबर दिया, जिनके घर में वो ग्वालियर में रहता था. दोनों पहुंच गए वहीं. इनकी हालत देखकर उन आंटी ने इन्हें न सिर्फ ठहरने की जगह दी, बल्कि खाना भी खिलाया.
लॉकडाउन का असर
क्विंट से बात करते हुए धनंजय बताते हैं कि वो गुजरात में खाना बनाने का काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन में नौकरी चली गई. झारखंड अपने घर लौटने में जो जमा पूंजी थी वो खत्म हो गई. उस वक्त झारखंड के लिए ट्रेन चल नहीं रही थी इसलिए गुजरात से हावड़ा की ट्रेन ली. लेकिन हावड़ा से झारखंड आने में पति-पत्नी को दस हजार रुपए खर्च हो गई, जो इन की कुल जमा पूंजी थी. अब 3 महीने से बेरोजगार हैं. न मनरेगा में काम मिला और न ही कोई और नौकरी.
सरकारों की वादा खिलाफी
धनंजय बताते हैं कि तीन महीने से वो बेरोजगार बैठे हैं. मुखिया से भी मदद मांगी, लेकिन कुछ नहीं. न मनरेगा में काम मिला और न कोई और मदद. कहते हैं सब अपनों को सेट करने में लगे हैं. पत्नी कहती हैं कि वापस गुजरात जाओ लेकिन वापसी के भी पैसा नहीं हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि झारखंड सरकार के उन वादों का क्या जिसमें कहा गया था कि प्रवासी मजदूरों को गांव में ही काम मिलेगा?
जब धनंजय बाढ़ के बीच से स्कूटी के खतरनाक सफर की कहानी बताते हैं तो याद आता है कि बिहार में बाढ़ को रोकने के लिए कितने अरब पानी में बहाए गए.
जब वो कहते हैं कि सड़क बहुत खराब होने से बहुत दिक्कत हुई थी याद आता है कि हमारे नेता ने सड़क की व्यवस्था के नाम पर कितने वोट बटोरे.
जब धनंजय कहते हैं उनके गांव में पानी की व्यवस्था तक नहीं तो याद आता है कि हर गांव को पेयजल देने के नाम पर कितनी योजनाएं बनीं और उनका क्या हुआ?
अभी तो वापस भी जाना है
धनंजय और सोनी को अभी परीक्षा के बाद वापस भी जाना है, लेकिन सोनी अब डर गई हैं. एक तरफ की यात्रा की थकावट अभी गई नहीं है, बच्चे को लेकर जो डर है वो अलग. धनंजय कहते हैं कि पैसे हैं नहीं कैसे जाएंगे पता नहीं. दोनों को इसी तरह स्कूटी से वापस लौटना होगा, जिसके लिए अब उनके पास पैसे नहीं बचे हैं. झारखंड से ग्वालियर आने में 3500 रुपए से ज्यादा का पेट्रोल खर्च हो चुका है, ऊपर से खाने, इलाज और रुकने का खर्च. एक तरीका ये सोच रखा कि हाथ में जो अंगूठी है, उसे बेच देंगे और कुछ जुगाड़ करेंगे जाने का.
आखिर में - क्या झारखंड सरकार ये पूरी कहानी देखकर धनंजय और सोनी की मदद करेगी? उन्हें घर पहुंचाने की मदद, उनकी रोजी रोटी में कोई मदद? क्या सोनी और धनंजय के आने वाले बच्चे को एक बेहतर भविष्य मिल सकेगा? खबर मिलने पर हम आपको अपडेट करेंगे.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)