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यूपी में ‘लव जिहाद कानून’, क्या इसका लीगल आधार है?

‘लव जिहाद’ की बहस को अब कानूनी रूप कैसे दिया जा रहा है, इस अध्यादेश से ये बात समझ सकते हैं

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भारत
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देशभर में 'लव जिहाद' की बहस के बीच उत्तर प्रदेश की कैबिनेट ने जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन कराए जाने को लेकर एक अध्यादेश को मंजूरी दी है. 'लव जिहाद' की बहस को अब कानूनी रूप कैसे दिया जा रहा है, इस अध्यादेश से ये बात समझ सकते हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से आए फैसले के बाद थोड़ा बदलाव करते हुए राज्य सरकार ने एक धर्म से दूसरे धर्म में शादी पर नया कानून पास किया है. अब दूसरे धर्म में शादी से दो माह पहले नोटिस देना अनिवार्य हो गया है. इसके साथ ही डीएम की अनुमति भी जरूरी हो गई है. नाम छिपाकर शादी करने पर 10 साल तक की सजा हो सकती है

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क्या 'लव जिहाद कानून' का लीगल आधार है?

भारतीय दंड संहिता (IPC) में पहले से ही कई सारे कानून मौजूद हैं जिनके जरिए मौजूदा समस्या से निपटा जा सकता है. अगर किसी की मर्जी के खिलाफ उससे कोई काम करने के लिए मजबूर किया जाता है तो, आपराधिक धमकी (criminal intimidation) का मामला बनता है और इसके लिए कानून मौजूद है. इसके लिए पहले से ही 7 साल की सजा का प्रावधान है. अगर आप किसी लड़की से शादी करने के लिए उसे अगवा करते हो तो उसमें भी अपहरण का केस दर्ज होता है, उसके लिए भी कानून मौजूद है.

तो लव जिहाद की कथित थ्योरी में जो भी अपराध अगर किए जा रहे हैं तो उन्हें रोकने के लिए पहले से ही कानून मौजूद हैं. मध्य प्रदेश का ही उदाहरण ले लें तो वहां पर पहले से ही जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने को लेकर कानून मौजूद है. लेकिन फिर भी मध्य प्रदेश कथित रूप से लव जिहाद की समस्या पर कानून लेकर आया.

लव जिहाद की कोई कानूनी परिभाषा मुश्किल

लव जिहाद की जो थ्योरी दी जा रही है कि मुस्लिम युवक हिंदू लड़कियों को झासा देकर शादी करने का वादा करते हैं और हिंदू लड़की का इस्लाम में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करा देते हैं. लेकिन इस थ्योरी की कोई परिभाषा तय नहीं हो सकी है, इसलिए धर्मांतरण को लेकर चर्चा तेज हो गई है.
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बालिग अगर मर्जी से शादी करे तो कोर्ट की भूमिका नहीं

इसमें सबसे विवादित ये है कि अगर कोई सिर्फ शादी के लिए अपना धर्म बदल रहा है तो ये गैरकानूनी है. कानून के मुताबिक डीएम से दो महीने पहले इजाजत लेनी होगी और वो तय करेंगे कि ये धर्मांतरण सही है या नहीं है. लेकिन अगर शादी करने वालों की उम्र 18 साल से ज्यादा हैं तो यहां पर कोर्ट की कोई रोल होना ही नहीं चाहिए.

इलाहाबाद HC के सितंबर वाले आदेश को आधार बनाना क्यों गलत?

योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था अगर सिर्फ शादी के लिए धर्म बदला जा रहा है तो ये गैरकानूनी है. लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने सितंबर में ये आदेश दिया था लेकिन उन्होंने कहा था कि हम हिंदू-मुस्लिम जोड़े को संरक्षण नहीं देंगे क्यों कि इस मामले में धर्म गलत तरीके से बदला गया.

लेकिन कानूनी रूप से ये गलत था. ये सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले के आधार पर दिया गया आदेश था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में कहा था कि हिंदू व्यक्ति दूसरी शादी करने के लिए गलत नीयत से इस्लाम में शामिल होना चाहता था, तो इस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने उस संदर्भ में अपना आदेश सुनाया था.

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इलाहाबाद HC ने सुप्रीम कोर्ट को ओवररूल किया

लेकिन अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने 11 नवंबर के अपने फैसले में इस पुराने फैसले को ओवररूल कर दिया. कोर्ट ने माना है कि हमारे निजता के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को ज्यादा प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

बिना मर्जी शादी को लेकर कड़े कानून मौजूद

इंटरफेथ मैरिज के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट कानून है, लेकिन उसी कानून में कई दिक्कतें हैं. इसमें 30 दिन का नोटिस देना होता. हिंदू-मुस्लिम जोड़े को काफी प्रताड़ित किया जाता है. इसलिए अगर एक दिन में शादी करनी होती तो एक व्यक्ति धर्म बदल लेता है और आराम से शादी हो जाती. लेकिन इस केस में अगर कोई जबरदस्ती करता है तो उसके लिए अलग से कानून मौजूद हैं.

कुल मिलाकर इस मुद्दे से सांप्रदायिक मुद्दे को और हवा दी जा रही है. धर्म के आधार पर नफरत फैलान का काम किया जा रहा है. इस तरह के कानून लोगों को बांटने के लिए बनाए जाते हैं.

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