ADVERTISEMENTREMOVE AD

Sedition Law: 2014 के बाद बढ़े मामले, आलोचना दबाने के लिए थोपे जा रहे केस

sedition law पर Supreme Court ने कहा कि, सरकार इस पर विचार करे और तब तक किसी पर भी इस कानून की धाराएं ना लगाई जायें.

Published
भारत
5 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

राजद्रोह कानून (sedition law) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 11 मई 2022 को ऐतिहासिक निर्देश दिये. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को IPC की धारा 124A पर पुनर्विचार करने की अनुमति दी है. इसके अलावा कोर्ट ने कहा है कि जब तक इस कानून पर पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक 124A के तहत कोई मामला दर्ज ना करें. हालांकि केंद्र सरकार चाहती थी कि राजद्रोह कानून बरकरार रहे और इस पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है. ऐसे में ये जानना अहम हो जाता है कि राजद्रोह के मामलों में राजनीति कैसे हावी रहती है और हाल के दिनों में इस पर इतनी बड़ी बहस क्यों छिड़ी है. ये समझने के लिए हम कुछ डाटा का सहारा लेंगे जो बताएगा कि राजद्रोह के कानून का उपयोग अलग-अलग सरकारों ने कितना और किस तरह के केसों में किया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि वो राज्य सरकारों को निर्देश जारी करने के लिए मसौदा तैयार कर रही है, जिसमें बिना जिला कप्तान (SP) या उससे बड़े अधिकारी की इजाजत के राजद्रोह की धाराओं में केस दर्ज नहीं हो सकेगा, लेकिन कोर्ट ने इसकी समीक्षा तक इसके तहत FIR नहीं करने की हिदायत दी.
sedition law पर Supreme Court ने कहा कि, सरकार इस पर विचार करे और तब तक किसी पर भी इस कानून की धाराएं ना लगाई जायें.

बिहार से समझिये कैसे राजद्रोह के केसों का दायरा बदल गया

एक रिपोर्ट के मुताबिक 2010 से 2014 के बीच में ज्यादातर राजद्रोह के केस माओवादियों और जाली नोट से जुड़े थे. जबकि 2014 के बाद 23 प्रतिशत राजद्रोह के मामले सीएए का विरोध करने वालों के खिलाफ, लिंचिंग और असहिष्णुता के खिलाफ बोलने वाली हस्तियों और कथित तौर पर पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने वालों के खिलाफ थे.

बिहार में महागठबंधन की भी 20 महीने सरकार रही, इस दौरान 30 राजद्रोह के केस दर्ज किये गये.

बिहार में 2010 से 2014 के बीच 58 राजद्रोह के केस दर्ज किये गये. जिनमें से 16 माओवादियों पर केस दर्ज किया गया.

कुछ उदाहरणों से समझिए कि कैसे और किन लोगों पर राजद्रोह के केस बिहार में दर्ज किये गये. नवंबर 2015 में बिहार के मजफ्फरपुर सदर थाने में आमिर खान और उनकी पत्नी के खिलाफ राजद्रोह की धाराओं में केस दर्ज किया गया. दब उन्होंने असहिष्णुता पर बयान दिया.

इसी पुलिस स्टेशन में चार साल बाद अक्टूबर 2019 में, फिल्म निर्माता मणिरत्नम, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, अभिनेता अपर्णा सेन और कोंकणा सेन शर्मा सहित 49 प्रतिष्ठित व्यक्तियों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया, जब उन्होंने पीएम मोदी को मॉब लिंचिंग की आलोचना करते हुए लिखा, बाद में पुलिस ने मामला रफा-दफा कर दिया.

0

यूपी में भी बिहार जैसे हालात

यूपी में, 2010 के बाद से देशद्रोह के 115 मामलों में से 77% पिछले चार वर्षों में दर्ज किए गए, जब से योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. इनमें से आधे से ज्यादा "राष्ट्रवाद" के मुद्दों के आसपास थे. सीएए का विरोध करने वालों के खिलाफ, कथित "हिंदुस्तान मुर्दाबाद" के नारे लगाने के लिए, कथित तौर पर पुलवामा हमले और 2017 आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में भारत की हार का जश्न मनाने के लिए.

sedition law पर Supreme Court ने कहा कि, सरकार इस पर विचार करे और तब तक किसी पर भी इस कानून की धाराएं ना लगाई जायें.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

देश का हाल क्या है?

पिछले दशक में राजनेताओं और सरकारों की आलोचना के लिए 405 भारतीयों के खिलाफ राजद्रोह के 96% मामले 2014 के बाद दर्ज किए गए, जिसमें 149 पर पीएम मोदी के खिलाफ ‘आलोचनात्मक’ या ‘अपमानजनक’ टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया. जबकि 144 पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ‘आलोचनात्मक’ या ‘अपमानजनक’ टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया.

इन राज्यों में राजद्रोह का इस्तेमाल नहीं

देश के 4 राज्य ऐसे हैं जहां राजद्रोह के कानून का 2014 से 2019 के बीच इस्तेमाल नहीं किया गया. त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम और सिक्किम में इस अवधि के दौरान कोई राजद्रोह का केस दर्ज नहीं किया गया. इसके अलावा अंडमान और निकोबार, लक्षदीप, पुडुचेरी, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली केंद्र शासित राज्यों में भी कोई राजद्रोह का केस इस दौरान दर्ज नहीं किया गया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

राजद्रोह का केस तो दर्ज होता है सिद्ध करना मुश्किल

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ो के मुताबिक 2014 से 2019 के बीच राजद्रोह के तहत कुल 326 केस दर्ज किये गये. जिनमें से 141 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किये गये और इन 6 सालों में 6 लोगों को दोषी करार दिया गया.

  • अब राज्यवार देख लीजिए 2014 से 2019 के बीच असम में 54 राजद्रोह के केस दर्ज किये गये. जिनमें से 26 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किये गये और 25 में मुकदमा पूरा हो सका लेकिन एक भी मामले में कोई दोषी साबित नहीं हुआ.

  • झारखंड में 2014 से 2019 के बीच 40 राजद्रोह के केस दर्ज किये गये जिनमें से 29 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किया गया और 16 मामलों में केस पूरा हुआ. इस दौरान यहां एक व्यक्ति को दोषी ठहराया जा सका.

  • हरियाणा में 2014 से 2019 के बीच 31 केस दर्ज किये गये जिनमें से 19 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किया गया. इनमें से 6 केसों में सुनवाई पूरी हो सकी. जबकि केवल एक व्यक्ति को दोषी ठहराया जा सका.

  • उत्तर प्रदेश में 2014 से 2019 के बीच 17 राजद्रोह के केस दर्ज किये गये जिनमें से 8 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किया गया और किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सका.

  • पश्चिम बंगाल में 2014 से 2019 के बीच 8 राजद्रोह के केस दर्ज किये गये जिनमें से पांच में आरोपपत्र दाखिल किया गया और किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

राजद्रोह (Sedition Law) आखिर है क्या?

ये अंग्रेजों के जमाने का बेहद जटिल कानून है. 1870 में अंग्रेज इस कानून को भारत का स्वतंत्रता संग्राम कुचलने के लिए लेकर आये थे. लेकिन उसके बाद देश आजाद हुआ, सत्ता बदली, प्रधानमंत्री बदले लेकिन ये कानून नहीं बदला. और धीरे-धीरे 158 साल पुराने कानून को सत्ता ‘हथियार’ के तौर पर इस्तेमाल करने लगी.

इस कानून को आसान शब्दों में समझें तो IPC की धारा 124 A जिसके तहत राजद्रोह एक अपराध है. इसके अंतर्गत सरकार के प्रति मौखिक, लिखित, सांकेतिक या दृश्य के रूप में सरकार के प्रति घृणा, अवमानना या उत्तेजना पैदा करना आता है. ये गैरजमानती अपराध है, जिसमें 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा दोषी पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है और उसे नौकरी करने से भी रोका जा सकता है.

इनपुट- NCRB, Article 14.com

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×