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अखिलेश यात्रा पर, UP की सड़कों पर 'साइकिल' चलेगी? चाचा शिवपाल बनेंगे 'ब्रेकर'?

जहां एक तरफ अखिलेश आज से शुरू हुई है वहीं दूसरी ओर चाचा शिवपाल यादव भी समाजिक परिवर्तन रथ यात्रा पर निकले हैं.

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में अपनी खोई हुई राजनीतिक जनाधार की तलाश में आज से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) यात्रा पर निकल चुके हैं. यात्रा का नाम है विजय यात्रा. मतलब दोबारा उत्तर प्रदेश की राजनीति में विजय होना चाहते हैं. कानपुर से शुरू हो रहे इस यात्रा का मकसद है कि दो दिन में चार जिलों के लोगों के बीच पहुंचा जाए.

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कानपुर के जाजमऊ से शुरू इस यात्रा के जरिए अखिलेश यादव कानपुर-बुंदेलखंड का दौरा करेंगे.

यात्रा शुरू होने पर कानपुर में अखिलेश यादव ने कहा,

"जिस तरीके से कानून को कुचला है, किसानों को कुचला, संविधान की धज्जियां उड़ाई है उसके खिलाफ जनता में बीजेपी के लिए बहुत आक्रोश है. कानपुर इसलिए भी प्रमुख है, क्योंकि कानपुर बड़ा औद्योगिक शहर है. कानपुर में समाजवादियों ने बहुत विकास किया है. कानपुर के बंद कारखाने और रोजगार के अवसर भी पैदा हों. युवाओं को रोजगार मिले. इसके लिए समाजवादी काम करेंगे. नेताजी (मुलायम सिंह यादव) ने भी एक समय इसी शहर से रथ यात्रा की शुरुआत की थी."
जहां एक तरफ अखिलेश आज से शुरू हुई है वहीं दूसरी ओर चाचा शिवपाल यादव भी समाजिक परिवर्तन रथ यात्रा पर निकले हैं.

(फोटो:  @samajwadiparty)

अखिलेश ने अपनी यात्रा के शुरुआत में बीजेपी सरकार पर भी हमला बोला. अखिलेश ने कहा, "BJP ने मां गंगा मैया को धोखा दिया आज भी गंगा मैया साफ नहीं हुई हैं. कानपुर औद्योगिक शहर है कानपुर यूपी का एक बड़ा शहर है ,यहां कारोबार है ,रोजगार है बीजेपी सरकार में लोगों ने कानपुर की बर्बादी देखी है. आज जब हम और आप कानपुर में चल रहे हैं तो आप सोचिए पेट्रोल कितनी कीमत का है. इसलिए हम विजय रथ के माध्यम से जनता के बीच में जा रहे हैं, जिससे उत्तरप्रदेश से भारतीय जनता पार्टी का सफाया हो जाएगा."

बता दें कि कानपुर-बुंदेलखंड के इलाकों को देखें तो यहां 50 से ज्यादा विधानसभा सीटें हैं, जिनमें 45 से ज्यादा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. हालांकि कानपुर के इलाकों में समाजवादी की पकड़ मजबूत है.

अखिलेश के सामने चाचा शिवपाल

जहां एक तरफ भतीजे अखिलेश की यात्रा 12 अक्टूबर यानी आज से शुरू हुई है वहीं दूसरी ओर चाचा शिवपाल यादव भी समाजिक परिवर्तन रथ यात्रा पर आज ही से निकले हैं. मतलब यादव कुनबे में घमासान जोरों पर है. शिवपास यादव की यात्रा मथुरा से शुरू हो रही है और बृज क्षेत्र से होते हुए आगरा, इटावा, औरेया, कानपुर देहात, झांसी, महोबा फतेहपुर होते हुए प्रयागराज जाएगी.

बता दें कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुलायम सिंह के यादव परिवार में रिश्तों में खटास आ गई थी, अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल आमने-सामने आ गए थे. जिसके बाद शिवपाल यादव ने अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली.

अभी हाल ही में शिवपाल यादव ने यादव परिवार में समझौते को लेकर पेशकश भी की थी. साथ ही शिवपाल यादव करीब करीब हर मंच पर कहते रहे हैं कि वह समाजवादी पार्टी से गठबंधन करना चाहते हैं, लेकिन अखिलेश यादव की ओर से बात अटकी है.

अखिलेश और शिवपाल की लड़ाई में नुकसान दोनों का ही हुआ है. चाहे वो 2017 का विधानसभा चुनाव हो या 2019 का लोकसभा चुनाव. कई सीटों पर समाजवादी पार्टी का वोट शिवपाल यादव की वजह से कटा था.

चाचा-भतीजा दोनों को मुलायम का सहारा

अखिलेश यादव अपनी लाल रंग की बस से यात्रा पर निकले हैं, जिसपर मुलायम सिंह की बड़ी सी तस्वीर लगी हुई है. साथ ही भीम राव अंबेडकर से लेकर जय प्रकाश नारायण, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम समेत कई नेताओं की फोटो की लगी है. अखिलेश ने यात्रा से पहले पिता मुलायम से आशीर्वाद भी लिया है.

जहां एक तरफ अखिलेश आज से शुरू हुई है वहीं दूसरी ओर चाचा शिवपाल यादव भी समाजिक परिवर्तन रथ यात्रा पर निकले हैं.

(फोटो:  प्रगतिशील समाजवादी पार्टी)

वहीं दूसरी तरफ शिवपाल यादव ने भी अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव की तस्वीर का इस्तेमाल किया है. शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी के झंडे के रंग लाल पीले और हरे रंग की बस पर मुलायम सिंह की बड़ी सी फोटो लगाई है.

जहां एक तरफ अखिलेश आज से शुरू हुई है वहीं दूसरी ओर चाचा शिवपाल यादव भी समाजिक परिवर्तन रथ यात्रा पर निकले हैं.

(फोटो:  प्र)

मतलब कुल मिलाकर चाचा-भतीजा दोनों को मुलायम के चेहरे का सहारा है.

बता दें कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की करारी हार हुई थी. समाजवादी पार्टी को और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी, तब भी दोनों को मिलकर सिर्फ 54 सीटें आई थीं. एसपी को 47 और कांग्रेस को मात्र 7 सीट. वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी ने मायावती की बीएसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. तब बीएसपी को 10 और एसपी को 5 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी, वहीं यूपी में बीजेपी के खाते में 62 सीटें आईं थीं.

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