कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने इलेक्टोरल बॉन्ड को ‘दशक का सबसे बड़ा घोटाला’ करार दिया है. शनिवार को उन्होंने कहा बीजेपी को यह पता होगा कि उसके लिए किसने बॉन्ड नहीं खरीदा है. लेकिन जो पूरी तरह अंधेरे में होगी वह है भारत की जनता. उनकी ओर से उनके परिवार की ओर से किए गए ट्वीट में कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड दशक का सबसे बड़ा घोटाला है.
बीजेपी को यह भी पता होगा, किसने उसके लिए बॉन्ड नहीं खरीदा
भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जेल में बंद चिदंबरम ने कहा है कि बॉन्ड के खरीदारों के बारे में बैंक को जानकारी होगी और इसलिए सरकार को भी उनके बारे में पता होगा. पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा, “ उसके लिए जिसने बॉन्ड खरीदा उसके बारे में बीजेपी को पता होगा. लेकिन जिसने बॉन्ड नहीं खरीदा उसके बारे में भी बीजेपी को पता होगा. अगर कोई पूरी तरह अंधेरे में होगा तो वह भारत के लोग. पारदर्शिता जिंदाबाद.
पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदे के इस्तेमाल को लेकर विवाद पैदा हो गया है और कांग्रेस ने इसे ‘‘लोकतंत्र के लिये खतरा” बताया है क्योंकि इसमें दानकर्ता और दान पाने वाले का पता नहीं होगा. दूसरी ओर बीजेपी ने कहा है कि इन बॉन्ड से काले धन पर लगाम लगेगी.
इलेक्टोरल बॉन्ड से चुनावी पारदर्शिता पर सवाल?
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को मोदी सरकार में जनवरी 2018 में अधिसूचित किया गया था. कहा गया था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता आएगी. लेकिन इसने चुनावी फंडिंग को अपारदर्शी बना गया है. राजनीतिक पार्टियों के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड डोनर के बारे में चुनाव आयोग को बताए.
जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29C और आईटी एक्ट की धारा 13A में संशोधन के मुताबिक राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में चुनाव आयोग को जानकारी देने या इस बारे अकाउंट मेंटेन करने या दस्तावेज रखने की जरूरत नहीं है. हालांकि इनकम टैक्स एक्ट की धारा 139 4B के तहत राजनीतिक पार्टियों के लिए अपनी आय की जानकारी चुनाव आयोग को देना जरूरी है. इसमें वो आय भी जिस पर उसे छूट हासिल है.
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