कई पूर्व जजों ने जस्टिस अरुण मिश्रा की पीएम मोदी के लिए की गई तारीफ पर नाराजगी जताई है. सुप्रीम कोर्ट के जज अरुण मिश्रा ने इंटरनेशनल ज्यूडिशियल कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए उन्हें काबिल दूरदर्शी और ऐसा 'वर्सेटाइल जीनियस' नेता बताया जो वैश्विक स्तर की सोच रखते हैं.
गरिमापूर्ण मानव अस्तित्व हमारी अहम चिंता है. वैश्विक स्तर की सोच रखकर काम करने वाले वर्सेटाइल जीनियस नरेंद्र मोदी का उनके प्रेरक भाषण के लिए हम शुक्रिया अदा करते हैं. उनका संबोधन सम्मेलन में विचार-विमर्श की शुरुआत के साथ और सम्मेलन का एजेंडा तय करने में अहम भूमिका निभाएगा.जस्टिस अरुण मिश्रा
'न्यापालिका को लेकर संदेह पैदा करता है'
दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस और लॉ कमीशन के पूर्व अध्यक्ष एपी शाह ने द क्विंट से बातचीत में सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज के इस बयान पर असहमति दर्ज कराई है.
‘मौजूदा जज का यूं पीएम की तारीफ करना ठीक नहीं है. ये पूरी तरह से गैर-जरूरी है और इस तरह का बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता के बारे में संदेह पैदा करता है. इस तरह के बयान से उन्हें बचना चाहिए था.’एपी शाह, रिटायर्ड जस्टिस
'जस्टिस मिश्रा को कोर्ट की परंपराओं का पालन करना चाहिए'
दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज, जस्टिस आरएस सोढ़ी का भी कहना है कि इस तरह के बयान न्यायपालिका और उन मामलों को लेकर गलत मैसेज देते हैं, जिसमें सरकार भी एक पक्ष होती है.
‘सरकार एक वादी है और एक वादी के रूप में ये बाकी नागरिकों की तरह कानून के दायरे में आती है. सबसे अच्छा यही है कि प्रधानमंत्री की पीठ न थपथपाई जाए और ऐसा कुछ भी न किया जाए. इससे गलत संदेश जाता है कि जज अपने केस में ऑब्जेक्टिव नहीं होगा.आरएस सोढ़ी, रिटायर्ड जस्टिस
उन्होंने बताया कि जब इंदिरा गांधी ने 1980 में चुनाव जीती थीं, तब सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस भगवती ने उन्हें 'उल्लेखनीय उपलब्धि' के लिए बधाई देते हुए एक लेटर लिखा था. उस समय वकीलों, वरिष्ठ और रिटायर्ड जजों ने इस लेटर की निंदा की थी, क्योंकि 'ये माना गया कि न्यायपालिका को खुद को कार्यपालिका के साथ नहीं जोड़ना चाहिए और अपने बयान को खुद तक ही रखना चाहिए.' जस्टिस ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि तब से लेकर अब तक कुछ बदला है, और जजों के बीच ये परंपरा रही है कि वो अपने विचार पब्लिक में नहीं रखते.
‘मुझे लगता है कि जस्टिस मिश्रा को कोर्ट की परंपरा का पालन करना चाहिए, और नई सीमाओं को इस तरह से निर्धारित करने की कोई जरूरत नहीं है. परंपराओं का सम्मान और पालन किया जाना चाहिए.’आरएस सोढ़ी, रिटायर्ड जस्टिस
'साल का बेस्ट जोक'
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज, रिटायर्ड जस्टिस पीबी सावंत ने कहा कि सिटिंग जज का इस तरह से प्रधानमंत्री की तारीफ करना उचित नहीं है.
जिस संदर्भ में टिप्पणी की गई थी, उसे सुनने के बाद, उन्होंने ये भी कहा कि 'ये साल का सबसे अच्छा मजाक था.'
सुप्रीम कोर्ट के एक और जज ने कहा कि जस्टिस मिश्रा का बयान सुनकर उन्हें 'काफी हंसी' आई. उन्होंने कहा कि जस्टिस मिश्रा को पब्लिक प्लेटफॉर्म पर ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था.
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