यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन के बाद कांग्रेस के भविष्य को लेकर पॉलिटिकल एनालिस्ट नए-नए आकलन करने में जुटे हैं. कहा जा रहा है कि यूपी के दो लड़के, यानी राहुल-अखिलेश का साथ छूट गया है, जिसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है.
लेकिन साल 2009 के लोकसभा चुनाव में जिस तरीके से कांग्रेस उभरकर आई थी, स्थिति कुछ ऐसी ही दिख रही है. 2009 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के लिए समाजवादी पार्टी कांग्रेस को 13 सीटों से ज्यादा नहीं देना चाहती थी. कांग्रेस ने अकेले लड़ने का फैसला किया और सूबे में 18.2 फीसदी वोट शेयर के साथ 21 सीटें हासिल की थीं.
दरअसल, उस वक्त कांग्रेस को मनमोहन सरकार की गुडविल का फायदा मिला था. राज्य में किसी पार्टी की हवा नहीं थी. चूंकि कुछ बरस से यूपी में हर चुनाव में अलग-अलग पार्टियों को सत्ता पर बिठाने का चलन रहा है, इसका फायदा कांग्रेस को हुआ. उस चुनाव के बाद से अब तक विधानसभा-लोकसभा चुनाव में सरकारें बदली हैं. नए गठबंधन सामने आए हैं. ऐसे में कांग्रेस के पास फिर से एक बार 2009 को दोहराने की चुनौती है.
2009 में कांग्रेस के उभार की वजह?
साल 2009 में कांग्रेस को 21, बीजेपी को 10, एसपी को 23 और बीएसपी को 20 सीटें मिली थीं. कांग्रेस को अवध से सबसे ज्यादा 9 सीटें हासिल हुई थीं.
कांग्रेस के लिए सबसे कारगर चीज ये रही कि उसे किसी एक धर्म, जाति या ग्रुप ने पसंद नहीं किया था, बल्कि हर ग्रुप, जाति, धर्म और वर्ग के कुछ-कुछ लोगों ने पार्टी को वोट किया था.
CSDS के आंकड़े के मुताबिक, साल 2009 में कांग्रेस को 31% ब्राह्मण वोट हासिल हुए थे, जो 2007 के मुकाबले 12% ज्यादा था. मुस्लिम समुदाय की बात करें, तो कांग्रेस को 2007 के मुकाबले 11% ज्यादा वोट हासिल हुए थे.
कुल मिलाकर, कांग्रेस अपनी 'रेनबो सोशल बेस' बचाए रखने में कामयाब हुई थी. इसी का नतीजा रहा कि 2004 के मुकाबले कांग्रेस ने दोगुनी सीटें हासिल की थी और वोट शेयर में भी इजाफा हुआ था.
ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस की लोकप्रियता, बन सकता है तुरुप का इक्का
साल 2009 के लोकसभा चुनाव में यूपी की 60 रूरल सीटों में से कांग्रेस को 16 सीटें हासिल हुई थीं. वहीं बीजेपी को महज 4 से संतोष करना पड़ा था. बीएसपी को 15 और एसपी को 20 सीटें मिली थीं. राज्य की 17 सब-अर्बन सीटों में भी कांग्रेस 4 सीटों के साथ बीजेपी की बराबरी पर खड़ी थी.
हाल ही में हुए तीन हिंदीभाषी राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने रूरल वोट पर अपनी पकड़ बनाए रखी. ऐसे में कांग्रेस अगर वो लोकप्रियता दोबारा हासिल करती है, तो बीएसपी-एसपी आगामी लोकसभा चुनाव में ठगा हुआ महसूस कर सकती है.
हर आर्थिक वर्ग के वोटरों में कांग्रेस के वोटर
ऐसा माना जाता रहा है कि ज्यादा आमदनी वाले वोटर बीजेपी के समर्थक होते हैं. वहीं कम आमदनी वाले वोटर बीएसपी-एसपी के साथ रहते हैं. लेकिन सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि साल 2009 में हर इकनॉमी क्लास में कांग्रेस के वोटर रहे.
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