ADVERTISEMENTREMOVE AD

कानपुर: कुओं के खत्म होने से उपजा है भयावह पेयजल संकट

शहर की 50 से 70% आबादी को ही मिलता है पानी

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
स्नैपशॉट

आखिर कानपुर के लिए क्यों जरूरी हैं इसके कुएं

  • गंभीर पेयजल संकट से जूझ रहा है कानपुर
  • शहर की 50 से 70% आबादी को ही मिलता है पानी
  • शहरवासियों की उदासीनता की चलते सूख चुके हैं दो दर्जन से अधिक पारंपरिक कुएं
  • कानपुर के जल-स्तर को सुधारने के लिए आवश्यक है इसके कुओं का पुनर्जीवन
  • सरकारी फाइलों तक सीमित हैं वर्षा जल संचयन की सभी योजनाएं
ADVERTISEMENTREMOVE AD

कानपुर शहर एक भयावह पेयजल संकट से जूझ रहा है. सड़कों पर पीने का पानी भरने के लिए लंबी कतारें हैं. पानी की सप्लाई न होने पर शहरवासियों का विरोध जारी है. लेकिन, ये लंबी कतारें और विरोध प्रदर्शन इस शहर की धरती के नीचे जन्म लेते पेयजल संकट की एक हल्की सी झलक भर है.

सूख चुके हैं कानपुर के ज्यादातर कुएं

ग्राउंड वॉटर लेवल को सामान्य बनाए रखने में कुएं और तालाब सबसे बड़े सहायक होते हैं. गर्मियों के दिनों में इन जल-निकायों से पानी निकाला जाता है. और, बारिश के मौसम में पानी इनसे होकर जमीन में पहुंचता है. अब, ऐसे में जब तालाबों में कंक्रीट भरकर उनपर ऊंची इमारतें बना दी गई हों. और, कुओं को पाटकर शो-पीस बना दिया जाए तो ग्राउंड वॉटर लेवल का गिरना लाजमी है.


कानपुर के कई इलाके ऐसे हैं जहां का ग्राउंड वॉटर लेवल 250 फीट से भी नीचे गिर चुका है.

कुओं के प्रति शहरवासियों की उदासीनता बयां कर रहे हैं कानपुर में अपनी जिंदगी के 60 बसंत गुजारने वाले महमूद खान -

एक दौर था, जब लोग अपनी मिट्टी, पानी, और कुओं को लेकर संवेदनशील थे. कुओं की पूजा होती थी. लेकिन, किसी परंपरा की वजह से नहीं. बल्कि, प्रकृति में कुओं के महत्व की वजह से. अब सब बदल गया है. हर घर में पानी की मशीनें लग गई हैं. अब कौन कुओं की सुध लेगा. अब भी किसी को कुएं में थूकते देखता हूं तो चिल्ला पड़ता हूं...कहता हूं कि बर्बाद हो जाओगे, कुएं में कूड़ा फेंकना और थूकना अच्छा नहीं है. इसका सम्मान होना चाहिए. 
महमूद खान, वृद्ध कानपुरवासी
ADVERTISEMENTREMOVE AD

उदासीन है शहर और प्रशासन

एक वरिष्ठ पत्रकार राकेश मिश्र कानपुर में बढ़ते पेयजल संकट के लिए प्रशासन के साथ ही शहरवासियों को भी जिम्मेदार ठहराते हैं.

शहर में इंटर-लॉकिंग टाइल्स लगाने के साथ ही वर्षा जल संचयन की योजना को मूर्तरूप दिया जाना था. लेकिन, ये टाइल्स तो लग गए लेकिन जल संचयन की योजना जस की तस पड़ी है. नमामि गंगे से लेकर राज्य स्तर पर किए जाने वाले वर्षा जल संचयन की योजनाएं कागजों तक सीमित हैं. अब शहर में बारिश का पूरा पानी नालों से होकर गंगा में चला जाता है. लेकिन, जलस्तर बढ़ाने में इस पानी को प्रयोग नहीं किया जा रहा है. ऐसे में जल-स्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा है. अब, कानपुर में आईपीएल होने जा रहा है. इससे स्थिति कितनी खराब होगी ये कहना मुश्किल है. लेकिन, अगर सही समय पर जलसंचयन के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति खराब हो सकती है. 
राकेश मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार
ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन, उम्मीद अभी बाकी है!

कानपुर शहर के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाते हुए शहरवासियों से अपील की है कि वे वैज्ञानिक ढंग से बनाए गए पारंपरिक कुओं का पुनर्जीवन किया जाए. उन्होंने कहा है कि अगर शहरवासी इन कुओं को दोबारा शुरू करने के लिए प्रशासन से किसी तरह की मदद चाहते हैं तो प्रशासन की ओर से वो मदद उपलब्ध कराई जाएगी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या कानपुर उठाएगा जरूरी कदम?

अब प्रश्न ये उठता है कि क्या कानपुर अपने बढ़ते पेयजल संकट से निपटने के लिए कुओं के उद्धार की दिशा में कोई कदम उठाएगा या फिर ये शहर अपने कुओं के प्रति यूं ही उदासीन रहेगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×