पाकिस्तान की सीनेट ने 27 जुलाई को कश्मीरी अलगाववादी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी को पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से नवाजे जाने का प्रस्ताव पास किया. पाकिस्तान की संसद के उच्च सदन ने सरकार से गिलानी को 'निशान-ए-पाकिस्तान' देने की अपील की है. सैय्यद अली शाह गिलानी ने करीब एक महीने पहले ही ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) के चेयरमैन पद से इस्तीफा दिया है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, सीनेट ने सरकार से इस्लामाबाद में एक प्रस्तावित यूनिवर्सिटी का नाम भी गिलानी के नाम पर रखने की अपील की है. सर्वसम्मति से पास किए गए इस प्रस्ताव में गिलानी की जिंदगी की कहानी को राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर स्कूल करिकुलम का हिस्सा बनाने की मांग भी की गई है.
पाकिस्तान ने गिलानी को कर दिया था किनारे
ऐसा माना जाता है कि गिलानी के हुर्रियत कॉन्फ्रेंस छोड़ने से कुछ समय पहले से ही पाकिस्तान ने उन्हें किनारे करना शुरू कर दिया था. कश्मीर में मिलिटेंसी की शुरुआत के बाद से सैय्यद अली शाह गिलानी को पाकिस्तान का सबसे बड़े समर्थक के तौर पर देखा जाता था. हालांकि इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट कहती है कि 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद गिलानी के प्रति पाकिस्तान के रुख में बदलाव आ गया था. पाकिस्तान स्थित कई समूहों ने आर्टिकल 370 हटाए जाने के खिलाफ गिलानी के कोई एक्शन न लेने पर सवाल खड़ा किया था.
'निशान-ए-पाकिस्तान' दिए जाने का प्रस्ताव गिलानी के साथ शिकवे दूर करने का एक कदम मालूम होता है.
गिलानी का इस्तीफा
सैय्यद अली शाह गिलानी ने 29 जून को ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन पद से इस्तीफा दिया था. प्रेस को दिए अपने बयान में गिलानी ने कहा, “मैंने हुर्रियत सदस्यों को एक लेटर लिखा है, जिसमें हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के भीतर के वर्तमान हालात को देखते हुए, मैं उससे खुद को पूरी तरह से अलग कर रहा हूं."
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन 9 मार्च, 1993 को कश्मीर में अलगाववादी दलों के एकजुट राजनीतिक मंच के रूप में किया गया था.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)