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AN-32 क्रैश: क्या है ब्लैक बॉक्स, कैसे पता चलती है हादसे की वजह?

जांच में मददगार बनेगा AN-32 का ब्लैक बॉक्स

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अरुणाचल प्रदेश में दुर्घटनाग्रस्त हुए भारतीय वायुसेना के मालवाहक विमान AN-32 में सवार सभी 13 जवानों की मौत हो गई है. सभी 13 लोगों के शव बरामद कर लिए गए हैं. इसके साथ ही विमान का ब्लैक बॉक्स भी बरामद कर लिया गया है.

AN-32 का ब्लैक बॉक्स मिल जाने के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही विमान के क्रैश होने की वजह सामने आ सकती है. ब्लैक बॉक्स वह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग डिवाइस होती है, जिसे एयरक्राफ्ट में लगाया जाता है. इसका मकसद यही होता है कि अगर कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो बाद में उसकी जांच में आसानी हो और दुर्घटना या विमान क्रैश होने के कारणों का पता लगाया जा सके.

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क्या होता है ‘ब्लैक बॉक्स’?

जब भी कोई विमान क्रैश हो जाता है तो उसकी जांच की शुरुआत ब्लैक बॉक्स से ही होती है. बीते 60 सालों से ब्लैक बॉक्स ही वो चीज है जो विमान दुर्घटनाओं के बाद जांचकर्ताओं की मदद करती है.

आमतौर पर किसी भी विमान दुर्घटना के बाद कई सवाल अनसुलझे रह जाते हैं. मसलन, विमान क्रैश क्यों हुआ? विमान किस वक्त क्रैश हुआ? जिस वक्त विमान क्रैश हुआ उस वक्त विमान के अंदर क्या हालात थे? ऐसे ही कई सवालों के जवाब देने में 'ब्लैक बॉक्स' मदद करता है.

किसी भी कॉमर्शियल एयरप्लेन या कॉर्पोरेट जेट में कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर लगा होना जरूरी होता है. ये दो अलग-अलग डिवाइस हैं, जिन्हें आमतौर पर ‘ब्लैक बॉक्स’ कहा जाता है.

किसी भी एयरक्राफ्ट के उड़ने में तो इन डिवाइस का कोई काम नहीं होता है, लेकिन ये दोनों डिवाइस बेहद महत्वपूर्ण होती हैं. इन्हीं डिवाइस के जरिए विमान दुर्घटना के बाद जांचकर्ताओं को यह पता लगाने में मदद मिलती है कि कोई भी प्लेन क्रैश क्यों हुआ और क्रैश होने से ठीक पहले क्या हुआ था?

कैसे काम करता है ‘ब्लैक बॉक्स’?

समुद्र में होने वाले विमान दुर्घटना के बाद कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर का पता लगाने में मदद करने के लिए, दोनों रिकॉर्डर में अंडरवाटर लोकेटर बीकन (ULB) नाम की एक डिवाइस होती है. रिकॉर्डर के पानी के संपर्क में आते ही ये डिवाइस एक्टिव हो जाती है. यह डिवाइस गहराई से 14,000 फीट की दूरी से ट्रांसमिट हो सकती है.

CVR यानी कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर में पायलट या क्रू मेंबर्स की आपसी बातचीत और एयर ट्रैफिक कंट्रोल के इंस्ट्रक्शंस की रिकॉर्डिंग होती है. इसके अलावा आसपास की आवाजें भी रिकॉर्ड होती हैं, जिनसे जांचकर्ताओं को महत्वपूर्ण सुराग मिल सकता है.

किसी भी हादसे में कैसे बच जाता है ब्लैक बॉक्स?

किसी भी विमान में इन दोनों डिवाइस यानी ब्लैक बॉक्स को बहुत ज्यादा सुरक्षित रखा जाता है. ताकि ये किसी भी हादसे में बच सकें. अगर विमान समुद्र में या पानी में कहीं गिर जाए तो वहां पर भी काम कर सकें या नष्ट न हों.

ब्लैक बॉक्स बेहद मजबूत धातु टाइटेनियम का बना होता है. किसी भी एयरक्राफ्ट में लगने वाले ये रिकॉर्डर बहुत सारे परीक्षणों से गुजरते हैं. इन डिवाइस में जो डेटा डिजिटली सेव होता है, वो नष्ट न हो इसलिए इन्हें शॉक-प्रूफ बनाया जाता है. साथ ही यह एक घंटे तक 1,110 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान को और कम से कम दस घंटे तक ढाई सौ डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान को सहने की क्षमता रखते हैं.

सबसे जरूरी बात, ‘ब्लैक बॉक्स’ काले रंग का नहीं होता है. दरअसल, ‘ब्लैक बॉक्स’ मीडिया द्वारा दिया गया नाम है. दोनों महत्वपूर्ण डिवाइस CVR और FDR यानी ‘ब्लैक बॉक्स’ ऑरेन्ज कलर का होता है, ताकि ये खोजकर्ताओं को आसानी से मिल जाए.

ब्लैक बॉक्स को एक अंडरवाटर लोकेटर बीकन के साथ फिट किया जाता है. इसमें एक सेंसर भी लगा होता है. जैसे ही सेंसर पानी को छूता है, तो ये एक्टिव हो जाता है और संकेत भेजने लगता है. ये डिवाइस तीस दिनों तक बिना बिजली के काम कर सकते हैं. लोकेटर बीकन 14000 फीट गहरे समुद्री पानी के अन्दर से भी संकेत भेज सकता है.

इसका मतलब है कि विमान के पानी के नीचे होने पर भी ‘ब्लैक बॉक्स’ का पता लगाया जा सकता है. अगर जमीन पर कोई दुर्घटना होती है, तो खोजकर्ताओं को ऑरेंज रंग की वजह से इसे ढूंढने में आसानी होती है.

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प्लेन में कहां लगा होता है ब्लैक बॉक्स?

हालांकि, इन डिवाइस में डेटा और वॉइस कॉकपिट से रिकॉर्ड होती है, लेकिन इन्हें कॉकपिट के अंदर नहीं लगाया जाता है. आमतौर पर इन डिवाइस को एयरक्राफ्ट के पिछले हिस्से यानी टेल में लगाया जाता है. ताकि, प्लेन के क्रैश होने की स्थिति में भी इन डिवाइस के सुरक्षित रहने की ज्यादा से ज्यादा संभावना रहे.

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