रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) और सरकार के बीच भी शायद कुछ ठीक नहीं चल रहा है. शुक्रवार को मुंबई में एडी श्रॉफ मेमोरियल व्याख्यान में आरबीआई के डिप्टी गर्वनर डॉ. विरल वी. आचार्य ने स्वायत्त संस्थानों की स्वायत्ता पर जोर देते हुए सरकार को चेताया.
विरल आचार्य ने कहा कि जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं उन्हें वित्तीय बाजार की नाराजगी सहनी पड़ती है. डिप्टी गवर्नर ने कहा कि जो सरकार केंद्रीय बैंक को आजादी से काम करने देती हैं, उस सरकार को कम लागत पर उधारी और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का प्यार मिलता है. उन्होंने कहा कि ऐसी सरकार का कार्यकाल भी लंबा रहता है.
आइए जानते हैं डिप्टी गर्वनर विरल आचार्य के भाषण की पांच बड़ी बातेंः
- सेंट्रल बैंक की स्वायत्ता को नजरअंदाज करना विनाशकारी हो सकता है. इससे कैपिटल मार्केट में भरोसे का संकट पैदा हो सकता है.
- फाइनेंशियल और मैक्रोइकॉनमिक स्टेबिलिटी के लिए यह जरूरी है कि रिजर्व बैंक की स्वायत्ता को बढ़ाया जाए. केंद्रीय बैंक को पब्लिक सेक्टर बैंकों पर ज्यादा रेग्युलेटरी और सुपरवाइजरी पावर दी जाए.
- जो सरकार केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती है उसे वित्तीय बाजार की नाराजगी सहनी पड़ती है. RBI सरकार का 'सच्चा दोस्त' है, जो 'सरकार को अप्रिय लेकिन क्रूर ईमानदार सच्चाई बताती है.
- जो सरकार केंद्रीय बैंक को आजादी से काम करने देती है, उस सरकार को कम लागत पर उधारी और इंटरनेशनल निवेशकों का प्यार मिलता है. ऐसी सरकार का कार्यकाल भी लंबा रहता है.
- RBI ने मौद्रिक नीति ढांचे से संबंधित मामलों में अच्छी प्रगति की है. GST और दिवालिया संहिता में भी RBI अच्छा रहा है. लेकिन रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बरकरार रखने में कुछ जरूरी क्षेत्र हैं जो अभी कमजोर हैं. RBI के पास सरकारी बैंकों पर कार्रवाई करने के सीमित अधिकार हैं.
डिप्टी गर्वनर ने अपने भाषण में फाइनेंशियल और मैक्रोइकॉनमिक स्टेबिलिटी के लिए रिजर्व बैंक की स्वायत्ता बढ़ाए जाने की मांग की. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि केंद्रीय बैंक को पब्लिक सेक्टर बैंकों पर और ज्यादा रेग्युलेटरी और सुपरवाइजरी पावर दी जाए.
डिप्टी गवर्नर का ये बयान तब आया है, जब केंद्र सरकार देश में पेमेंट सिस्टम के लिए एक अलग रेग्युलेटर की संभावना पर विचार कर रही है. फिलहाल अपने बैंकिंग रेग्युलेशंस की जिम्मेदारी के तहत RBI पेमेंट सिस्टम का काम भी देख रहा है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)