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किसान आंदोलन के बीच पंजाब निकाय चुनाव में कांग्रेस की जीत का मतलब

बीजेपी की करारी हार एक बड़ा संकेत है कि पंजाब की जनता में बीजेपी के खिलाफ काफी ज्यादा गुस्सा है

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राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन के बीच पंजाब से बीजेपी के लिए एक बुरी खबर सामने आई है. यहां हुए नगर निकाय चुनावों में बीजेपी का लगभग सूपड़ा साफ हो चुका है. वहीं कांग्रेस ने क्लीन स्वीप किया है. अब बीजेपी के लिए ये हार कितनी बड़ी है और इसके क्या मायने हैं, इसे समझना जरूरी है.

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बीजेपी के लिए कितनी बड़ी हार, क्या कहते हैं आंकड़े?

बीजेपी की इस हार को समझने के लिए फजिल्का जिले के अमोहा शहर के नतीजों पर गौर करना चाहिए. जहां से बीजेपी विधायक के विधायक हुआ करते हैं. लेकिन यहां की नगर निगम चुनाव की 50 सीटों पर बीजेपी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई. यानी पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया.

अब इसके बाद अगर पंजाब के होशियारपुर के नतीजों को देखें तो यहां भी बीजेपी को करारी हार मिली है. यहीं से बीजेपी के केंद्रीय मंत्री सोमप्रकाश आते हैं, जो यहां के सांसद भी हैं. यहां बीजेपी को 50 में से सिर्फ 4 सीटें मिली हैं. इसके बाद अगर गुरदासपुर जिले के बटाला की बात करें तो यहां भी बीजेपी को 50 सीटों में से सिर्फ 4 ही सीटें मिल पाई हैं. यहां से सनी देओल बीजेपी के सांसद हैं.

हालांकि पठानकोट में बीजेपी का प्रदर्शन थोड़ा सा बेहतर हुआ और यहां 50 में से बीजेपी को 11 सीटें मिली हैं, लेकिन फिर भी हार का सामना करना पड़ा है.
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विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा कितना असर

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की अगर बात करें तो इन लोकल चुनावों में पार्टी की बड़ी जीत हुई है. सिर्फ मोगा ऐसा क्षेत्र रहा है, जहां पर किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं हुआ है. लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि बठिंडा में कांग्रेस ने अकाली दल और बीजेपी के गढ़ में सेंध लगा दी है. यहां 53 साल बाद कांग्रेस की जीत हुई है. तो कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए ये एक बहुत बड़ी जीत है.

अब कई लोग इन निकाय चुनावों को अगले साल पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़कर देख रहे हैं. इसे विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी कहा जा रहा है. लेकिन अगर आपको भी इन नगर निगम चुनाव के नतीजों को देखकर कांग्रेस की जीत नजर आ रही है तो ऐसा बिल्कुल नहीं है.

दरअसल पंजाब में हमेशा ये देखा गया है कि जो भी पार्टी सत्ता में है, उसे उपचुनावों और लोकल चुनाव में कहीं न कहीं फायदा मिला है. इसी वजह से ये नहीं कहा जा सकता है कि अगले साल कांग्रेस का जीतना तय है.
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लेकिन ये भी देखना जरूरी है कि ये किसान आंदोलन के बाद पंजाब में सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण चुनाव था. इन चुनाव के नतीजों में बीजेपी की करारी हार एक बड़ा संकेत है कि पंजाब की जनता में बीजेपी के खिलाफ काफी ज्यादा गुस्सा है. जिसका नुकसान पार्टी को आने वाले चुनावों में भी झेलना पड़ सकता है.

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