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बिहार: बिन लालू-तेजस्वी, कहां जा रही है RJD? 

“बिना लीडर की आरजेडी, सवाल तो उठेगा ही”

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क्या बिहार का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार बिखर जाएगा? क्या लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी टूट जाएगी? क्या जेडीयू-आरजेडी फिर से मिलेगी? क्या लालू यादव को बचाने के लिए लालू के बेटे बीजेपी से हाथ मिला लेंगे? ये सारे सवाल बिहार में चाय की दुकान से लेकर सत्ता के गलियारे और मीडिया में चल रहे हैं.

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ये सवाल इसलिए और भी मजबूत होते जा रहे हैं क्योंकि 2019 लोकसभा चुनाव में मिली हार को ढाई महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन लालू के छोटे बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पब्लिक लाइफ से करीब-करीब गायब हैं. हाल ये है कि पार्टी के बड़े नेताओं से लेकर कार्यकर्ता असमंजस में हैं.

अब आरजेडी के विरोधी भी लालू परिवार पर जमकर हमला बोल रहे हैं. बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने लालू परिवार पर कटाक्ष करते हुए कहा है,

“परिवार के अंदर और बाहर कोई वारिस नहीं खोज पाए लालू, इनका भी हाल कांग्रेस जैसा है.”
सुशील कुमार मोदी, डिप्टी सीएम, बिहार

तेजस्वी की दूरी, पार्टी की मजबूरी

पटना के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय बताते हैं कि राजनीति में हार जीत होती रहती है, लेकिन इस तरह से मैदान छोड़कर गायब रहने से समर्थक से लेकर कार्यकर्ता में निराशा फैल रही है. "हाल ये है कि तेजस्वी यादव पार्टी के कार्यक्रमों से भी दूरी बनाये हुए हैं. 9 अगस्त से शुरू होने वाले सदस्यता अभियान की बैठक हो या पार्टी का फाउंडेशन डे हो, तेजस्वी इतने बड़े कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. यहां तक कि विधानसभा के सत्र में भी वो मौजूद नहीं रहे, जबकि वो विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं. अब ये बात किसी को समझ नहीं आ रही है कि ऐसा क्या हो गया है जो तेजस्वी खुद को अलग-थलग रखे हुए हैं."

"बिना लीडर की आरजेडी, सवाल तो उठेगा ही"

तेजस्वी के इस तरह से मीटिंग में ना आने पर पार्टी के सीनियर लीडर शिवानंद तिवारी ने भी चिंता जताई है. उन्होंने क्विंट से बात करते हुए कहा-

“ये सच्चाई है कि पार्टी को लेकर लोगों के मन में शंका है, कोई समझ ही नहीं पा रहा है कि पार्टी में क्या हो रहा है. इससे तेजस्वी जी को ही नुकसान हुआ है. पार्टी बिना लीडर की हो गई है. लालू जी जेल में हैं, लालू जी ने अपनी कमान तेजस्वी जी को सौंपी और अब वो मैदान में नहीं हैं तो ये स्वाभाविक है कि चिंता होगी. हम हों या कोई भी दूसरा लीडर हो वो एक तरफ है, लेकिन लोग तेजस्वी को ढूंढते हैं, वो पार्टी का चेहरा हैं. और अगर तेजस्वी ही नहीं होंगे तो लोगों को तो लगेगा ही कि सब ठीक नहीं है. इन सबका मैसेज गलत जा रहा है. विरोधियों को भी हमला करने का मौका मिल रहा है.”

हालांकि, आरजेडी के दूसरे नेता ऐसी खबरों को प्लांटेड और असल मुद्दों से ध्यान भटकाने वाली मान रहे हैं. क्विंट से बात करते हुए आरजेडी नेता और राज्यसभा सांसद प्रोफेसर मनोज झा कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि तेजस्वी लगातार मीटिंग में नहीं आए, वो कई मीटिंग में मौजूद थे. लेकिन आप कम से कम किसी की पर्सनल लाइफ में इतना तो स्पेस देंगे कि उसके जो काम छूटे हुए थे, उसे वो पूरा कर पाए.”

बिहार में ऐसे कई सारे मुद्दे हैं, जिसपर लोग चर्चा नहीं करना चाहते हैं, मॉब लिंचिंग पर लोग चर्चा नहीं चाहते हैं, बिहार में कानून व्यवस्था पर चर्चा नहीं चाहते हैं. लेकिन चर्चा करना है कि तेजस्वी जी किस मीटिंग में नहीं आए, लेकिन ऐसे लोगों की मनोकामना भी पूरी हो जाएगी, उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. तेजस्वी जी जल्द ही आक्रामक और एक्टिव तरीके से बिहार में नजर आएंगे.
प्रोफेसर मनोज झा, आरजेडी नेता और राज्यसभा सांसद

कार्यकर्ताओं और पार्टी विधायकों के असमंजस के सवाल पर प्रोफेसर मनोज झा ने कहा कि ये सब बनी बनाई स्टोरी है. ताकि सिर्फ इन बातों पर चर्चा हो और मौलिक बातों से ध्यान हटाया जाए. ये सब एक खास फैक्ट्री में बनाई हुई खबर है.

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राबड़ी देवी ने संभाला मोर्चा

वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय बताते हैं कि भले ही परिवार में जितनी भी उठा पटक चल रही हो, लेकिन इन सबके बीच राबड़ी देवी ने मोर्चा संभाल रखा है. अब चाहे विधानमंडल की बैठक हो, इफ्तार पार्टी हो, सरकार को घेरना हो.

परिवार में सब कुछ ठीक नहीं

पटना के एक अंग्रेजी अखबार में काम करने वाली वरिष्ठ पत्रकार बताती हैं,

“लालू परिवार में दो सेंटर प्वॉइंट बन गया है. लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप और बड़ी बेटी मीसा भारती एक तरफ तो तेजस्वी यादव दूसरी ओर. ऐसे में लालू का वारिस कौन हो, इसे लेकर भी परिवार में खींचतान जारी है. साथ ही तेजस्वी यादव लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद से अपने बड़े भाई से काफी नाराज हैं. क्योंकि चुनाव में तेज प्रताप से उन्हें कोई मदद नहीं मिली, ऊपर से तेज प्रताप ने पार्टी के खिलाफ ही कई जगह अपने कैंडिडेट खड़े कर दिए.”

क्या जेडीयू और आरजेडी फिर होंगे साथ?

2015 बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी किसी को नहीं लगता था कि दो घोर विरोधी नीतीश कुमार और लालू यादव भी मिल सकते हैं, लेकिन दोनों मिले और सरकार भी बनाई. लेकिन 20 महीने में दोस्ती, दुश्मनी में बदल गई. लेकिन अब एक बार फिर मीडिया में दोनों के साथ आने जैसी अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं.

हालांकि, जेडीयू इस मामले पर साफ कह रही है कि अब ये दोस्ती नहीं होगी. जेडीयू के जनरल सेक्रेटरी और मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह ने क्विंट को बताया कि आरजेडी-जेडीयू के मिलने का कोई सवाल ही नहीं है.

ये सब बेकार बात है. बीजेपी और हमारी पार्टी के बीच तालमेल की कोई कमी नहीं है. फिर ये सब सवाल उठना ही नहीं चाहिए.
संजय सिंह, मुख्य प्रवक्ता, जेडीयू
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क्या RJD-BJP में हो सकती है दोस्ती?

वहीं दूसरी ओर आरजेडी के जनरल सेक्रेटरी और प्रवक्ता चितरंजन गगन ने क्विंट से बात करते हुए कहा कि राजनीति में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती हैं. कौन कब किसके साथ होगा ये कौन जनता है? हालांकि, उन्होंने आरजेडी-बीजेपी के साथ आने की खबरों पर फुल स्टॉप लगाने की कोशिश करते हुए कहा कि-

“हम जब भी किसी से मिलेंगे वो एक सोच वाले लोग होंगे. बीजेपी उस लिस्ट में बिलकुल भी नहीं है. हमारी विचारधारा अलग है और हमारी लड़ाई तो हमेशा से बीजेपी से रही है.”

महागठबंधन में दरार

बता दें, लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में बने महागठबंधन में भी दरार नजर आने लगी है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने 2020 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है. वहीं बिहार कांग्रेस के नेता भी कई बार आरजेडी को लेकर अलग-अलग बयान देते रहे हैं. फिलहाल आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा और आरजेडी ही एक दूसरे के साथ दिख रहे हैं.

क्या होगा लालू परिवार की 'छिपी' लड़ाई का अंजाम?

भले ही लालू के जेल जाने से लेकर अबतक तेजस्वी ने पार्टी को संभाला हो, लेकिन चुनाव में हार, परिवार में दरार और पार्टी वर्कर का टूटता यकीन ‘लालू एंड फैमिली’ के लिए आने वाले दिनों में अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं.

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