नब कुमार सरकार , जतिन चटर्जी , ओंकारनाथ.... ये सब नाम एक ही शख्स स्वामी असीमानंद के हैं जिन्हें समझौता ब्लास्ट केस में बरी कर दिया गया. नाम भले ही कई हो लेकिन उनकी निष्ठा सिर्फ भगवा के लिए है. पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के कमारपुकर गांव में जन्मे नब कुमार सरकार साल 2010 में तब सुर्खियों में आए जब सीबीआई ने उन्हें हैदराबाद की मक्का मस्जिद विस्फोट में कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया था.
असीमानंद के नाम से जाने जाते हैं जतिन चटर्जी
जतिन चटर्जी, स्वामी असीमानंद के नाम से जाने जाते हैं. मक्का मस्जिद में 8 मई 2007 को शुक्रवार की नमाज के दौरान एक बम विस्फोट में 9 लोग मारे गए और 58 लोग जख्मी हुए थे. 66 साल के स्वयंभू संन्यासी इसके बाद दो दूसरी आतंकवादी घटनाओं में आरोपी के तौर पर नामजद हुए. 11 अक्टूबर 2007 को अजमेर के ख्वाजा चिश्ती की दरगाज में हुए विस्फोट मामले में NIA की स्पेशल कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था. अब असीमानंद को समझौता ब्लास्ट केस में भी बरी कर दिया गया है.
साइंस ग्रेजुएट हैं असीमानंद
साधारण परिवार से आने वाले असीमानंद ने साइंस में साल 1971 में ग्रेजुएशन पूरा किया था. लेकिन वो स्कूल के दिनों से ही दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े रहे और राज्य के पुरुलिया और बांकुड़ा जिलों में वनवासी कल्याण आश्रम के लिए काम करते रहे. जांच करने वालों ने बताया कि आश्रम में ही नब कुमार सरकार , स्वामी असीमानंद के नाम से बुलाए जाने लगे. तेज - तर्रार वक्ता जल्द ही अल्पसंख्यक विरोधी भाषणों और ईसाई मिशनिरयों के खिलाफ अभियान के लिए जाने जाने लगे और देश में अलग - अलग स्थानों पर उन्हें बोलने के लिए बुलाए जाने लगा.
90 के दशक में शबरी धाम की स्थापना
1990 के दशक के अंत तक वो गुजरात के डांग जिले में रहने लगे जहां उन्होंने आदिवासी कल्याण संगठन की शुरुआत की जिसका नाम शबरी धाम है. साल 2010 में जज के सामने दर्ज कराए गए बयान के मुताबिक असीमानंद ने कहा कि वो अल्पसंख्यक विरोधी भाषणों के लिए मशहूर थे. साल 2002 में गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर में आतंकवादी हमले में 30 श्रद्धालुओं के मारे जाने के बाद चीजें बदल गईं और वो इन मौत का बदला लेना चाहते थे. बाद में वो अपने बयान से मुकर गए और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने उनके खिलाफ बयान से मुकरने के आरोप नहीं लगाए.
(इनपुट: एजेंसी)
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