अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद “कोठारी बंधुओं” की बहन ने कहा है कि उनकी मां ने 25 साल तक उनके भाइयों के बलिदान को जिया है. कोठारी बंधुओं की इकलौती बहन पूर्णिमा कोठारी अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से काफी खुश हैं. लेकिन वह अपना दुख छिपाना भी नहीं चाहतीं.
कोलकाता से फोन पर बातचीत में पूर्णिमा कोठारी ने कहा,“मैं आज भी अपने भाइयों के उस बलिदान को जी रही हूं."
कौन थे कोठारी बंधु, अयोध्या से क्या है कनेक्शन?
राम कोठारी आज जिंदा होते तो बीकानेर में अपना कारोबार कर रहे होते या फिर कोलकाता में पिता का व्यवसाय संभाल रहे होते. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. राम मंदिर के लिए 1990 में हुई कारसेवा में शामिल होने को राम कोलकाता से अपने छोटे भाई शरद के साथ अयोध्या पहुंचे थे, जहां दोनों भाई चार दिन बाद हुई गोलीबारी का शिकार हो गए.
कोलकाता निवासी राम कोठारी और शरद कोठारी ने 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में तत्कालीन बाबरी मस्जिद के ढांचे पर कथित तौर पर भगवा झंडा फहराया था और दो नवंबर 1990 को अयोध्या में पुलिस की गोली से उनकी मौत हो गई थी.
उनके अयोध्या पहुंचने से ठीक पहले वरिष्ठ बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को बिहार के समस्तीपुर में रोककर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. अयोध्या में कारसेवकों के लिए भी हालत मुश्किल होने लगे थे. उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे.
कोठारी बंधु 30 अक्टूबर ,1990 को अयोध्या पहुंचे और उसी शाम सैकड़ों कारसेवकों के साथ बाबरी मस्जिद पर भगवा झंडा फहराने चल पड़े. बाबरी मस्जिद पर भगवा झंडा फहराने की जो तस्वीरें मीडिया में आईं, उनमें राम कोठारी गुंबद के सबसे ऊपर हाथ में भगवा झंडा थामे खड़े थे और शरद कोठारी उनके बगल में खड़े थे.
पुलिस की गोलीबारी में गई थी 16 लोगों की जान
मीडिया के अनुसार, इसके बाद दो नवंबर, 1990 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन कारसेवक एक बार फिर बाबरी मस्जिद की ओर कूच करने के लिए हनुमान गढ़ी मंदिर के पास जमा हुए. इस बार पुलिस ने उन्हें काबू में करने के लिए गोलियां चलाई. प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक, हनुमान गढ़ी के पास हुई इस गोलीबारी में 16 लोग मारे गए, जिसमें राम और शरद कोठारी भी शामिल थे.
“मैं मानती हूं कि जब किसी परिवार से कोई बलिदान होता है, तो उस बलिदान को पूरा परिवार जीता है. मैंने अपनी आंखों से यही देखा है कि मेरे माता-पिता ने अपने बच्चों के बलिदान को अपनी सारी उम्र जिया. मेरी मां जब गुजरी, तो मेरे भाइयों को गुजरे 25 साल हो गए थे, लेकिन वह लगातार उस बलिदान को जी रही थीं.”पूर्णिमा कोठारी
उनके पिता का 2002 में और मां का 2016 में देहांत हुआ.
बीकानेर में था कोठारी परिवार का बिजनेस
कोठारी बंधुओं का परिवार मूल रूप से बीकानेर का रहने वाला था और दोनों भाइयों को बीकानेर से बहुत लगाव था. इस बारे में पूर्णिमा ने बताया,
“पिता जी ने बीकानेर में सॉफ्ट ड्रिंक की छोटी फैक्टरी खोली थी. दोनों भाई आपस में बहस करते थे कि तुम कलकत्ता रहना, मैं बीकानेर जाऊंगा. दोनों को बीकानेर बहुत पसंद था. दोनों बीकानेर में जाकर रहना चाहते थे.”
व्यावसायी समाज से संबंध रखने के कारण दोनों भाइयों को नौकरी करने की बहुत चाह नहीं थी और राम कोठारी ने तो कोलकाता में पिता के लोहे के कारोबार में हाथ बंटाना भी शुरू कर दिया था. पूर्णिमा ने बताया, "ये तय था कि वह बिजनेस ही करेंगे."
आरएसएस से जुड़े थे कोठारी बंधु
उन्होंने बताया कि दोनों भाई बहुत छोटी उम्र से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े गए थे और जिस समय अयोध्या में उनकी मौत हुई, उस समय राम 22 साल के और शरद 20 साल के थे. पूर्णिमा शरद से एक साल छोटी हैं.
उस समय कारसेवा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अधिकारियों ने यह नियम बनाया था कि एक परिवार से एक व्यक्ति ही कारसेवा में जाएगा. अगर कोठारी भाइयों ने ये बात मानी होती, तो उनमें से एक आज जीवित होता, लेकिन उनकी जिद के आगे परिवार को झुकना पड़ा.
पूर्णिमा बताती हैं, “राम ने कहा कि राम के काम में राम तो जाएगा. छोटे ने कहा कि राम जहां जाएगा, वहां लक्ष्मण भी जाएगा. ऐसा करके इन्होंने अधिकारियों और घर वालों दोनों को निरुत्तर कर दिया.”
उन दोनों की मौत के बाद उनकी अंतिम इच्छा यानी राम मंदिर आंदोलन में उनके माता-पिता भी शामिल हो गए. पूर्णिमा ने बताया, "मेरे मां-पिता जी हर कारसेवा में अयोध्या पहुंचते थे. छह दिसंबर को जिस दिन ढांचा गिराया गया था, उस दिन भी वहां मेरे मां-पिता कारसेवा के लिए मौजूद थे."
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