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कोरोना: वैक्सीन आने से पहले ही डोज कब्जाने की रेस में अमीर देश

फिर दिख सकती हैं, साल 2009 में स्वाइन फ्लू महामारी के दौरान बनी परिस्थितियां

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नोवेल कोरोना वायरस की किसी भी वैक्सीन के प्रभावी साबित होने से पहले ही अमीर देश उनकी ज्यादा से ज्यादा डोज कब्जाने की रेस में जुट गए हैं. ऐसे में महामारी से जूझ रही बाकी दुनिया को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं.

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ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, Sanofi और पार्टनर GlaxoSmithKline Plc से सप्लाई सुरक्षित करने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन के कदम, जापान और Pfizer के बीच एक समझौता, इस रेस की हालिया झलक दिखाते हैं. यूरोपीय संघ भी शॉट्स हालिस करने में आक्रामक रहा है, इससे पहले कि किसी को यह भी पता चले कि वे काम करेंगे या नहीं.

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भले इंटरनेशनल ग्रुप्स और कई देश वैक्सीन को सभी के लिए सुलभ बनाने का वादा कर रहे हैं, लेकिन इस बात की आशंका जताई जा रही है कि आर्थिक रूप से कमजोर देश वैक्सीन की डोज पाने के लिए संघर्ष करते दिखेंगे.

आशंका है कि धनी देशों के पास सप्लाई का एकाधिकार होगा, लगभग ऐसी ही परिस्थितियां साल 2009 में स्वाइन फ्लू महामारी के दौरान दिखी थीं.

लंदन बेस्ड एनालिटिक्स फर्म एयरफिनिटी के मुताबिक, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और जापान ने अब तक संभावित COVID टीकाकरण की लगभग 1.3 अरब डोज सुरक्षित कर ली हैं.

वैक्सीन लाने की रेस में कुछ फ्रंट रनर्स, जैसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और पार्टनर AstraZeneca Plc और एक Pfizer-BioNTech SE कोलेबोरेशन, पहले से ही फाइनल स्टेज स्टडीज में हैं, जो उम्मीद पैदा कर रहे हैं कि COVID-19 से लड़ने का हथियार जल्द ही उपलब्ध होगा.

मगर डिवेलपर्स को अभी भी कई बाधाओं को दूर करना होगा: ये साबित करना कि उनके शॉट्स प्रभावी हैं, अप्रूवल हासिल करना और फिर मैन्युफैक्चरिंग को रफ्तार देना. एयरफिनिटी के पूर्वानुमानों के मुताबिक, हो सकता है कि 2022 की पहली तिमाही तक, दुनियाभर में सप्लाई 1 अरब डोज तक भी न पहुंचे.

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