एक फेसबुक पोस्ट के बाद गिरफ्तार हुए सामाजिक कार्यकर्ता एरेंड्रो लीचोम्बम पिछले एक महीने से ज्यादा वक्त से जेल में कैद हैं. फेसबुक पोस्ट के मामले में जमानत मिलने के बाद उन्हें नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था. अब उनकी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (habeas corpus petition) दायर की गई है. याचिका एरेंड्रो लीचोम्बम के पिता की तरफ से दायर की गई है.
13 मई को हुई थी गिरफ्तार
लीचोम्बम और पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम को पिछले महीने गिरफ्तार किया गया था. लीचोम्बम ने एक फेसबुक पोस्ट में बीजेपी के नेता के निधन के बाद लिखा था कि, 'गोबर और गोमूत्र से कोरोना का इलाज नहीं होता है. विज्ञान से ही इलाज संभव है और यह कॉमन सेंस की बात है. प्रोफेसर जी RIP.'
इस पोस्ट के बाद बीजेपी के नेताओं की शिकायत पर उन्हें और एक पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम को गिरफ्तार कर लिया गया था.एरेंड्रो की तरफ से कहा गया कि ये पोस्ट ऐसे तर्कों की आलोचना करना था जो गोमूत्र और गोबर से कोरोना के इलाज का दावा करते हैं. इस मामले में मणिपुर बीजेपी के उपाध्यक्ष उषाम देबान और महासचिव पी प्रेमानंदा मिताई की शिकायत पर पुलिस ने दोनों को 13 मई की रात को गिरफ्तार कर लिया.
बाद में जमानत मिली तो NSA के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के आदेश में कहा गया कि ये दोनों ही सुरक्षा और लोक व्यवस्था के लिहाज से अपनी गतिविधियों से फिर से नुकसान पहुंचा सकते हैं.
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में एरेंड्रो लीचोम्बम के पिता ने कहा है कि उनके बेटे का फेसबुक पोस्ट किसी भी तरह से कानून और व्यवस्था को प्रभावित करने में असमर्थ है. उनका कहना है कि जमानत मिलने के बाद भी जेल में रखने के लिए NSA एक्ट लगाया गया है और एरेंड्रो पहले ही 45 दिन कस्टडी में बिता चुके हैं.
याचिकाकर्ता का तर्क है कि ये कानून के गलत तरह से इस्तेमाल का उदाहरण है, जहां प्रिवेंटिव डिटेंशन का इस्तेमाल राजनीतिक आवाजों को दबाने के लिए किया गया और ऐसी आवाजों को दबाने के लिए जो सत्ताधारी दल को पसंद नहीं है बजाए कि किसी वैध उद्देश्य के लिए. याचिकाकर्ता के मुताबिक, ये कोई ऐसा केस नहीं था जिसमें एनएसए लगाए जाने की अनुमति दी जा सकती थी. उन्होंने आदेश को दुर्भावनापूर्ण बताया है और रद्द करने की अपील की है.
'सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन'
याचिकाक्रात रघुमणि ने आगे कहा है कि इस तरह की नजरबंदी सिर्फ गलत ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश का उल्लंघन है जिसमें सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि सोशल मीडिया पर जानकारी या सोशल मीडिया पर मदद देने वाले व्यक्तियों के उत्पीड़न पर कोई रोक नहीं लगाई जाएगी. इस संदर्भ में याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया है कि एरेंड्रो का फेसबुक पोस्ट कोविड-19 के बारे में दी जा रही गलत सूचना का खंडन करना था.
ऐसे में याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका भी दायर की है. दोनों ही याचिकाएं 30 जून के लिए सुप्रीम कोर्ट में लिस्ट हैं. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सीजेआई रमाना, जस्टिस बोपन्ना, जस्टिस रॉय की बेंच के पास लिस्ट है वहीं अवमानना याचिका जस्टिस चंद्रचूड़, नागेश्वर राव और रविंद्र बट की बेंच के पास लिस्ट है.
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