एक ओर जहां देश के कई इलाकों में बाढ़ की स्थिति बनी हुई है, वहीं गुजरात के कुछ हिस्सों में सूखे के हालत बन गए हैं. सिंचाई का पानी रोक दिया गया है. और पेयजल की भी दिक्कत हो गई है.
न ऊपर से पानी, न नीचे से पानी
गुजरात में बारिश की किल्लत तो है ही, साथ ही जलाशय भी खाली हैं. गुजरात में अभी तक 41 फीसदी कम बारिश हुई है. राज्य के सभी 33 जिलों में औसत से कम बारिश हुई है. 11 जिलों में तो 50 प्रतिशत से भी कम बारिश हुई है.
बांंधों में कितना पानी बचा
सुरेन्द्रनगर के 11 बांध - 17%
सीपू बांध - 0.80%
दांतीवाड़ा बांध- 8.62%
बीते वर्ष जामनगर जिले में अगस्त तक में 107 प्रतिशत बारिश हो चुकी थी, लेकिन इस बार बारिश मात्र 34 फीसदी ही हुई है. अहमदाबाद में अगले कुछ दिनों में तापमान 35 डिग्री पहुंचने की आशंका है. सूरत में भी सूखे के हालात हैं.
पेयजल भी रुका
जैसे जैसे बांध का पानी सूख रहा है, किसानों की आंखों के पानी आना शुरू हो गया है.
गुजरात के कुछ इलाकों में अभी तक सिर्फ सिंचाई का पानी ही बंद था, सीपू बांध के आसपास अब पेयजल आपूर्ति भी बंद कर दी गयी है.
मुख्यमंत्री ने जल संसाधन विभाग को 30 सितंबर तक के लिए जलाशयों में पीने का पानी रोकने के बाद बचे पानी को फसलों के लिए छोड़ने का निर्देश दिया है.
कुछ गांवों में आजादी के बाद अब तक पानी की घोर किल्लत है
भारत-पाकिस्तान से सटे गुजरात के कच्छ का खावड़ा इलाका, जहां के लगभग 15 गांवों के लोग आज भी पानी को तरस रहे हैं. हालांकि सरकार के दावों के अनुसार पानी की पर्याप्त व्यवस्था है, लेकिन वास्तविकता में दावे खोखले ही हैं.
पानी के लिए तड़पते लोगों का कहना है कि भुज के विधायक ने पानी की व्यवस्था कराने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया है. सुबह से शाम तक कड़कती धूप में पानी के लिए जद्दोजहद करते लोग अब पलायन को मजबूर हैं. बून्द बून्द पानी को तरसते लोग शिक्षा और अन्य विकास के बारे में क्या ही सोचेंगे!
किसानों का कहना है कि एक तो डीजल 100 रुपये पार हो गया है, हमने जैसे तैसे जुताई करके मंहगे खाद और बीज डालकर बुवाई तो कर दी थी, लेकिन अब बारिश की घोर किल्लत से सब सूख रहा है. सीमावर्ती क्षेत्रों के आय का प्रमुख स्रोत पशुपालन है लेकिन जहां इंसानों के लिए पानी नहीं है वहां पशुओं के लिए पानी कहां से आएगा? पानी की कमी से मवेशी मर रहे हैं.
पानी नहीं वादा मिला
सीमावर्ती इलाकों के गांवों में 30 फीसदी से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं. अधिकारियों ने पानी की जगह सिर्फ वादे और दावे किए हैं कि टैंकर की सुविधा देंगे, टैंकर से पानी पहुंचाएंगे, नर्मदा से पानी लाएंगे. लेकिन, अब तक सारे वादे 'ढाक के तीन पात' ही रहे हैं.
समस्या का आलम यह है कि पानी लाने के लिए 10 किमी तक का चक्कर लगाना पड़ता है. लोग निजी ट्यूबवेल वालों को पैसा सब लोग इकट्ठा करके देते हैं तो कहीं एकाध टैंकर पानी मिल पाता है. लेकिन निजी टैंकरों से आया पानी तपते तवे पर कुछ बूंद जैसा ही होता है.
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