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Sarkeguda Encounter: नक्सल बता मार दिए 17 ग्रामीण, आज भी जख्म जिंदा हैं

"गांव के बीज त्यौहार के लिए बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें मेरा भाई भी मारा गया."

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भारत
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बीजापुर के सारकेगुड़ा (Sarkeguda) में 28-29 जून की रात 2012 को एक मुठभेड़ हुई थी. उस मुठभेड़ में 17 लोग मारे गए थे. इस घटना के बाद सरकार ने पुलिसकर्मियों द्वारा 17 नक्सली मार गिराने का दावा किया. इस मामले की जांच रिपोर्ट आने में लगभग 5 साल से अधिक समय लग गया. दिसंबर 2019 में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने विधानसभा में रिपोर्ट पेश की.

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इस रिपोर्ट के मुताबिक मारे गए लोगों का नक्सलियों से कोई संबध नहीं था, लेकिन रिपोर्ट आए लगभग ढाई साल होने को हैं, अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है. अभी भी सारकेगुड़ा घटना में घायल एवं मृतक के परिजन न्याय की उम्मीद में बैठे हुए है.

घटना वाले दिन क्या हुआ ?

बीज पंडुम के संबंध में चर्चा करने के लिए गांव के लोग इकट्ठा हुए थे. शाम के लगभग 8 बजे पुलिस वाले आए और 'पकड़ो-पकड़ो' की आवाज करते हुए सीधे फायरिंग शुरू कर दी. लगभग आधा घंटा फायरिंग चली. नारायण ईरपा का घर वहीं था, वह 'कौन-कौन हो?' बोलते हुए चिल्लाते जा रहा था. उसको भी मार दिया गया. ग्रामीणों का कहना है कि सारकेगुड़ा घटना मामले में कुल 17 लोग मारे गए, जिसमें 6 नाबालिग थे.

मेरा बड़ा भाई राम विलास कक्षा 10वीं का छात्र था. जो गर्मी की छुट्टी में घर आया था, गांव के बीज त्यौहार के लिए बैठक आयोजित किया गया था, जिसमें राम विलास भी गया हुआ था. उस फायरिंग में मेरा भाई भी मारा गया.
मड़कम (मृतक रामविलास का भाई)
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इस घटना के बाद सरकार ने दावा किया था कि सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में 17 लोगों को मार गिराया.

मेरे बेटे को मार दिया, अब घर में कौन कमा के खिलाएगा? एक बड़ा बेटा है, वो इतने लोग को कैसे पालेगा?
शान्ति (मृतक की मां)

मड़कम आगे बताते है कि जब गोली-बारी हुई तो सभी लोग भाग दौड़ कर रहे थे. तब इरपा रमेश भी घर की ओर भाग रहा था और डरकर घर के पास के महुआ पेड़ में चढ़ गया. जब सुबह हुई तो वह घर की ओर भागा. पुलिस को पकड़ना चाहिए था लेकिन सीधा गोली चला दी. एक गोली इरपा रमेश को लगी. गोली लगने के बाद रमेश घर के अंदर घुस गया, लेकिन पुलिस वालों ने घर से जबरन बाहर निकाल कर उसे ईटों से कुचला, जिससे उसकी मौत हो गई.

सेंटी उन व्यक्तियों में है जिन्हें सुरक्षाकर्मियों ने जेल में डाल दिया. सेंटी बताते है कि घायल लोगों को रायपुर हॉस्पिटल में भर्ती किया था. हमें 25 दिन बाद डिस्चार्ज किया गया, जिसके बाद हमें बीजापुर लाया गया. यहां हम लोगों को कोतवाली के बाहर रखा और वहां शायद चालान बनाया गया. उसके बाद सीधा दंतेवाड़ा लेकर आए और दंतेवाड़ा के जेल में बंद कर दिया. दंतेवाड़ा से फिर हमें जगदलपुर ले जाया गया. मेरी रिहाई जगदलपुर में हुई, मेरे घरवालों ने बकरी बेचकर और दूसरों से उधारी मांगकर मेरा केस लड़ा. अब मेरे पास पैसे लेने आते हैं, मेरे पास पैसा ही नहीं है तो कहां से दूंगा.

पुलेया सारके बताते है, रात को मारा तो मारा लेकिन सुबह भी जानते हुए भी मारा, इसलिए गांव के लोग और नाराज हो गए. धमकाया गया, बोलने को कहा- "नक्सली आए थे, नक्सालियों की मीटिंग चल रही थी, ऐसा बताने से नहीं करेगे. ऐसा नहीं बोला तो मारपीट करेंगे, ऐसी ही मार के फेंक देंगे."
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दिसंबर 2019 को मुख्यमंत्री श्री भूपेश ने सारकेगुड़ा की जांच रिपोर्ट विधानसभा में पेश की. जस्टिस वी के अग्रवाल की अध्यक्षता वाली एक सदस्यीय जांच रिपोर्ट में इंकार किया गया है कि ग्रामीणों का नक्सलियों के साथ कोई संबध था. साथ ही फायरिंग एकतरफा थी जो सुरक्षा कर्मियों द्वारा की गई.

पुलेया सारके कहते है कि पहले बीजेपी की सरकार थी, अभी कांग्रेस की है. सभी पार्टी के लोग चुनाव के समय वादे करते है, लेकिन बाद में कोई नहीं पूछता है. जब हमने मुआवजे की राशि के बारे में पुलेया सारके से पूछा तो उन्होंने कहा कि घायल लोगों को 20 हजार रूपये देने को बोला था, पर मुझे तो अभी तक नहीं मिला. इस संबध में हमने सेंटी को पूछा तो सेंटी ने मुआवजा राशि मिलने से इंकार कर दिया.

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20 मई 2022 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बीजापुर के दौरे पर थे. इस दौरान स्थानीय पत्रकार पवन दुर्गम ने सारकेगुड़ा मामले में मुख्य्मंत्री से सवाल किया. जिसमे भूपेश बघेल ने कहा, सारकेगुड़ा मामले कि एक्शन टेकन प्रस्तुत कर दिया है, इसमें कार्यवाही भी होगी मुआवजा भी देंगे.

रिपोर्ट विधानसभा में पेश हुए लगभग ढाई साल हो गए, लेकिन अभी भी सारकेगुड़ा में मारे गए लोगों के परिजन न्याय की आस लगाए बैठे हुए हैं.

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