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अंबानी की कंपनी के टैक्स मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं: फ्रांस

राफेल डील, अनिल अंबानी और फ्रांस में टैक्स रिबेट, जानिए क्या है पूरा मामला 

Published
भारत
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फ्रांस सरकार ने कहा है कि वहां के टैक्स डिपार्टमेंट और रिलायंस की सब्सिडरी कंपनी के बीच टैक्स छूट को लेकर वैश्विक सहमति बनी थी और इसमें किसी भी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं किया गया है.

फ्रांस ने यह सफाई उन खबरों पर दी है, जिनमें अनिल अंबानी की फ्रांसिसी कंपनी को भारी-भरकम टैक्स छूट मिलने की बातें की गयी हैं.

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फ्रांस का किसी भी तरह के राजनीतिक हस्तक्षेप से इनकार

फ्रांच के एक बड़े अखबार ला मोंडे ने 36 राफेल विमानों की खरीद की भारत की घोषणा के बाद अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस कम्युनिकेशन्स की एक सब्सिडरी का 14.37 करोड़ यूरो का टैक्स साल 2015 में माफ किये जाने की खबर दी है.

फ्रांस के दूतावास ने एक बयान में कहा, ‘‘फ्रांस के टैक्स डिपार्टमेंट और टेलिकॉम कंपनी रिलायंस फ्लैग के बीच 2008 से 2018 तक के टैक्स विवाद मामले में वैश्विक सहमति बनी थी. विवाद का समाधान टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन की आम प्रक्रिया के तहत लेजिस्लेटिव एंड रेगुलेटरी रूपरेखा का पूरी तरह पालन करते हुए निकाला गया था.’’

दूतावास ने कहा कि विवाद का समाधान करने में किसी भी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं किया गया.

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राफेल डील में गड़बड़ी को लेकर पीएम मोदी पर आरोप लगाती रही है कांग्रेस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस में 10 अप्रैल, 2015 को फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ बातचीत के बाद 36 राफेल विमानों की खरीद की घोषणा की थी.

कांग्रेस इस सौदे में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का आरोप लगाती रही है. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार 1,670 करोड़ रुपये की दर से एक विमान खरीद रही है, जबकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ की दर से सौदा पक्का किया था.

कांग्रेस अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस डिफेंस को दसॉ एवियशन का ऑफसेट साझीदार बनाने को लेकर भी सरकार को निशाना बना रही है. हालांकि, सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया है.

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फ्रांसिसी अखबार की रिपोर्ट में क्या है?

फ्रांसिसी अखबार ने रिपोर्ट में कहा है कि फ्रांस के अधिकारियों ने रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस की जांच की और पाया कि 2007-10 के बीच उसे छह करोड़ यूरो के टैक्स का भुगतान करना था.

हालांकि, मामले को सुलटाने के लिए रिलायंस ने 76 लाख यूरो की पेशकश की लेकिन फ्रांस के अधिकारियों ने रकम स्वीकार करने से इनकार कर दिया. अधिकारियों ने 2010-12 की अवधि के लिए भी जांच की और टैक्स के रूप में 9.1 करोड़ यूरो के भुगतान का निर्देश दिया. अप्रैल, 2015 तक रिलायंस को फ्रांस के अधिकारियों को 15.1 करोड़ यूरो का टैक्स देना था.

हालांकि, पेरिस में मोदी द्वारा राफेल सौदे की घोषणा के छह महीने बाद फ्रांस अधिकारियों ने अंबानी की कंपनी की 73 लाख यूरो की पेशकश स्वीकार कर ली.

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