लोकसभा चुनाव में भारी सफलता के बाद बीजेपी नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पास अगले साल के अंत तक राज्य में बहुमत हो जाएगा और उसके बाद मोदी सरकार के लिए अपने विधायी एजेंडे को आगे बढ़ाने में आसानी हो जाएगी.
फिलहाल एनडीए के पास राज्यसभा में 102 सदस्य हैं, जबकि कांग्रेस नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के पास 66 और दोनों गठबंधनों से बाहर की पार्टियों के पास 66 सदस्य हैं. एनडीए के खेमे में अगले साल नवंबर तक लगभग 18 सीटें और जुड़ जाएंगी. एनडीए को कुछ नामित, निर्दलीय सदस्यों का भी समर्थन मिल सकता है. राज्यसभा में आधी संख्या 123 है, और ऊपरी सदन के सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभा के सदस्य करते हैं.
- अगले साल नवंबर में उत्तर प्रदेश में खाली होने वाली राज्यसभा की 10 में से अधिकांश सीटें बीजेपी जीतेगी. इनमें से 9 सीटें विपक्षी दलों के पास हैं. इनमें से 6 समाजवादी पार्टी के पास, दो बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और एक कांग्रेस के पास है.
- उत्तर प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के 309 सदस्य हैं. एसपी के 48, बीएसपी के 19 और कांग्रेस के सात सदस्य हैं.
- अगले साल तक बीजेपी को असम, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश में सीटें मिलेंगी.
- बीजेपी राजस्थान, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सीटें गंवाएगी.
- महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव के परिणामों का भी एनडीए की सीट संख्या पर असर होगा.
- हालांकि असम की दो सीटों के चुनाव की घोषणा हो चुकी है, जबकि तीन अन्य सीटें राज्य में अगले साल तक खाली हो जाएंगी. बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के पास राज्य विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत है.
ऊपरी सदन की लगभग एक-तिहाई सीटें इस साल जून और अगले साल नवंबर में खाली हो जाएंगी.
दो सीटें अगले महीने असम में खाली हो जाएंगी और छह सीटें इस साल जुलाई में तमिलनाडु में खाली हो जाएंगी. उसके बाद अगले साल अप्रैल में 55 सीटें खाली होंगी, पांच जून में, एक जुलाई में और 11 नवंबर में खाली होंगी.
बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार का प्रयास अपने विधायी एजेंडे को आगे बढ़ाने का होगा, जो पिछले पांच सालों के दौरान विपक्ष के विरोध के कारण आगे नहीं बढ़ पा रही थीं. सरकार तीन तलाक विधेयक को पास नहीं करा सकी, जबकि यह विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है. नागरिकता संशोधन विधेयक भी पास नहीं हो पाया है.
बीजू जनता दल और तेलंगाना राष्ट्र समिति दोनों ने हालांकि बीजेपी और कांग्रेस से समान रूप से दूरी बना रखी है, लेकिन दोनों दलों ने पिछले साल राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए हरिवंश का समर्थन किया था.
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