सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ के एक मेडिकल कॉलेज को लताड़ लगाते हुए उसे 150 छात्रों को एडमिशन फीस लौटाने का कहा और साथ ही 10-10 लाख रुपये हर्जाना देने को भी कहा. कोर्ट ने कॉलेज पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. इतना ही नहीं इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक बेंच को भी फटकार लगी है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कोई भी अंतरिम फैसला देने से मना किया था.
दरअसल, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की तरफ से सीनियर एडवोकेट विकास सिंह और एडवोकेट गौरव शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कॉलेज को केंद्र सरकार से औपचारिक अनुमति नहीं थी, फिर भी हाईकोर्ट ने एडमिशन की इजाजत दे दी. इन वकीलों ने ये भी बताया कि कॉलेज में इंफ्रास्ट्रक्चर, मेडिकल सुविधाएं और टीचर्स की कमी है.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एम एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने कहा कि एडमिशन की इजाजत देकर हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह से संस्थानिक समस्या खड़ी हो सकती है.
सीबीआई कर रही जांच
ये कॉलेज जीसीआरजी मेमोरियल ट्रस्ट का है. सीबीआई कॉलेज के गलत तरीके से एडमिशन देने के मामले की जांच कर रही है. इसमें सीबीआई ने पिछले दिनों ओडिशा हाईकोर्ट के जज आई एम कुदुसी को गिरफ्तार किया था. उन पर कॉलेज को फेवर कर लाभ पहुंचाने का आरोप है. कुदुसी ओडिशा से पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज थे.
इसके अलावा सीबीआई ने पुडुचेरी के दो आईएएस अफसरों पर FIR दर्ज की थी. पूर्व स्वास्थ्य सचिव बी आर बाबू और केंद्रीय प्रवेश समिति के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार पर गलत तरकी से एडमिशन कराने का आरोप है. ये दोनों दाखिले पर फैसला लेने वाली समिति के अध्यक्ष थे. आरोप है कि इन्होंने मनमानी तरीके से सीटों का बंटवारा किया और जिसकी वजह से योग्य छात्राओं को एडमिशन नहीं मिल पाया.
(स्रोत: Times Of India)
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