कर्नाटक में एक सांसद को जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा. राज्य की चित्रदुर्ग सीट से लोकसभा सांसद नारायणस्वामी अपने संसदीय क्षेत्र में टुमकुर जिले के गोलारहट्टी गांव में विकास कार्यों की समीक्षा के लिए गए थे.
इस दौरान ग्रामीणों ने उन्हें इसलिए गांव में घुसने से रोक दिया क्योंकि वे दलित जाति से ताल्लुक रखते हैं. गांव वालों से इस दौरान थोड़ी बहस भी हुई लेकिन सांसद को बैरंग लौटना पड़ा.
बीजेपी सांसद नारायणस्वामी ने बताया, ‘हमने पवागडा में कई सरकारी स्कूलों और अस्पतालों का दौरा किया था. बायोकॉन फाउंडेशन और नारायण हेल्थ इस क्षेत्र में बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं को विकसित करने के लिए निवेश करना चाहती थीं.’
ग्रामीणों ने कहा- गांव में दलितों का प्रवेश निषेध
जैसे ही सांसद का काफिला, जिसमें बायोकॉन और नारायण हेल्थ के प्रतिनिधि भी शामिल थे, ने गोल्लारहट्टी गांव में मंदिर की ओर जाने वाली सड़क पर आगे बढ़े, उन्हें गांव के निवासियों ने रोक दिया और वापस जाने को कहा.
सांसद को गांव में घुसने से सिर्फ इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि वह मादीगा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. मादीगा समुदाय शेड्यूल कास्ट में आता है.
गांव वालों का कहना था कि गांव में दलित और निम्न समुदाय के लोगों का प्रवेश निषेध है. बता दें, गोलारहट्टी गांव में अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग रहते हैं और अपने गांव में दलितों को प्रवेश नहीं करने देते हैं.
ग्रामीणों के बर्ताव पर सांसद ने क्या कहा?
सांसद नारायणस्वामी ने इस घटना की पुष्टि की है. उन्होंने बताया, “मुझे बहुत तकलीफ हुई, क्योंकि मुझे दलित होने के कारण गोलाराहट्टी में जाने की अनुमति नहीं दी गई. मैं उनकी समस्याओं को सुनने और उन्हें आवास और अन्य बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के लिए गया था, क्योंकि वे कई सालों से बिना किसी सुविधा के झोपड़ियों में रह रहे हैं. ”
नारायणस्वामी ने बताया-
“मैंने गांव वालों को समझाने की कोशिश की. मैंने कहा कि इस प्रथा को बंद करना चाहिए, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि गांव के पुजारियों ने मेरे समुदाय के किसी भी पिछले विधायक या सांसद को गांव में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी. हालांकि, बाद में कुछ लोग मुझे गांव में प्रवेश देने के लिए तैयार हो गए. लेकिन मैं वहां से चला आया, क्योंकि मैं लोगों के बीच लड़ाई का कारण नहीं बनना चाहता था.”
‘20 सालों में ऐसी स्थिति का कभी सामना नहीं किया’
रविवार को गोलारहट्टी में जो कुछ हुआ, वह जाति आधारित भेदभाव है जो पीढ़ियों से गांव में होता रहा है. समाज कल्याण मंत्री और बेंगलुरु में एनेकल से तीन बार विधायक रह चुके नारायणस्वामी कहते हैं कि यह पहली बार है जब उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में इस तरह के भेदभाव का सामना किया है. उन्होंने कहा-
“मैंने 20 सालों से जनप्रतिनिधि के तौर पर लोगों की सेवा कर रहा हूं लेकिन मैंने कभी भी इस तरह की स्थिति का सामना नहीं किया. मैं लोगों को जाति के चश्मे से नहीं देखता. न ही मेरे मन में यह है कि मैं किसी विशेष जाति से हूं. मैं गांव में बलपूर्वक जाने की कोशिश नहीं करूंगा. मैं चाहता हूं कि गांव के लोग यह समझें कि ये गलत है और गांव में मेरे समुदाय के लोगों का स्वागत करें.”
नारायणस्वामी ने कहा कि अगर वह चाहते तो पुलिस की मदद से गांव में दाखिल हो सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
बीजेपी सांसद नारायणस्वामी कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) कार्यक्रमों के तहत बायोकॉन फाउंडेशन और नारायण हेल्थ जैसे कॉरपोरेट्स से गांव में बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने के लिए धन जुटा रहे हैं.
बता दें, कर्नाटक में तुमकुरु जिले में पावागाड़ा तालुक सूखा प्रभावित क्षेत्र है. यहां के लोग भी फ्लोरोसिस से जूझ रहे हैं. यहां के पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने से लोगों का शरीर कमजोर और दांतों में पीलापन होता है.
नारायणस्वामी चाहते हैं कि गांव में रहने वाले लोगों की मानसिकता बदले और वे उन्हें एक अपने नेता के रूप में स्वीकार करें, ताकि गांव का समुचित विकास कराया जा सके.
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