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‘थाने के अंदर मारा था’-BJP नेता के भाई ने बताई विकास दुबे की कहानी

‘थाने में राजनाथ सिंह सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ला का मर्डर और विकास का बच जाना’

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जिस कुख्यात विकास दुबे पर यूपी के कानपुर में आठ पुलिसवालों की जान लेने का आरोप है, उसी पर 2001 में बीजेपी के कानपुर देहात जिला अध्यक्ष और तत्कालीन राजनाथ सिंह सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ला की हत्या का आरोप लगा था. उस हत्या को शिबली थाने के अंदर घुसकर अंजाम दिया गया था. फिर भी विकास दुबे इस केस से बरी हो गया.

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संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला ने क्विंट से कहा कि उस वक्त पुलिस वालों ने जो भूमिका निभाई, आज उसी का नतीजा निकला है. मनोज शुक्ला ने हमें विकास दुबे के क्राइम और उसे राजनीतिक शरण की पूरी कहानी सुनाई.

थाने में मर्डर और विकास का बच जाना

मनोज शुक्ला के मुताबिक - ''12 अक्टूबर, 2001 को इसने (विकास दुबे) बीजेपी नेता लल्लन वाजपेयी के घर को घेरा लिया. खुले कट्टे, राइफल लेकर. लल्लन वाजपेयी ने भइया को फोन किया, कि भाई साहब लगता है आज मेरी हत्या कर देंगे. भाई साहब ने कहा कि तुम घर के अंदर रहो, मैं आ रहा हूं. कानपुर से वहां पहुंचने में उन्हें 55 मिनट लगे, वो सीधे शिबली थाने पहुंचे. जब वो थाने पहुंचे तो वो लोग लल्लन वाजपेयी का घर छोड़कर थाने पहुंच गए. इन लोगों ने फायरिंग की और उन पर हमला बोल दिया.

चूंकि थाने के अंदर हत्या हुई थी, पुलिस वाले गवाह थे, इंस्पेक्टर गवाह था, SI गवाह थे, लेकिन एक भी गवाह नहीं खड़ा हुआ, सब मुकर गए तो ये बरी हो गया. वादी हाईकोर्ट नहीं जा सकता, सरकार ही हाईकोर्ट जाती है लेकिन तब की BSP सरकार हाईकोर्ट में मामले को लेकर नहीं गई.
मनोज शुक्ला, संतोष शुक्ला के भाई

वसूली से बाहुबली

मनोज शुक्ला बताते हैं कि दरअसल विकास आज ये जुर्रत इसलिए कर पाया क्योंकि उसे हर सरकार में नेता सरंक्षण देते रहे. विकास की कहानी मनोज शुक्ला कुछ यूं बताते हैं-

उस जमाने में सीबी नगर पंचायत में दो लोगों का दबदबा हुआ करता था. एक लल्लन वाजपेयी और दूसरा विकास दुबे. ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू थे. एक नेता था, दूसरा अपराधी. फिर नगर निकाय के चुनाव आए. शिबली नगर पंचायत से लल्लन वाजपेयी को बीजेपी ने अपने चुनाव चिन्ह पर लड़ाया. लल्लन निगम में चेयरमैन हो गए और यहीं से लल्लन और दुबे में झगड़ा शुरू हुआ. दरअसल दुबे उगाही का काम करता था और उगाही के पैसे दोनों में बंटते थे. जब लल्लन चेयरमैन हो गए तो इस उगाही के कारण उनकी साख में बट्टा लगना शुरू हुआ तो उन्होंने विकास दुबे को रोकना चाहा. इसको लेकर गोलीबारी भी हुई. इसमें लल्लन के भाई घायल हो गए. दोनों तरफ से FIR भी हुई.

मनोज शुक्ला के मुताबिक इसके बाद विकास ने खुद भी राजनीति में दांव आजमाए. दुबे ने बीएसपी के सिंबल से जिला पंचायत का चुनाव लड़ा और जीता. पंचायत सदस्य बना. 2002 में बीएसपी का शासन आने बाद उसका रसूख बढ़ता गया. इस बीच वो एक के बाद एक क्राइम करता रहा. 2000 में उस पर शिबली में एक कॉलेज के असिस्टेंट मैनेजर की हत्या का आरोप लगा. फिर 25 बीघा जमीन को लेकर एक रामबाबू की हत्या का आरोप लगा. 2004 में केबल कारोबारी दिनेश दुबे की हत्या का आरोप भी लगा.

'BSP से SP और BJP शासन तक में मिलता रहा सियासी सरंक्षण'

राजनीतिक आदमी को बाहुबली अगर मिल जाते हैं तो उन्हें सरंक्षण देने में उनकी आत्मा बहुत तृप्त होती है, प्रसन्न होती है. बीएसपी के कुछ नेताओं को ये शौक था, एसपी की सरकार में भी कुछ लोगों को ये शौक था. इस बीच 2017 में जो चुनाव हुआ इसमें कई पूर्व विधायक बीजेपी में शामिल हुए और फिर विधायक बन गए. उन विधायकों से उसके रिश्ते नहीं खत्म हुए. चूंकि जो लोग बीजेपी में शामिल हुए उनका आवरण तो बदल गया लेकिन रिश्ते उससे नहीं खत्म हुए. इस तरीके से  बीजेपी में भी लोग प्रश्रय देते रहे.
मनोज शुक्ला, संतोष शुक्ला के भाई

विकास दुबे पर कुल 62 मामले दर्ज हैं. इनमें से सात हत्या के हैं. लेकिन बावजूद इसके उसका कुछ बिगड़ न पाया.  वो कैसे बचता रहा इसका अंदाजा कानपुर मुठभेड़ के बाद सामने आ रही है खबरों से भी लग रहा है. पुलिस को शक है कि विकास दुबे को पुलिस की दबिश की जानकारी चौबेपुर के SHO ने दी. SHO विनय तिवारी खुद दबिश में शामिल थे, लेकिन ऐन मौके पर मौके से भाग गए. महकमे ने उन्हें सस्पेंड कर दिया है.

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