तारीख- 3 अप्रैल 2021, वक्त- दिन का करीब 12 बज रहा था. जगह- जिला बीजापुर के टार्रेम कैंप से लगभग 12 किमी दूर टेकलागुडम और जोनागुडम के बीच का जंगल. खबर थी कि नक्सलियों का PLGA बटालियन नंबर-1 जो कि ताकतवर गुरिल्ला फोर्स है उसका सरगना और 25 लाख का इनामी नक्सली कमांडर हिडमा इन इलाकों में कैंप कर रहा है.
जिसके आधार पर DRG, एसटीएफ, कोबरा और सीआरपीएफ की संयुक्त नक्सल विरोधी अभियान टीम को ऑपरेशन के लिए रवाना किया गया था. लेकिन सर्च टीम कुछ समझ पाती तब तक नक्सलियों ने तीन घेरकर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. इस हमले में अब तक 22 जवान शहीद हो चुके हैं और 30 जवान घायल हुए हैं. कुछ जवान अब भी लापता हैं.
जवानों के लिए घात में बैठे नक्सलियों ने दो गांवों को खाली करा रखा था
इंडियन एक्सप्रेस ने बीजापुर के जिला अस्पताल में भर्ती एक जवान से बात की. जवान ने बताया, “जब हम उस जगह पहुंचे जहां कि हमें खबर दी गई थी, तब वहां कोई नहीं था, तब हम वापस आ रहे थे, इसी दौरान हम पर हमला किया गया. हमें असल में पता नहीं चला जब नक्सलियों ने हमें हर तरफ से घेर लिया. उनके पास अत्याधुनिक हथियार थे और वे उनका भरपूर उपयोग कर रहे थे.”
रास्ते में सुरक्षाकर्मी ने जिन दो गांवों टेकलागुडम और झिरागांव को पार किया था पूरी तरह से खाली थे. दूसरे घायल जवान ने बताया, "दोनों गांव एकदम खाली थे और कुछ गड़बड़ है इस बात का अंदाजा हमें बहुत देर से हुआ."
नक्सलियों की टोह में निकले थे जवान फिर खुद उनका निशाना कैसे बने?
छत्तीसगढ़ पुलिस के मुताबिक नक्सलियों के घातक बटालियन 1 के कमांडर हिडमा की मौजूदगी की खुफिया जानकारी के आधार पर ऑपरेशन शुरू किया गया था. COBRA के सूत्रों ने भी पुष्टि की थी कि हिडमा की बटालियन के संकेत थे.
इसी आधार पर 3 अप्रैल DRG, एसटीएफ, कोबरा और सीआरपीएफ की संयुक्त नक्सल विरोधी अभियान टीम को ऑपरेशन के लिए रवाना किया गया था.
छत्तीसगढ़ सुरक्षा सेटअप के सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि मुठभेड़ ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनमें लंबे समय से चली आ रही रणनीति भी शामिल है.
“इन दिनों सूचनाओं के प्राथमिक स्रोतों में से एक दंतेवाड़ा की पहाड़ी पर रखी एक रिसीवर. यह कोई नई बात नहीं है, और पहले भी ऐसा हो चुका है. एक साल पहले मिनपा में, और अब यहां, स्पष्ट संकेत हैं कि माओवादी जानते हैं कि हम उनके कोड को सुन रहे हैं. हम शिकार बन गए. जिस तरह के हमले हुए हैं वह दिखाते हैं कि यह सुनियोजित था. उन्हें पता था कि हम मौके पर कुछ नहीं पाएंगे, और वापस लौट आएंगे. जो हमारी टीम ने किया, तो वे इंतजार कर रहे थे, हमारे जवानों के लिए बहुत कम बच निकलने का रास्ता था.”
बता दें कि यह एक बड़ा ऑपरेशन था, जिसमें अकेले बीजापुर के एक हजार कर्मियों के साथ छत्तीसगढ़ पुलिस की एसटीएफ, डीआरजी और जिला बल, सीआरपीएफ और इसकी कोबरा यूनिट भी शामिल थी.
बीजापुर की आठ टीमों में से छह को तरेम कैंप से लॉन्च किया गया, जबकि अन्य दो उस्सुर और पामेड से थे. लेकिन छत्तीसगढ़ के इन इलाकों में सुरक्षाबल लंबे समय तक एक ही रणनीति के साथ कामयाबी नहीं हासिल कर सकते. यहीं पर शायद इस बार चूक हो गई.
जंगलों में रिसिवर, टेक्नोलॉजी और सरेंडर कराने की नीति कई बार काम नहीं आती है, क्योंकि नक्सल लगातार अपने तरीके बदलते रहते हैं. साथ ही सरकारी मशीनरी एक तय ढर्रे पर काम करती है, जबकि नक्सली अपने मंसूबों के मुताबिक पैंतरा बदलते रहते हैं. शायद इस बार भी वहीं हुआ, इतनी बड़ी तादाद में सुरक्षाबलों के होने के बावजूद नक्सलियों ने उन्हें घेर लिया.
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