गीतकार जावेद अख्तर ने कर्नाटक में जीसस क्राइस्ट की प्रतिमा लगाए जाने का विरोध करने वालों पर निशाना साधा है. अख्तर ने बीजेपी पर निशाना साधते हुआ कहा है कि एक तरफ तो धार्मिक प्रताड़ना झेलने वाले ईसाईयों को नागरिकता की बात होती है और दूसरी तरफ जीसस की प्रतिमा नहीं लगाने दे रहे.
जीसस की ये प्रतिमा कनकपुरा के हरोबेले गांव में लगाई जाने की तैयारी है. इस गांव में ईसाईयों की बहुलता है. कनकपुरा के विधायक और कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार इस प्रतिमा की स्थापना में मदद कर रहे हैं. शिवकुमार ने इस पर बवाल को लेकर कहा, "प्रोजेक्ट की हर चीज वैध है और ये गांववासियों की मांग थी."
प्रतिमा की ऊंचाई 114-फीट रखने की बात सामने आ रही है. इस तरह ये ब्राजील के रियो डी जेनेरियो के ‘क्राइस्ट द रिडीमर’ प्रतिमा से भी ऊंची होगी.
प्रतिमा लगाए जाने के खिलाफ RSS और VHP समेत कई दक्षिणपंथी संगठनों ने सोमवार 13 जनवरी को विरोध प्रदर्शन किया. इसी को लेकर जावेद अख्तर ने ट्विटर पर केंद्र की बीजेपी सरकार पर निशाना साधा. अख्तर ने लिखा,
वो पड़ोसी देशों के धार्मिक प्रताड़ना झेल रहे ईसाईयों को नागरिकता देने की बड़ी-बड़ी बाते करते हैं और इसी के साथ ये भी दावा करते हैं कि बेंगलुरु में जीसस क्राइस्ट की प्रतिमा नहीं लगने देंगे.
अख्तर नागरिकता कानून को लेकर सरकार पर निशाना साध रहे थे. इस कानून में भारत के 3 पड़ोसी देशों में धार्मिक प्रताड़ना झेल रहे हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी.
क्या है नागरिकता कानून?
यह कानून सिटिजनशिप एक्ट, 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. सिटिजनशिप एक्ट, 1955 के तहत कोई भी ऐसा व्यक्ति भारतीय नागरिकता हासिल कर सकता है जो भारत में जन्मा हो या जिसके माता/पिता भारतीय हों या फिर वह एक तय समय के लिए भारत में रहा हो. एक्ट में नागरिकता देने के और भी प्रावधान हैं. हालांकि यह एक्ट अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने से रोकता है.
नागरिकता संशोधन कानून 2019, 3 देशों से आए 6 धर्म के लोगों को इस प्रावधान में ढील देने की बात करता है. इस ढील के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई (इन धर्मों के अवैध प्रवासी तक) के लिए 11 साल वाली शर्त 5 साल कर दी गई है.
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