अमेरिकी चुनाव के नतीजे साफ होने के बाद अब यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की बनाई व्यवस्था को आगे कैसे ले जाएंगे या फिर नया ढांचा कैसे तैयार करेंगे? इन मुद्दों में अफगानिस्तान शांति वार्ता चर्चा में है, क्योंकि अफगानिस्तान में आए दिन ब्लास्ट हो रहे हैं जिसमें तालिबानियों का हाथ बताया जा रहा है. हाल ही में काबुल यूनिवर्सिटी में हुए हमले ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था, अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति ने हमले का आरोप सीधा तालिबान पर लगाया था.
ऐसे में फिलहाल अफगानिस्तान में जो स्थिति है उसे लेकर अमेरिकी की नई बाइडेन सरकार क्या सकती है, इन सवालों के जवाब यहां ढूंढेंगे-
- तालिबान बाइडेन से क्या चाहता है?
- अफगान के नेता बाइडेन से क्या चाहते हैं?
- अफगानिस्तान में अमेरिका का मौजूदा स्टैंड क्या है?
- बाइडेन का रुख तालिबान के प्रति कैसा है?
- अफगान शांति वार्ता का भारत पर क्या प्रभाव होगा?
शांति वार्ता बनाए रखने के लिए तालिबान ने किया बाइडेन से आग्रह
भले ही ट्रंप अभी हार मानने को तैयार न हो, तालिबान ये मान चुका है कि बाइडेन ही अगले राष्ट्रपति हैं. तालिबान ने कहा है कि बाइडेन को दोहा समझौते का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि यह किसी एक व्यक्ति के साथ नहीं, बल्कि अमेरिकी सरकार के साथ किया गया समझौता था. तालिबान को उम्मीद है कि बाइडन प्रशासन दोहा शांति प्रोटोकॉल का पालन करेगा.
- वाशिंगटन दरअसल काबुल में एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था बनाने की हड़बड़ी में है, जिससे कि अमेरिकी सैनिक क्रिसमस से पहले घर लौट सकें.
- अफगानिस्तान में तालिबानी हिंसा पिछले तीन महीनों में 50 फीसदी तक बढ़ गई है.
- न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, सितंबर 2019 से अब तक 212 नागरिकों की तालिबानी हमले में मौत हुई है.
- वर्तमान में अभी भी 4500 अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में हैं.
अफगान के नेता चाहते हैं आतंकवाद के खिलाफ लड़े बाइडेन
वहीं, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी चाहते हैं कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन आतंकवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई में अफगानिस्तान की सहायता करें. बता दें कि गनी और ट्रंप प्रशासन के बीच उस समय खटास पड़ गई थी जब काबुल में वाशिंगटन और तालिबान के बीच दरवाजे के पीछे वार्ता हुई थी. इसके बाद ही फरवरी में ऐतिहासिक शांति समझौता देखने को मिला था. इस वार्ता के बाद ट्रंप प्रशासन के दवाब में गनी को 5000 तालिबानी कैदियों को रिहा करना पड़ा था. समझौता में यह भी कहा था कि अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से निकाल लिए जाएंगे.
- अल-जजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान के सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट सरावर दानिश ने अपील की है कि बाइडेन प्रशासन एक बार फिर अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया की समीक्षा करे और तालिबान में ज्यादा प्रेशर बनाए. यह सब उस प्रक्रिया के तहत हो जिसमें अमेरिका के साथ इन सबके लिये समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.
- इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के सीनियर एनालिस्ट एन्ड्रयू वाटकिन्स ने अल-जजीरा से कहा कि इस बात की काफी संभावना है कि बाइडेन सरकार काबुल के लोगों की समस्याओं को सुनेगी.
- सना हैदर अफगानिस्तान में हेल्थ प्रोवाइडर हैं, इनका कहना है कि बाइडेन सरकार से इस बात की उम्मीद है कि डेमोक्रेट्स उनके देश के साथ कुछ तो अच्छा करेंगे न कि सिर्फ अफगान को तालिबानियों के हाथों सौंप देंगे.
- कई विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप को अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को निकालने की काफी जल्दी थी.
- ब्राउन यूनिवर्सिटी के अनुसार 2001 से अफगानिस्तान में जारी लड़ाई में अभी तक 978 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च हुये हैं यानी कि प्रतिवर्ष 49 बिलियन डॉलर के आसपास.
- 43000 आम नागरिकों को मिलाकर लगभग 157000 लोगों की मौते हुई हैं अबतक.
- अमेरिका के अनुसार इस युद्ध में उसके 2400 सैनिक मारे गए हैं.
- दोहा शांति वार्ता की चर्चा अभी चल रही है लेकिन सितंबर से अबतक इस दौरान 876 नागरिकों की मौत हो चुकी है. जबकि 1685 लोग घायल हुए हैं.
लेकिन तालिबान को दुश्मन नहीं मानते हैं बाइडेन!
न्यूजवीक मैग्जीन को दिए गए एक इंटरव्यू के दौरान उपराष्ट्रपति रहते हुये जो बाइडेन ने कहा था कि “अपने आप में तालिबान अमेरिका का दुश्मन नहीं है. ऐसी एक भी मिसाल नहीं है जब अमरीकी राष्ट्रपति ने अमेरिकी नीतियों के बारे में बात करते हुए कभी भी ये कहा हो कि तालिबान हमारें दुश्मन है, क्योंकि वे अमेरिकी हितों के लिए कोई खतरा हैं.”
- 2008 में सत्ता में आने के बाद ओबामा ने न सिर्फ तालिबान से किसी तरह की बातचीत से इनकार कर दिया था, बल्कि 30 हजार अतिरिक्त फौज भेजकर पाकिस्तान के भीतर भी तालिबानी ठिकानों पर ड्रोन हमले शुरू कर दिये थे. उस समय बाइडेन उप-राष्ट्रपति थे. ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि बाइडेन अफगानिस्तान में ओबामा की नीतियों को आगे बढ़ाएंगे.
- 2009 में अमेरिका में अफगानिस्तान के लिये रणनीति बनाई थी जिसमें बाइडेन के प्रस्ताव भी शामिल थे. इसमें जो बिंदु शामिल थे वह इस प्रकार है :- अफगानों की ट्रेनिंग के लिए वहां थोड़ी अमेरिकी सेना की तैनाती, अमेरिकी स्पेशल फोर्सेस का इस्तेमाल करके आतंकवाद का मुक़ाबला और पाकिस्तान को सावधान करना.
- 2009 में बड़ी संख्या में अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान भेजे गए थे.
पाकिस्तान का क्या होगा?
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी ने पीटीआई को बताया कि “संभावना है कि बाइडन प्रशासन इस्लामाबाद के प्रति कड़ा रुख अपनाएगा। अमेरिका पाकिस्तान को एफएटीएफ के मुद्दे सहित आतंकवाद से संबंधित मुद्दों पर कार्रवाई करने और अफगानिस्तान में शांति बहाल करने के अमेरिकी प्रयासों का समर्थन करने के लिए कहता रहेगा. इसकी संभावना नहीं है कि बाइडन प्रशासन सुरक्षा सहायता या गठबंधन सहायता निधि के लिए पाकिस्तान को फिर से धन देना शुरू करेगा.”
अफगान शांति वार्ता का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
अफगानिस्तान में तालिबान का मजबूत होना भारत के लिए चिंता की बात हो सकती है. चूंकि पाकिस्तान से तालिबान का करीबी का मामला है और भारत-पाकिस्तान के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. ऐसे में अफगानिस्तान में भारत की पकड़ कमजोर होना भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
- भारत ने वर्षों से अफगानिस्तान में शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं के सुधार में मदद दी है. भारत ने यहां बड़े पैमाने पर निवेश किया है.
- ऐसे में क्या भविष्य में भारत अपनी सेना अफगानिस्तान भेज सकता है और क्या दिल्ली से अफगानिस्तान के लिये क्या योजना बनाई जा सकती हैं? इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा.
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