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अयोध्या विवाद पर ऐतिहासिक दिन: सुबह 10.30 बजे फैसला सुनाएगा SC

अयोध्या केस पर बहुत बड़ी खबर, कल आएगा फैसला

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भारत
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अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट शनिवार को अपना फैसला सुनाएगा. ये फैसला सुबह 10.30 बजे के आसपास आ सकता है. पांच जजों की बेंच इस पर फैसला करने वाली है. बेंच में CJI रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.

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देश भर में सुरक्षा को लेकर अलर्ट

अयोध्या मामले के संभावित फैसले के मद्देनजर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को सतर्क रहने की हिदायत दी है. सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सलाह दी गई है कि सभी संवेदनशील स्थानों पर पर्याप्त सुरक्षाकर्मी तैनात करें.

उत्तर प्रदेश में अर्धसैनिक बलों की 40 कंपनियों (प्रत्येक में लगभग 100 कर्मी) को भी उतारा  गया है. यूपी सरकार को आतंकी हमले  के खतरे के प्रति भी आगाह किया गया है. वहीं सोशल साइट्स पर कोई अफवाह न फैले, इसलिए इन पर भी नजर रखने का आदेश है.

किस बात का फैसला होना है?

इस मामले के 3 मुख्य याचिकाकर्ताओं में से दो- निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान हिंदू पक्ष से हैं. ये दोनों ही विवादित जमीन पर अपना मालिकाना हक जता रहे हैं. जहां निर्मोही अखाड़ा की दलील है कि लंबे समय से भगवान राम की सेवा करने की वजह से उसे जमीन मिलनी चाहिए, वहीं रामलला विराजमान का कहना है कि इस जमीन के मालिक सिर्फ देवता की ही हो सकती है.

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अयोध्या विवाद का इतिहास

विवाद शुरू होता है 1885 से. महंत रघुबीर दास राम चबूतरा पर एक मंदिर का निर्माण करना चाहते थे... कहा जाता है कि राम चबूतरा 1855 में बनाया गया था. राम चबूतरा को भगवान राम के जन्म स्थान के रूप में पूजा जाता था. लेकिन ब्रिटिश इंडिया की फैजाबाद जिला अदालत ने रघुबीर दास को मंदिर निर्माण की इजाजत नहीं दी .

  • 22-23 दिसंबर 1949 की रात: पुजारी अबिराम दास और स्थानीय साधुओं के समूह ने बाबरी मस्जिद के अंदर राम,सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को रख दिया. उन्होंने मस्जिद के इस केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियों की पूजा की. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उस समय यूनाइटेड प्रोविंस के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को इसके बारे में लिखा, लेकिन मस्जिद के अंदर से मूर्तियां नहीं हटाई गई.
  • 29 दिसंबर 1949 : फैजाबाद जिला अदालत ने इस जगह को विवादित स्थान घोषित कर दिया और इसे बंद कर दिया गया. आने वाले सालों में दो महत्वपूर्ण पक्षों ने जमीन पर अपना-अपना दावा पेश किया.
  • 1959 : निर्मोही अखाड़ा ने ये कहते हुए दावा पेश किया कि वो सदियों से इस जगह की देखरेख और भगवान राम की पूजा कर रहा है.
  • 1961 : सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी दावा ठोका. उन्होंने कहा कि ये जमीन उनकी है क्योंकि मुगलों से उन्हें वक्फ प्रॉपर्टी के रूप में मिली थी. मुकदमा जारी रहा...
  • 1986: फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट जज के आदेश पर विवादित स्थान का ताला तोड़ दिया गया. दो दिन बाद, मुस्लिम वकीलों के एक समूह ने ताला खोलने के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की. जवाब में, जज ने "यथास्थिति" बनाए रखने का आदेश दिया. लेकिन ताला खुलने की घटना ने बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया.
  • 1989: एक और पक्ष- रामलला विराजमान ने जमीन पर दावा पेश किया... और कहा कि बाबरी मस्जिद की यह जगह भगवान राम का जन्मस्थान है. रामलला के पक्षकारों ने कहा था कि पूरी 2.77 एकड़ जमीन भगवान राम की जन्मभूमि है और "प्राचीन काल" से पूजा का स्थान रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी मामलों की एक साथ सुनवाई करने का निर्णय किया. लेकिन राजनीतिक रूप से, राम जन्मभूमि आंदोलन तेज होता चला गया.
  • 1992: 6 दिसंबर 1992 की सुबह, 1.5 लाख कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को घेर लिया. दोपहर तक, कुछ कारसेवकों ने वहां मौजूद सुरक्षाघेरा को तोड़ दिया और केंद्रीय गुंबद पर चढ़ गए....फिर उसे तोड़ना शुरू कर दिया. उसी समय... महंत सत्येंद्र दास ने कुछ लोगों की मदद से 1949 से केंद्रीय गुंबद के नीचे रखी भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को इस चबूतरे पर शिफ्ट कर दिया.. मस्जिद ढहने के बाद, विश्व हिंदू परिषद के नेताओं ने राम जन्मभूमि न्यास का गठन किया.. जिसने विवादित जगह के आसपास 42 एकड़ जमीन को खरीदा.
  • 1993: केंद्र सरकार ने राम जन्मभूमि न्यास द्वारा ली गई 42 एकड़ सहित, विवादित जगह के आसपास 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया.
  • 2010: सालों की सुनवाई के बाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को फैसला सुनाया. फैसले में, विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बांट दिया गया. जजमेंट के मुताबिक तीनों केंद्रीय गुंबद वाली जगह रामलला को दिया गया. कोर्ट ने कहा कि रामलला  को इस जगह का अधिकार है क्योंकि आस्था है कि यह भगवान राम का जन्मस्थान है. निर्मोही अखाड़ा को राम चबूतरा, सीता रसोई और भंडारा की जगह दी गई. जमीन का एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया. कोर्ट ने आश्नवासन दिया कि 1993 में सरकार द्वारा अधिग्रहण की गई जमीन का एक हिस्सा उन्हें दिया जा सकता है. मामले में किसी पक्ष ने, जमीन के बंटवारे के लिए नहीं कहा था. कोई ताज्जुब  नहीं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से कोई संतुष्ट नहीं था. तीनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.

फैसली की घड़ी : 9 नवंबर 2019- सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा आजाद भारत के इस सबसे विवादित मसले पर फैसला..

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