कभी-कभी इंसाफ के लिए चीखने से भी तसल्ली मिलती है कि आपकी आवाज कहीं तो सुनी जा रही होगी. आपको जरूर सुना जाना चाहिए. आप दस्तक दीजिए, फिर दस्तक दीजिए, फिर, फिर, एक बार और, एक दिन वो जरूर सुनेंगे.अस्मां जहांगीर
कौन थीं अस्मां जहांगीर?
वो पाकिस्तान में विरोध की आवाज थीं, वो हिंदुस्तान में अमन की लौ थीं. जो दोस्त और रिश्तेदार उन्हें अंतिम विदाई देने दिल्ली में इकट्ठा हुए वो उन्हें एक ‘बेखौफ लड़ाका’ के तौर पर याद करते हैं.
साउथ एशिया के शांति आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली अस्मां का 11 फरवरी को लाहौर में निधन हो गया. भारत और पाकिस्तान के बीच सरहदों के परे जाकर दोस्ती की वकालत करने वाली अस्मां ताजिंदगी लोकतंत्रऔर विरोध की आवाजों को उनका हक दिलाने के लिए लड़ती रहीं.
अस्मां ने लाहौर में महिलाओं का एक ग्रुप बनाया जिसने कारगिल युद्ध के बाद भारत महिलाओं को पाकिस्तान लेकर आने वाली ‘अमन की बस’ का स्वागत किया.
जब हम उस तरफ पहुंचे, लड़कियों ने शांति-प्रतीक के तौर पर हमें नीले स्कार्फ और नीली चूड़ियां दीं. ये महिला होने के सम्मान को लौटाने के लिए भी था जो हमेशा चूड़ियों से जोड़कर देखी जाती रहा है. जो बंटवारे के दौरान खत्म हो गया था, जब पुरुषों के लिए चूड़ियों की टोकरी पहुंच गई, ये दिखाने कि उनमें हिम्मत नहीं. दंगे फैल गए. अस्मां ने वो सम्मान लौटाया. मैं बस से वही नीली चूड़ियां पहनकर बाहर निकलीऔर कहा, ‘ये त्वाडा चूड़ा है’.रमी छाबड़ा, वरिष्ठ पत्रकार
अस्मां जहांगीर को अपने काम और विरोध की कीमत भी चुकानी पड़ी. लेकिन सलाखें, नजरबंदियां या सियासी धमकियां उनके जज्बे को डिगाने में नाकाम रहे.
यादों में अस्मां
15 फरवरी को नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में अस्मां के चाहने वालों ने एक खास शाम का आयोजन किया गया जिसमें उनसे जुड़ी घटनाओं, कविताओं और संगीत के जरिए उन्हें याद किया गया. सामाजिक कार्यकर्ता सईदा हमीद ने अपनी दोस्त अस्मां जहांगीर को याद करते हुए कहा, “ मैंने अस्मां से कहा, 'तुम मिलने क्यों नहीं आ जातीं?' इसके जवाब में जो उसने कहा, वो अब भी कानों में गूंजता है. उसने कहा, 'सईदा, अब दिल नहीं चाहता क्योंकि जिस मकसद से पूरी जिंदगी लड़े हैं. अब लगता है कि वो हमें चाहते ही नहीं. हमारे लिए सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं'
वीडियो एडिटर- मोहम्मद इरशाद आलम
( क्विंट और बिटगिविंग ने मिलकर 8 महीने की रेप पीड़ित बच्ची के लिए एक क्राउडफंडिंग कैंपेन लॉन्च किया है. 28 जनवरी 2018 को बच्ची का रेप किया गया था. उसे हमने छुटकी नाम दिया है. जब घर में कोई नहीं था,तब 28 साल के चचेरे भाई ने ही छुटकी के साथ रेप किया. तीन सर्जरी के बाद छुटकी को एम्स से छुट्टी मिल गई है लेकिन उसे अभी और इलाज की जरूरत है ताकि वो पूरी तरह ठीक हो सके. छुटकी के माता-पिता की आमदनी काफी कम है, साथ ही उन्होंने काम पर जाना भी फिलहाल छोड़ रखा है ताकि उसकी देखभाल कर सकें. आप छुटकी के इलाज के खर्च और उसका आने वाला कल संवारने में मदद कर सकते हैं. आपकी छोटी मदद भी बड़ी समझिए. डोनेशन के लिए यहां क्लिक करें.)
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