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यूपी बीजेपी में कितना ‘असंतोष’ टटोल पाए बीएल संतोष?

योगी कैबिनेट के मंत्रियों ने बताया कि बीएल संतोष ने कोरोना काल में किए गए सेवा कार्य की समीक्षा की

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पब्लिक जो कहे लेकिन पार्टी के लिए यूपी शोकेस स्टेट है. योगी की तरह कम ही सीएम हैं जो दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए हैं, लेकिन पार्टी के लिए सूबे फतह करते-करते लगता है योगी की अपनी सल्तनत में ही दरारें पड़ गई हैं.

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नेताओं से अलग-अलग मिलने की जरूरत क्यों पड़ी?

बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष लखनऊ पहुंचे. दो दिन तक बीएल संतोष सरकार के मंत्रियों, विधायकों और सांसदों से मिले. खास बात ये है कि अलग-अलग मिले. फेविकॉल के जोड़ से एकजुट पार्टी के नेताओं से अलग-अलग मिलने की जरूरत क्यों पड़ी? बड़ा सवाल है और अपने आप में जवाब है.

ये धुआंधार मुलाकातों के पीछे क्या बात है? लखनऊ में एक शब्द जो सबसे ज्यादा तैरा वो था, फीडबैक. मंत्रियों के मन में क्या है, उसका फीडबैक. कार्यकर्ताओं के मन में क्या है उसका फीडबैक, कोरोना महामारी में सरकार ने कैसा काम किया इसका फीडबैक...न्यूज एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक योगी कैबिनेट के मंत्रियों ने बताया कि बीएल संतोष ने कोरोना काल में किए गए सेवा कार्य की समीक्षा की.

अब सवाल है कि जिस योगी सरकार के कामकाज की खुद पीएम तारीफ करते हैं, जिसके कोरोना कंट्रोल मॉडल की नीति आयोग से तारीफ करवाई जाती है वहां इतने विस्तृत फीडबैक की जरूरत क्यों पड़ी? चलिए क्रोनोलॉजी समझते हैं.

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कोरोना प्रबंधन को लेकर अपने ही उठा चुके हैं आवाज

कोरोना में ऑक्सीजन की कमी से लेकर इलाज और टेस्ट में देरी को लेकर बीजेपी के खुद के सांसद, विधायक आवाज उठा चुके हैं. विधायकों और सांसदों की नाराजगी समय-समय पर बाहर निकलती रहती है. एक के बाद एक कई बीजेपी नेताओं ने शिकायत की कि अफसरशाही उनकी सुनती नहीं. जाहिर है नाम लिए बिना भी निशाने पर योगी थे, क्योंकि यत्र तत्र सर्वत्र नजर आने वाले योगी की सरकार में अगर अफसर बीजेपी के सांसदों और विधायकोंकी नहीं सुनते तो जिम्मेदार कौन है?

गंगा में लाशें हों, निजी लैब में टेस्ट ना होने की शिकायत, ऑक्सीजन की कमी और कमी के लिए SOS भेजने वालों पर ही कानूनी कार्रवाई के आरोप...कोरोना महामारी में महालापरवाही झेल रही मोदी सरकार की तकलीफों को योगी सरकार ने बढ़ाया ही है. यूपी में गड़बड़ियों की इंटनरेशनल हेडलाइनें बनीं.

जो योगी दूसरे राज्यों में जाकर पार्टी को जीताने की कोशिश करते हैं उनके अपने राज्य में बीजेपी को पंचायत चुनाव में करारी हार मिली. कोई ताज्जुब नहीं कि सूत्र बताते हैं कि संतोष ने पंचायत चुनाव पर भी चर्चा की.

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एके शर्मा की यूपी में एंट्री

वैसे तो योगी को राज्य बीजेपी में कोई चैलेंज करने वाला नहीं. मनोज सिन्हा, कलराज मिश्र और राजनाथ सिंह अब राज्य से बाहर जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं. लेकिन हाल फिलहाल की एक घटना याद कीजिए. पीएम मोदी के करीबी और पूर्व नौकरशाह एके शर्मा हाल ही में राज्य लाए गए. एमएलसी बनाए गए. इतने बड़े अफसर को दिल्ली से यूपी लाकर एमएलसी तो नहीं बनाया जा सकता. जब से यूपी आए हैं चर्चा है कि डिप्टी सीएम बनाए जाएंगे लेकिन ऐसा अब हो नहीं पाया है. तो कृपा कहां रुक रही है. क्या केंद्र और राज्य के बीच इस मसले पर एकराय नहीं है? एक पूर्व ब्योरोक्रेट का राज्य में कद बढ़ेगा तो दिक्कत किसे होगी?

एक चर्चा ये भी है कि बीजेपी, प्रदेश अध्यक्ष पद पर केशव मौर्य को लाना चाहती है ताकि 2022 में ओबीसी चेहरे के तौर पर पार्टी यह दिखा सके कि वह आज भी ओबीसी की पार्टी है.
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बहरहाल बीएल संतोष ने बीच यूपी यात्रा से ट्वीट किया.-"विगत पांच सप्ताहों में योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रतिदिन के कोरोना के नए मामलों में 93 प्रतिशत तक की कमी लाई...यह याद रखना होगा कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 20 करोड़ से ज्यादा है. नगर निगमों के मुख्यमंत्री 1.5 करोड़ आबादी वाले शहर का प्रबंधन नहीं कर सके वहीं, योगी जी ने इतने बड़े राज्य को बेहतर तरीके से संभाला.'

जाहिर है तमाम शिकायतों के बाद भी पार्टी योगी पर कोई सर्जिकल स्ट्राइक करने के मूड में नहीं है. वैसे भी हिंदुत्व के नैरेटिव में सुपरफिट बैठने वाले योगी को हटाना अपने एजेंडे पर कई कदम पीछे जाने जैसा दिखेगा. लेकिन जिन कारणों से संतोष फीडबैक लेने आए, वो तो हैं ही. वो अपने ट्वीट पर खुद संतोष कर सकते हैं लेकिन कोरोना में कराह चुका वोटर और ऑन कैमरा रो चुके बीजेपी के नेता कितने संतुष्ट होंगे, कह नहीं सकते. संतुष्ट नहीं हुए तो आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

बहरहाल फीडबैक लेकर संतोष दिल्ली चले गए. प्रदेश के प्रभारी राधा मोहन सिंह भी दिल्ली चले गए हैं. कुछ को उम्मीद और कुछ और आशंका है कि यूपी बीजेपी और सरकार में बड़ा फेरबदल होने सकता है.

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