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'घर का इंतजार करते कई मर गए': पात्रा चॉल के 672 मूल निवासी अदालत-सरकार से नाराज

बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद MHADA ने 10 अप्रैल को पात्रा चॉल लैंड पर दो प्राइवेट प्रोजेक्ट को OCs जारी किए हैं.

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भारत
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"मेरे पिता पहले ऐसे सदस्य थे जिन्होंने इस मामले को लेकर 2011 में कोर्ट का रुख किया था. कुछ वर्ष पहले उनका निधन हो गया, लेकिन हमें अभी भी अपना घर नहीं मिला है." यह कहना है 40 वर्षीय राकेश पोपट का, जोकि मुंबई के गोरेगांव उपबस्ती में पात्रा चॉल के मूल निवासियों (Patra Chawl original residents) में से एक हैं.

पोपट का परिवार गोरेगांव के सिद्धार्थ नगर स्थित पात्रा चाल के 672 मूल निवासियों में से एक है. 2007 में चॉल के पुनर्विकास के लिए इन निवासियों, महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) और गुरुआशीष डेवलपर्स ने एक त्रिपक्षीय समझौता किया था. जिसके परिणाम स्वरूप इन निवासियों को अस्थायी तौर पर वहां से बाहर कर दिया गया था.

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यहां रहने वालों से वादा किया गया था कि उन्हें दो-तीन साल में 2BHK फ्लैट बनाकर दिया जाएगा, 13 साल बीत चुके हैं लेकिन अभी तक न तो पोपट और न ही 671 अन्य निवासियों को अपना खुद का घर मिल पाया है.
बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद MHADA ने 10 अप्रैल को पात्रा चॉल लैंड पर दो प्राइवेट प्रोजेक्ट को OCs जारी किए हैं.

पुनर्विकास के पहले पात्रा चॉल

( फोटो: ईश्वर/द क्विंट )

यह मामला तब और ज्यादा चिंताजनक बन गया जब हाल ही में 11 अप्रैल को पोपट को पता लगा कि जहां पर कभी पात्रा चॉल हुआ करता था वहां के लिए MHADA ने अन्य बिल्डरों द्वारा उस जमीन पर बनाए जा रहे प्रोजेक्ट्स को ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट (ओसी) दे दिया है. यह जानकारी मिलने के बाद पोपट हिल गए.

हालांकि, MHADA की मंजूरी उन परियोजनाओं के लिए थी जो पात्रा चॉल के मूल 672 निवासियों के लिए नहीं बल्कि अन्य बिल्डरों द्वारा भूमि पर निर्मित मुक्त बिक्री इकाइयों (फ्री सेल यूनिट) के लिए बनाई जा रही हैं.

द क्विंट से बात करते हुए पोपट ने कहा कि "कई लोगों का मानना है कि इससे हमें राहत मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं है. जो घर हमें मिलने चाहिए थे, वे अब भी बन रहे हैं."

द क्विंट ने पात्रा चॉल के मूल निवासियों पोपट, राजेश दलवी और राजेश ठक्कर से उनके कभी न खत्म होने वाली चुनौतियों और घर के इंतजार के बारे में बात की है.

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पात्रा चॉल घोटाले का इतिहास

पुनर्विकास परियोजना का काम गुरुआशीष डेवलपर्स द्वारा किया जाना था, यह फर्म प्रोजेक्ट से जुड़े घोटालों के अपने इतिहास के लिए जानी जाती है. यहां तक कि अब प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा इस फर्म की जांच की जा रही है.

बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद MHADA ने 10 अप्रैल को पात्रा चॉल लैंड पर दो प्राइवेट प्रोजेक्ट को OCs जारी किए हैं.

मार्च 2018, पत्रा चाल की जमीन पर रुके हुए निर्माण की तस्वीर

(फोटो : ईश्वर / द क्विंट)

इस घोटाले के लेकर कुछ पॉइंट्स यहां दिए जा रहे हैं :

  • 2007 में गुरुआशीष डेवलपर्स ने MHADA और पात्रा चाल के 672 निवासियों के साथ MHADA से संबंधित भूमि का पुनर्विकास करने के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

  • गुरुआशीष, हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (HDIL) की सहायक कंपनी है, इसने 2017 में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के समक्ष उधारदाताओं को भुगतान करने में असमर्थता जाहिर करते हुए दिवालियापन के लिए याचिका दायर की थी. 2016-2017 के बीच इस फर्म ने चॉल के 672 निवासियों को अस्थायी आवास के किराए का भुगतान करना भी बंद कर दिया.

  • बीते वर्षों में, गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन के डायरेक्टर्स राकेश कुमार वाधवन और सारंग वाधवन ने अन्य लोगों के साथ मिलकर MHADA की सहमति के बिना अवैध रूप से FSI (फ्लोर स्पेस इंडेक्स) को विभिन्न बिल्डरों को 1,034 करोड़ रुपये में बेच दिया.

  • आखिरकार इसके स्टेकहोल्डर कौन थे; वहां के मूल रहवासी, MHADA और 9 अन्य बिल्डर, जिन्होंने पहले से ही वहां टावरों का निर्माण किया था.

  • मार्च 2018 में इस मामले पर तत्कालीन सीएम देवेंद्र फडणवीस ने संज्ञान लिया और गुरुआशीष डेवलपर्स के खिलाफ FIR दर्ज की गई. इस घोटाले में MHADA के कुछ अधिकारियों की संलिप्तता की भी जांच सरकार कर रही है.

  • जो आरोप लगाए गए हैं उसमें यह भी कहा गया है कि MHADA को फ्लैटों के अपने हिस्से से वंचित कर दिया गया था.

  • जुलाई 2022 में, शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत को ईडी ने गुरुआशीष से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के एक कथित मामले में गिरफ्तार किया गया था.

पात्रा चॉल के प्रोजेक्ट्स को मंजूरी प्रदान की गई

बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस साल मार्च में MHADA को पात्रा चॉल भूमि घोटाले से प्रभावित और रुके हुई प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए ओसी जारी करने का निर्देश दिया था. इस दौरान कोर्ट ने यह कहा था कि मुक्त-बिक्री परियोजनाओं से घर खरीदने वाले खरीदार "किसी भी गलत काम का हिस्सा नहीं थे" और उन यूनिट्स के लिए मंजूरी जारी करना "किसी भी सार्वजनिक हित को प्रभावित नहीं करता है."

बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद MHADA ने 10 अप्रैल को पात्रा चॉल लैंड पर दो प्राइवेट प्रोजेक्ट को OCs जारी किए हैं.

फरवरी 2023 में, पात्रा चॉल भूमि पर प्राइवेट प्रोजेक्ट्स के रहवासी MHADA के खिलाफ अपने घरों के पजेशन की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन करते हुए.

(फोटो: फेसबुक)

हाई कोर्ट के आदेश के बाद 11 अप्रैल को MHADA ने पात्रा चॉल भूमि पर दो प्रोजेक्ट्स (एकता त्रिपोलिस और कल्पतरु रेडियंस) को OCs प्रदान किए हैं. वहीं द लक्सर नामक तीसरे प्राइवेट प्रोजेक्ट को भी जल्द ही OC मिलने की उम्मीद है.

हालांकि भले ही इन प्रोजेक्ट्स के कुछ ही हिस्सों के लिए OC जारी किए गए हैं लेकिन यह कदम प्राइवेट प्रोजेक्ट्स में कम से कम उन 1,700 घर खरीदने वालों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है, जो कई वर्षों से लोन और ईएमआई से जूझ रहे हैं.

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वहीं इस कदम से चॉल के मूल निवासी खुश नहीं हैं, उनका कहना है कि जब तक उनके घरों को पूरा होने तक प्राइवेट प्रोजेक्ट्स को OC जारी नहीं किए जाने चाहिए थे.

60 वर्षीय राजेश दालवी जोकि पात्रा चॉल रेजिडेंट्स एसोसिएशन के प्रमुख भी हैं, उनका कहना है कि "ये केवल हमारी मांगें नहीं हैं, ये पुनर्विकास परियोजनाओं (रीडेवलेवमेंट प्रोजेक्ट्स) के लिए MHADA के नियम हैं."

राजेश दालवी कहते हैं कि "OC मिलने से, निजी बिल्डरों को आर्थिक रूप से लाभ हो रहा है... लेकिन उन लोगों का क्या जिन्हें पुनर्विकास के नाम पर वहां से बाहर कर दिया गया था? यह आदेश देकर कोर्ट ने हमारे साथ अन्याय किया है. कोर्ट ने उन घर खरीददारों की परेशानियों को देखा जो प्राइवेट प्रोजेक्ट्स से जुड़े हैं, लेकिन हमारे बारे में क्या? मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उन खरीददारों की समस्याएं हमारी समस्याओं जैसी ही महत्वपूर्ण नहीं हैं लेकिन हम 70 साल से अधिक समय से यहां के मूल निवासी थे."
बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद MHADA ने 10 अप्रैल को पात्रा चॉल लैंड पर दो प्राइवेट प्रोजेक्ट को OCs जारी किए हैं.

पात्रा चाॅल के मूल किराएदार जनवरी 2020 में MHADA के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए.

(फोटो: फेसबुक)

"2016 से मैं अपनी जेब से किराया दे रहा हूं"

यहां के रहवासियों के अनुसार, गुरुआशीष डेवलपर्स ने 2016 के बाद से पात्रा चॉल के 672 मूल निवासियों को वादे के मुताबिक किराए का भुगतान नहीं किया है. MHADA द्वारा 2018 में पुनर्विकास का काम संभालने के बाद, इन निवासियों को एरियर्स देने का वादा किया था, लेकिन उन्हें अभी तक यह प्राप्त नहीं हुआ है.

पोपट ने कहा कि "मैं और मेरा परिवार गोरेगांव में एक किराए के घर में रहते हैं. पिछले पांच-छह सालों से मैं अपनी जेब से किराया दे रहा हूं. मेरे पास खुद की प्रॉपर्टी है लेकिन मुझे हर महीने किराए के तौर पर 28,000 रुपये देने पड़ते हैं. हमें कई सारी वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा है. हमें कभी भी एरियर्स नहीं मिला है. मुझे अपनी बूढ़ी मां का भी ख्याल रखना है और बच्चों की पढ़ाई का खर्चा भी है."

बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद MHADA ने 10 अप्रैल को पात्रा चॉल लैंड पर दो प्राइवेट प्रोजेक्ट को OCs जारी किए हैं.

पात्रा चॉलवासियों के साथ विरोध प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस नेता संजय निरुपम

(फोटो: फेसबुक)

दालवी ने बताया कि पेंडिंग किराए को लेकर कैसे उन्होंने न केवल गुरुआशीष डेवलपर्स बल्कि जब से MHADA ने इस प्रोजेक्ट को संभाला है तब से उनके चक्कर लगाए हैं.

वे आगे कहते हैं कि गुरुआशीष डेवलपर्स द्वारा जब किराए का भुगतान किया जाता था तब उन्हें हर महीने 40,000 रुपये मिल रहे थे लेकिन जब से MHADA ने काम संभाला तब से यह संख्या काफी कम हो गई है.

दालवी कहते हैं कि "धीरे-धीरे 2016-17 के बीच लोगों को किराया मिलना बंद हो गया. 2018 में MHADA ने इस प्रोजेक्ट का कार्यभार संभाला था, लेकिन उनकी ओर किराए का भुगतान नहीं किया गया. लगभग 150 लोग ऐसे थे जिन्हें MHADA ने जनवरी 2018 से मार्च 2022 तक का किराया दिया था...लेकिन उस पर भी मतभेद था. MHADA ने पहले केवल 18,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करने की पेशकश की थी, लेकिन देवेंद्र फडणवीस सरकार ने जब इस मामले में हस्तक्षेप किया तब इस रकम को बढ़ाकर 25,000 रुपये कर दिया गया था."
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दालवी आगे कहते हैं कि "वो वाकिफ हैं गोरेगांव में 2BHK की कीमत कितनी है. 2016 में अगर हमें 40,000 रुपये मिल रहे थे तो 2022 में कम क्यों मिलें?"

दालवी ने कहा कि 2017 से हर वह हर महीने किराए के तौर पर 38,000 रुपये दे रहे हैं.

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने 2018 में इस प्रोजेक्ट को फिर से शुरू किया था, लेकिन वे मार्च 2022 से ही किराए का भुगतान करने पर सहमत हुए थे, जब MHADA ने आधिकारिक तौर पर प्रोजेक्ट को अपने हाथ में ले लिया था.

हालांकि 672 निवासियों को एक बड़ी राहत देते हुए राज्य सरकार ने गुरुवार 13 अप्रैल को इस बात की मंजूरी दे दी गई कि उन मूल निवासियों को जनवरी 2018 से फरवरी 2022 तक के बकाये का भुगतान किया जाए.

'पैसे जितने मायने रखते हैं, उतने ही मायने सपने भी रखते हैं'

राजेश ठक्कर का परिवार 1972 से पात्रा चाॅल में रहता आया है.

40 वर्षीय ठक्कर कहते हैं कि "मैं 1982 में वहां पैदा हुआ था और वहीं पला-बढ़ा हूं. वहां 672 परिवार थे. उनमें से कम से कम 300 परिवार ऐसे थे जो वहां 50 से अधिक वर्षों से रह रहे थे. हम एक ऐसे परिवार के बारे में जानते हैं जो 1945 से वहां रह रहा है."

पोपट और दालवी के उलट, ठक्कर का अपना घर है इसलिए अपनी जेब से किराया देना उनकी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक नहीं है. ठक्कर ने कहा कि "हम जैसे मुश्किल से 10-15 ही परिवार ऐसे होंगे, जिनके पास पात्रा चॉल के अलावा अपना खुद का घर हो."

ठक्कर कहते हैं कि "यह सिर्फ पैसे के बारे में नहीं है, यह हमारे घरों को वापस पाने की टूटी हुई उम्मीदों के बारे में भी है."

कई स्थानीय लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट से बात करते हुए कहा कि OC प्राप्त करने वाले प्राइवेट प्रोजेक्ट्स को अदालत में चुनौती दी जानी चाहिए, वहीं कई अन्य लोगों ने कहा कि इस प्रोजेक्ट ने गति पकड़ ली है और MHADA के काम संभालने के बाद से 2022 तक लगभग 70 प्रतिशत काम पूरा हो गया है.

नाम न छापने की शर्त पर पात्रा चॉल के एक मूल निवासी ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि महामारी ने कई लोगों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं.

उन मूल रहवासी ने कहा कि "एक चॉल प्रणाली में आपको शायद ही कभी मेंटीनेंस के खर्च का भुगतान करना पड़ता है. अब, अधिकांश रहवासी प्रति माह 35,000 रुपये से 40,000 रुपये के बीच किराए का भुगतान कर रहे हैं. आपको क्या लगता है कि चॉल में रहने वाले लोगों की वित्तीय स्थिति क्या है? महामारी के कारण बहुत से लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, कई अन्य लोगों के पास मेडिकल का खर्च था और मैं कुछ ऐसे लोगों को जानता हूं जिन्हें शहर छोड़ना पड़ा क्योंकि वे अब वहां रहने का जोखिम नहीं उठा सकते थे."

पोपट ने कहा कि 14 साल पहले जब उनके परिवार ने अपना घर खाली किया था, तब उनसे कहा गया था कि प्रोजेक्ट को पूरा होने में दो-तीन साल का समय लगेगा.

पोपट ने कहा कि "जब हमें वहां से हटाया गया था, उसके लगभग चार साल बाद कैंसर से मेरे पिता की मौत हो गई थी. जब 2023 आ गया है, लेकिन हमारे पास न तो अपना घर है और न ही हमें पिछले पांच वर्षों से कोई किराया मिल रहा है."

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