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हरियाणा में हुड्डा परिवार के जरिए वापसी की तैयारी में कांग्रेस

हुड्डा के लिए कांग्रेस के भीतर और हरियाणा में मुख्य विरोधी दल के रूप में मजबूती के साथ उभरने का अच्छा मौका है

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भारत
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रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थन में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने 7 मई को रोड शो किया. साफ है कि हरियाणा की ये सीट उन संसदीय सीटों में शुमार है, जहां कांग्रेस को जीत की उम्मीद है. रोड शो कांग्रेस नेतृत्व के उस भरोसे का भी प्रतीक है, जिस भरोसे पर राज्य में हुड्डा परिवार पर दांव लगाया जा सकता है.

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इस बार चुनाव में हुड्डा परिवार के तीन सदस्य अपनी किस्मत आजमा रहे हैं- सोनीपत से हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा, रोहतक से दीपेंद्र सिंह हुड्डा और राजस्थान के नागौर से ज्योति मिर्धा. मिर्धा की बहन दीपेंद्र हुड्डा की पत्नी हैं.

हुड्डा और मिर्धा परिवार कोई सामान्य राजनीतिक परिवार नहीं. इन परिवारों की कहानी पिछली सदी में जाटों की राजनीतिक एकता से जुड़ी हुई है. भूपिंदर हुड्डा के पिता रणबीर सिंह हुड्डा एक स्वतंत्रता सेनानी थे और महात्मा गांधी के आंदोलनों में कई बार जेल गए. 1947 में वो भारतीय संविधान सभा के सदस्य बने और 1952 में भारत के पहले लोकसभा चुनाव में रोहतक से सांसद चुने गए. अब इसी सीट से उनके पोते चौथी बार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

दूसरी ओर, ज्योति मिर्धा, नाथूराम मिर्धा की पोती हैं, जिनका राजनीतिक सफर मशहूर जाट नेता सर छोटू राम की अगुवाई में शुरु हुआ था. बाद में वो राजस्थान के मंत्री तक बने.

हरियाणा और राजस्थान में जाट समुदाय को अपनी ओर खींचने के लिए कांग्रेस काफी हद तक हुड्डा-मिर्धा परिवार के जोर पर निर्भर कर रही है. इसे हुड्डा परिवार की मुख्य धारा में वापसी भी कह सकते हैं.

साल 2014 में लोकसभा चुनाव के कुछ ही महीने बाद कांग्रेस को हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारी मुंह की खानी पड़ी थी. राज्य में कांग्रेस का राज करीब एक दशक तक था. इस चुनाव में वो बीजेपी और इंडियन नेशनल लोक दल के बाद तीसरे नंबर पर पहुंच गई. कह सकते हैं कि भूपिंदर सिंह हुड्डा को इसकी सजा मिली और राज्य में कांग्रेस की अगुवाई उनके दो प्रतिद्वंदियों के हाथों सौंप दी गई. कांग्रेस विधायक दल का नेता तोशराम के विधायक किरण चौधरी को और हरियाणा प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष अशोक तंवर को बनाया गया.

अफवाह थी कि हुड्डा परिवार बीजेपी में शामिल हो सकता है, लेकिन उन्होंने पार्टी का साथ नहीं छोड़ा और जाट समुदाय में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश करते रहे.

उस वक्त पार्टी नेतृत्व ने सोचा था कि हुड्डा परिवार की अगुवाई में हरियाणा कांग्रेस जाट बहुल बन गई है, और वो भी जेसवाली इलाके के जाट. इस इलाके में रोहतक, सोनीपत और झज्जर आते हैं, जहां हुड्डा परिवार की पैठ है.

इसमें कुछ सच्चाई भी थी. 2014 विधान सभा चुनावों में कांग्रेस ने 15 में से 11 सीटें इन्हीं जिलों में जीती थीं.

हरियाणा में कांग्रेस की जिलावार जीत (2014)

(2014 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 15 सीटों पर जीत मिली थी, जिनमें 11 सीट रोहतक, झज्जर और सोनीपत में पड़ते हैं. ये इलाके हुड्डा परिवार के गढ़ हैं.)

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पलवल जिले में पार्टी को दो सीट मिली, जबकि भिवानी और कैथल में एक-एक सीट – तोशम से किरण चौधरी और कैथल से रणदीप सिंह सुरजेवाला के रूप में हासिल हुई.

वोट शेयर के हिसाब से भी रोहतक को छोड़कर बाकी इलाकों में कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ. 2014 लोकसभा चुनाव में रोहतक हरियाणा की इकलौती सीट थी, जहां कांग्रेस को जीत मिली थी. दीपेंद्र सिंह हुड्डा चोट लगने के कारण ज्यादातर समय चुनाव प्रचार से दूर रहे, फिर भी उन्हें एक लाख सत्तर हजार वोटों से जीत मिली.

हरियाणा में हर लोकसभा सीट में करीब 9 विधान सभा क्षेत्र पड़ते हैं. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को रोहतक लोकसभा क्षेत्र में करीब 33.5 फीसदी वोट मिले.

जिन दूसरे लोकसभा सीटों पर कांग्रेस की साख थोड़ी बची रही, वो थीं सोनीपत, जहां पार्टी का वोट शेयर 29.2 फीसदी था और फरीदाबाद, जहां वोट शेयर 25.2 फीसदी था.

हरियाणा: कांग्रेस वोट शेयर

(2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ रोहतक और सोनीपत क्षेत्रों में अच्छे वोट शेयर मिले, जो हुड्डा परिवार का गढ़ माने जाते हैं.)

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हालांकि देसवाली इलाके में कांग्रेस का असर, जिसे 2014 में सिरदर्दी समझा गया था, अब पार्टी के लिए फायदे का सौदा बनता दिख रहा है.

बीजेपी को पीछे धकेलने के लिए हुड्डा के गढ़ रोहतक और सोनीपत में कांग्रेस की बढ़त अहम मानी जा रही है. दोनों क्षेत्र जाट आंदोलन का केन्द्र थे और यहां बीजेपी के प्रति इस समुदाय में आक्रोश सबसे ज्यादा था.

बताया जा रहा है कि हुड्डाओं की चुनौती से निपटने के लिए बीजेपी गैर-जाट वोटरों को लामबंद कर रही है. उन्हें 2016 में जाट आंदोलन के दौरान हिंसा की याद दिलाई जा रही है. पार्टी की योजना ‘35 समुदायों’ को अपनी छतरी के नीचे लाने की है. हरियाणा को ‘छत्तीस बिरादरी’, यानी 36 समुदायों की भूमि कहा जाता है. जाट आंदोलन के समय 35 बिरादरी मोर्चा का गठन हुआ था, जिसकी कोशिश जाटों के अलावा बाकी सभी समुदायों को एकजुट करने की थी. इस नैरेटिव को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी भारी समर्थन दिया, जो 1990 के दशक में भजन लाल के बाद पहले गैर-जाट मुख्यमंत्री हैं.

रोहतक में दीपेंद्र सिंह हुड्डा का सामना बीजेपी के अरविंद शर्मा से है, जो एक प्रमुख ब्राह्मण नेता हैं. चुनावी दौड़ में जननायक जनता पार्टी के प्रदीप देशवाल और इंडियन नेशनल लोक दल के धरमवीर फौजी भी शामिल हैं. दोनों जाट समुदाय से हैं और हुड्डा के वोट खा सकते हैं.

दूसरी ओर, बहुजन समाज पार्टी-लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी ने किशन लाल पांचाल को अपना उम्मीदवार बनाया है, जो ओबीसी विश्वकर्मा समुदाय से हैं.

जाट हुड्डा के समर्थन में हैं, तो गैर-जाट वोट बीजेपी के शर्मा के समर्थन में. हुड्डा को एक बार फिर संसद पहुंचने के लिए 20 फीसदी दलित वोटों की भी जरूरत पड़ सकती है.

सीनियर हुड्डा की चुनौती ज्यादा गंभीर है. यहां भी उनके मुख्य प्रतिद्वंदी बीजेपी के वर्तमान सांसद रमेश चंदर कौशिक हैं, जो ब्राह्मण समुदाय से हैं. इसके अलावा उन्हें JJP नेता दिग्विजय चौटाला से भी खतरा है, जो 34 फीसदी जाट बहुल वाली इस सीट पर उन्हें सीधी टक्कर दे रहे हैं.

इस साल के शुरु में जींद विधानसभा उपचुनाव में चौटाला दूसरे नंबर पर थे. विधानसभा का ये क्षेत्र सोनीपत लोकसभा सीट में पड़ता है.

हुड्डा सोनीपत के दामाद के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं, क्योंकि उनकी पत्नी इसी जिले की रहने वाली हैं. उनकी उम्मीदें दहिया जाट वोटों पर टिकी हैं, जो उनकी पत्नी का गोत्र है और जिनकी इस इलाके में भारी तादाद है.

लोकसभा चुनाव हरियाणा के सभी प्रमुख नेताओं के लिए सेमी-फाइनल के समान है. JJP के गठन के साथ INLD दो भागों में बंट गया है. लिहाजा कांग्रेस को उम्मीद है कि जाट वोट उसके बैनर तले जमा होंगे. यही वजह है कि पार्टी ने रोहतक और सोनीपत से हुड्डा परिवार के दोनों सदस्यों को टिकट दिया है.

उधर, JJP और INLD की कोशिश अपनी मौजूदगी दिखलाने और हुड्डा के बैनर तले जाट वोट जमा होने से रोकने की होगी.

मनोहर लाल खट्टर के लिए लोकसभा चुनाव 35 गैर-जाट बिरादरी के वोटों को बीजेपी की ओर खींचने का एक और मौका होगा. मजबूत जाट नेता के रूप में हुड्डाओं का फिर से उदय खट्टर के लिए खतरा है. खट्टर के लिए दूसरा खतरा बीजेपी के पूर्व नेता राजकुमार सैनी हैं, जिनकी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी बीएसपी के साथ गठजोड़ बनाकर चुनाव लड़ रही है.

सैनी या माली समुदाय ने जाट आंदोलन के दौरान हिंसा का स्वाद चखा है, लिहाजा वो गैर-जाट राजनीति की जोरदार पैरोकारी कर रहे हैं, जो खट्टर की योजनाओं को खटाई में मिला सकता है.

लोकसभा चुनाव में हरियाणा की दस सीटों पर जाति मुख्य नैरेटिव बनकर उभर रही है. ऐसी स्थिति में हुड्डाओं के लिए कांग्रेस के भीतर और हरियाणा में मुख्य विरोधी दल के रूप में मजबूती के साथ उभरने का अच्छा मौका है.

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